नई दिल्ली। धारा 370 के खात्मे के खिलाफ वामपंथी दलों ने सोमवार को सड़कों पर प्रदर्शन किया। दिल्ली से लेकर पटना तक सरकार के इस फैसले के खिलाफ आवाज गूंजी। दिल्ली में सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई(एमएल) के नेताओं के साथ ही तमाम बुद्धिजीवियों ने भी प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
सभी ने एक सुर में न केवल फैसले का विरोध किया बल्कि इसे सरकार की एक ऐसी ऐतिहासिक भूल करार दिया जिसका नतीजा पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है। नेताओं ने कहा कि सरकार की मंशा कश्मीर को फिलीस्तीन बनाने की है। सरकार को जरूर यह समझना चाहिए कि नागरिकों भावनाओं को कुचलकर सूबे को अपने साथ रखा जा सकता है।
नेताओं ने कहा कि संविधान
के अनुसार जम्मू एवं कश्मीर की सीमाओं को पुर्ननिर्धारित करने अथवा धारा 370 और धारा 35A के बारे में कोई भी
निर्णय वहां की राज्य सरकार की सहमति के बगैर नहीं लिया जा सकता है। 2018 में जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा बगैर किसी
दावेदार को सरकार बनाने का मौका दिये गैरकानूनी तरीके से भंग कर दी गई थी। फिर
केन्द्र सरकार ने संसदीय चुनावों के साथ जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा के चुनाव
कराने से इंकार कर दिया था। इसलिए राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया यह आदेश पूरी
तरह से एक तख्तापलट है।
प्रदर्शन में सीपीएम
के पूर्व महासचिव प्रकाश करात, सीपीआईएमएल के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य और सीपीआई
के महासचिव डी राजा मौजूद थे। इसके साथ ही हर्ष मंदर समेत तमाम बुद्धिजीवी भी इस
कार्यक्रम में शरीक हुए।
इसी के साथ धारा 370 और 35 (a) को भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा हटा दिए जाने के खिलाफ देशव्यापी प्रतिवाद के तहत सोमवार को पटना में नागरिकों ने प्रतिवाद आयोजित किया। कारगिल चौक पर आयोजित इस कार्यक्रम में पटना के कई बुद्धिजीवी, प्रोफेसर आम नागरिक और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता जुटे थे। इस कार्यक्रम पर भारतीय जनता पार्टी व आरएसएस जैसे संगठनों से जुड़े हुए लोगों ने उस वक्त हमला कर दिया जब कार्यक्रम अपनी समाप्ति की ओर था।
इस हमले में कई लोग घायल हुए हैं। पटना के प्रतिष्ठित साहित्यकार सुमन्त शरण के सिर में चोट आई है और वे फिलहाल PMCH में हैं। NAPM के आशीष रंजन झा, जन जागरण समिति की कामायनी, माले नेता प्रकाश कुमार सहित कई लोगों को चोटें आईं हैं। यह पूरा घटनाक्रम पुलिस की उपस्थिति में हुआ लेकिन वह मूक दर्शक बनी रही। इसके विरोध में पटना के नागरिकों ने कारगिल चौक से लेकर जेपी गोलंबर तक प्रतिवाद मार्च भी किया और देश से फासीवादी भाजपा को उखाड़ फेंकने का संकल्प भी लिया।
पुलिस की उपस्थिति में आरएसएस-भाजपा के लोगों ने प्रतिवाद कर रहे पटना के नागरिकों पर हमला किया। पहले उन्होंने कार्यक्रम रोकने की कोशिश की और फिर लाठी चला दी। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि पुलिस मूकदर्शक बनी रही। वे लोग फ़ोन कर कर के और लोगों को बुला रहै थे। प्रशासन ने उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं की।
आज के प्रतिवाद में मुख्य रूप से एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर, भाकपा माले के पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेंद्र झा, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, सरोज चौबे, शशि यादव, अभ्युदय, नट मण्डप की मोना झा, विमुक्ता संगठन की आकांक्षा, मजदूर बिगुल दस्ता की बारुनी, अजय सिन्हा, रूपेश सहित कई अन्य दूसरे संगठन के भी लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
छत्तीसगढ़ की पांच वामपंथी पार्टियों ने संविधान की धारा 370 को खत्म करने तथा जम्मू-कश्मीर राज्य को विभाजित करने के केंद्र सरकार के कदम को देश के संघीय ढांचे, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और कश्मीरियत पर खुला हमला बताया है और इसके खिलाफ कल पूरे राज्य में नागरिक-प्रतिवाद प्रदर्शन करने की घोषणा की है।
आज यहां जारी एक साझे बयान में माकपा के संजय पराते, भाकपा के आरडीसीपी राव, भाकपा (माले-लिबरेशन) के बृजेन्द्र तिवारी, भाकपा (माले-रेड स्टार) के सौरा यादव और एसयूसीआई (सी) के विश्वजीत हरोड़े ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर राज्य के भारत में विलय की प्रक्रिया अन्य देशी रियासतों के विलय से भिन्न थी, इसीलिए कश्मीर की जनता की अस्मिता, पहचान और स्वायत्तता की रक्षा का वादा तत्कालीन भारत सरकार ने किया था और इसे पूरा करने के लिए संविधान में धारा 370 का प्रावधान किया गया था। इसलिए मोदी सरकार का यह कदम न केवल जम्मू-कश्मीर की जनता के साथ विश्वासघात है, बल्कि राष्ट्रीय एकता व संघीय गणराज्य की अवधारणा पर ही हमला है, जो देश में किसी भी प्रकार की विविधता को बर्दाश्त करने के लिए ही तैयार नहीं है।
धारा 370 हटाने के लिए दिए जा रहे तर्कों को बेनकाब करते हुए वाम नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार ने ही जून महीने में नागालैंड में अलग झंडे, अलग पासपोर्ट पर सहमति दी है और धारा 370 जैसे प्रावधान ही धारा 371 के रूप में नागालैंड, असम, मणिपुर, आंध्रप्रदेश, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा व हिमाचल प्रदेश में लागू है, जहां बाहरी प्रदेश का कोई निवासी जमीन नहीं खरीद सकता। वामपंथी पार्टियों ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने दरअसल जम्मू-कश्मीर को विभाजित करने के मुस्लिमविरोधी संघी एजेंडे को ही लागू किया है।