केरल विधानसभा में 13 मार्च, 2015 को बजट भाषण के दौरान स्पीकर के डायस पर चढ़कर व्यवधान डालना, फर्नीचर तोड़ना और स्पीकर का चेयर, कंप्यूटर और और माइक को तोड़ना 6 लेफ्ट विधायकों को बहुत मंहगा पड़ा। क्योंकि पहले केरल हाईकोर्ट, फिर उसके बाद उच्चतम न्यायालय ने तत्कालीन 6 लेफ्ट विधायकों के खिलाफ केस वापस लेने की केरल सरकार की अर्जी को खारिज कर दिया और कहा कि संपत्ति नष्ट करना सदन में बोलने की स्वतंत्रता के दायरे में नहीं आता है।
उच्चतम न्यायालय ने मार्च 2015 में केरल विधानसभा में हंगामे के दौरान फर्नीचर, कुर्सियां, माइक तोड़ने के आरोपी उस समय के 6 लेफ्ट विधायकों के खिलाफ केस वापस लेने की केरल सरकार की अर्जी को खारिज कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि लॉ मेकर्स को मिले विशेषाधिकार क्रिमिनल केस से बचने का रास्ता नहीं हैं। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ नेकहाकि संपत्ति नष्ट करना सदन में बोलने की स्वतंत्रता के दायरे में नहीं नहीं आता है।
पीठ ने कहा कि संविधान संसद में अभिव्यक्ति की आजादी देता है और राज्यों में विधानसभा सदस्यों को सदन में विचार व अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करता है लेकिन ये अभिव्यक्ति संविधान के दायरे में होगी। अपनी बात तार्किक तौर पर रखने के लिए ये विशेषाधिकार दिया गया है ताकि बिना अभियोजन के डर के सदस्य अपनी बात रखें।
पीठ ने कहा है कि कानून बनाने वाले यानी सांसद/विधायक को मिला हुआ विशेषाधिकार क्रिमिनल केस से बचने का रास्ता नहीं हो सकता है। यह आम लोगों के साथ विश्वासघात होगा। पीठ ने कहा है संपत्ति को नुकसान पहुंचाना विधान सभा में बोलने की स्वतंत्रता के दायरे में नहीं हो सकती। अदालत ने कहा कि संसद व विधानसभा में अभिव्यक्ति की आजादी संविधान के दायरे में है। सुप्रीम कोर्ट ने केरल विधानसभा में हुए हंगामे के मामले में आरोपी बनाए गए एलडीएफ के 6 सदस्यों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने के केरल सरकार की अर्जी खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी है।
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि क्रिमिनल लॉ में जो कानून तय है उसके दायरे में ही एमएलए को अपना व्यवहार रखना होगा। विशेषाधिकार और इम्युनिटी के नाम पर कानून से ऊपर होने का दावा नहीं किया जा सकता है। सभी नागरिकों पर क्रिमिनल लॉ समान रूप से अप्लाई होता है।क्रिमिनल केस में सभी नागरिक समान हैं और सदन के सदस्यों को विशेषाधिकार और इम्युनिटी के कारण क्रिमिनल केस के मामले में आम आदमी से ऊंचे पायदान पर नहीं रखा जा सकता है।
पीठ ने कहा कि देश में जो जनरल कानून है, विशेषाधिकार और इम्युनिटी उससे बचने का रास्ता नहीं है। क्रिमिनल लॉ सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है।लॉ मेकर को विशेषाधिकार के नाम पर क्रिमिनल लॉ से बचाव आम लोगों के विश्वास के साथ धोखा होगा। जहां तक अनुच्छेद-194 के प्रावधान का सवाल है तो इस मामले में गलत तरीके से उसे परिभाषित कर सीआरपीसी की धारा-321 के तहत केस वापस लेने की गुहार लगाई गई। सरकारी वकील ने जो इस मामले को समझा उससे मैसेज जाता है कि विशेषाधिकार के कारण इन एमएलए पर केस नहीं चल सकता जबकि ऐसी सोच और समझ संविधान के प्रावधान के साथ धोखा होगा और ये गलत धारणा है कि लॉ मेकर्स जनरल क्रिमिनल लॉ से ऊपर हैं।
पीठ ने कहा है कि अनुच्छेद 194 (2) के तहत प्रावधान है कि सदन के सदस्य को इम्युनिटी (प्रतिरक्षा) मिली हुई है कि वह सदन में अपनी विचार अभिव्यक्ति बिना किसी डर के कर सकते हैं। यहां संविधान बनाने वालों की मंशा यह नहीं थी कि अभिव्यक्ति की जो आजादी दी गई है उसमें विरोध की आड़ में क्रिमिनल एक्ट भी शामिल हो जाएं।
संविधान संसद में अभिव्यक्ति की आजादी देता है और राज्यों में विधानसभा सदस्यों को सदन में विचार व अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करता है लेकिन ये अभिव्यक्ति संविधान के दायरे में होगी। अपनी बात तार्किक तौर पर रखने के लिए ये विशेषाधिकार दिया गया है ताकि बिना अभियोजन के डर के सदस्य अपनी बात रखें।
पीठ ने कहा कि अनुच्छेद-194 के तहत विधानसभा सदस्य विशेषाधिकार के तहत प्रतिरक्षा का दावा नहीं कर सकते हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा का जो अधिकार सदन के सदस्यों को मिला हुआ है वह क्रिमिनल लॉ से बचने का रास्ता नहीं हो सकता है। 194 के प्रावधान का हवाला देकर केस वापस लेने की जो दलील है वह सही नहीं है। ये आम आदमी के साथ धोखा होगा।
पीठ ने कहा कि विधानसभा सदस्यों को जो विशेषाधिकार दिया गया है वह विधायी काम के लिए दिया गया है ताकि लॉ मेकर्स बिना किसी बाधा, डर और पक्षपात के अपनी विधायी ड्यूटी कर सकें। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि सदस्य असमान तरीके से एक तख्त पर विराजमान हैं। सरकारी संपत्ति के साथ तोड़फोड़ सदस्यों की विधायी ड्यूटी नहीं है। जबकि विशेषाधिकार विधायी ड्यूटी के लिए दिया गया है। सदस्यों को लोगों के विश्वास के पैरामीटर पर चलना चाहिए और वही उनकी ड्यूटी है।
पीठ ने कहा कि सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने संज्ञान लिया था और इसे रोकने के लिए गाइडलाइंस की थी। उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ सरकार इस बात पर एकमत है कि पब्लिक और प्राइवेट प्रॉपर्टी को प्रोटेस्ट के नाम पर नुकसान पहुंचाने को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। मौजूदा केस में आरोप चुने हुए एमएलए पर है।
दरअसल केरल विधानसभा में 13 मार्च 2015 को बजट भाषण के दौरान उस समय विरोधी पार्टी एलडीएफ के 6 सदस्य स्पीकर के डायस पर चढ़ गए और व्यवधान डाला। आरोप है कि उन्होंने फर्नीचर तोड़े। स्पीकर के चेयर, कंप्यूटर और माइक को तोड़ दिया। इस कारण विधानसभा में सरकारी संपत्ति को नुकसान हुआ था।
विधानसभा के सेक्रेटरी ने तिरुवनंतपुरम में थाने में शिकायत दी और आरोपी सदस्यों के खिलाफ सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और आईपीसी के तहत केस दर्ज किया गया। बाद में अभियोजन पक्ष ने चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट में केस वापस लेने की अर्जी दाखिल की जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दी।
केरल हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। 12 मार्च 2021 के केरल हाई कोर्ट के फैसले को केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। पीठ राज्य के इस तर्क को मानने के लिए भी तैयार नहीं थी कि चूंकि स्पीकर ने पहले ही अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई कर उन्हें निलंबित कर दिया है, इसलिए आपराधिक मुकदमा चलाना अनुचित है। पीठ ने कहा था कि उन्हें भारतीय दंड संहिता और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की रोकथाम अधिनियम के तहत अपराधों के लिए भी कार्रवाई का सामना करना चाहिए।
जब राज्य के वकील ने तर्क दिया कि एक आवेशपूर्ण माहौल में विरोध के बीच हंगामा हुआ, तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की थी कि कई बार अदालतों में बहस भी बेकार हो जाती है। क्या यह अदालत की संपत्ति के विनाश को सही ठहराएगा? पीठ ने राज्य से बार-बार पूछा था कि वह आरोपी के बचाव पक्ष की दलीलों को क्यों अपना रही है, और आश्चर्य है कि क्या केस वापसी के आवेदन को आगे बढ़ाने में कोई सार्वजनिक हित है।
आरोपी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता पेश हुए। पीठ ने तत्कालीन गृह मंत्री और पूर्व विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथला के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी (एक हस्तक्षेपकर्ता के लिए) और अधिवक्ता एमआर रमेश बाबू की दलीलें भी सुनीं। आरोपियों में से वी शिवनकुट्टी अब एलडीएफ सरकार के वर्तमान दूसरे कार्यकाल में शिक्षा मंत्री हैं। ईपी जयराजन और केटी जलील, जो पिछली एलडीएफ सरकार में मंत्री थे, सीपीआईएम सदस्य सीके सहदेवन, के अजित और के कुन्हम्मद अन्य आरोपी हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)