Friday, April 26, 2024

पत्रकार कप्पन को कोरोना बाद जंजीरों से बांधे जाने के मामले में केरल के मुख्यमंत्री ने सीएम योगी को लिखा पत्र

“ऐसा बताया जा रहा है कि पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को कोरोना संक्रमण के बाद मथुरा के केवीएम अस्पताल में भेजा गया है, जहाँ अस्पताल के बिस्तर पर ज़ंजीर से बांधकर रखा गया है, जबकि उनकी हालत काफ़ी गंभीर है। उन्हें डायबिटीज़ है, दिल की बीमारी है।” -उपरोक्त बातें केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में कही हैं। केरल के मुख्यमंत्री ने पत्र में ये भी लिखा है कि सामान्य लोग और मीडिया बिरादरी के लोग विशेष रूप से पत्रकार कप्पन की स्थिति और मानवाधिकारों के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं और उनकी दुर्दशा के बारे में बहुत चिंतित हैं।

यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध करते हुए पिनराई विजयन ने पत्र में कहा है कि पत्रकार कप्पन को एक सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में स्थानांतरित करने पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए जहाँ उनकी जान बचाई जा सके।

गौरतलब है कि 5 अक्टूबर 2020 में गिफ़्तारी के बाद से कप्पन मथुरा की एक जेल में बंद रहे और कुछ ही दिन पहले कोरोना वायरस से ग्रस्त होने पर उन्हें मथुरा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

यूपी पुलिस की सफाई
वहीं इस मामले पर उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने मीडिया को बताया है कि सिद्दीक़ कप्पन को अस्पताल में सीसीटीवी की निगरानी में रखा गया है और बाहर पुलिस बल की तैनाती है। कप्पन को अस्पताल के बिस्तर से ज़ंजीरों से बाँध कर रखने के सवाल पर प्रशांत  कुमार कहते हैं, “मेरी जानकारी में ऐसी कोई बात नहीं है। वे केवल सीसीटीवी की निगरानी में हैं और उनका स्वास्थ्य ठीक-ठाक है।”

सुप्रीम कोर्ट को पत्र
वहीं दूसरी ओर पत्रकार कप्पन की जीवनसाथी ने भी सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना को एक पत्र लिखकर कहा है, “कप्पन को एक जानवर की तरह बिस्तर से ज़ंजीरों से बाँध कर रखा गया है और अगर तत्काल क़दम नहीं उठाए गए तो इससे उनकी असमय मृत्यु हो जाएगी।”

केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने भी पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को दिल्ली के एक अस्पताल में शिफ़्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की माँग की है। गौरतलब है कि पत्रकारों के इस संगठन ‘केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स’ ने पत्रकार कप्पन की गिरफ़्तारी के बाद सुप्रीम कोर्ट में हेबियस कॉर्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) की याचिका दायर की थी। अपनी याचिका में यूनियन ने अदालत से कहा है कि 20 अप्रैल को बाथरूम में गिरने से कप्पन को गंभीर चोटें आईं और बाद में वे कोरोना संक्रमित भी पाए गए।

वहीं केरल के 11 सांसदों ने भी भारत के नए मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना को पत्र लिखकर कप्पन के मामले में तत्काल सुनवाई की गुहार लगाई है। इन सांसदों ने कहा है कि पत्रकार कप्पन की हालत गंभीर है और उन्हें बेहतर उपचार की आवश्यकता है। कप्पन को मथुरा मेडिकल कॉलेज अस्पताल से दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ में स्थानांतरित करने के लिए आवश्यक आदेश जारी किए जाएं।

हाथरस में दलित लड़की के साथ गैंगरेप और हत्या के बाद रिपोर्टिंग के लिए आते कप्पन और उनके तीन साथियों को यूएपीए के तहत यूपी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। उत्तर प्रदेश पुलिस की एफ़आईआर में पत्रकार कप्पन पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत राजद्रोह, धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने के लिए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण ढंग से उकसाने के आरोप लगाए गए हैं। उसके अलावा उन पर ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप दर्ज किए गए हैं।

इसके अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस ने अदालत में दायर चार्जशीट में आरोप लगाया कि कप्पन और अन्य लोगों ने दोहा और मस्कट में स्थित वित्तीय संस्थानों से लगभग 80 लाख रुपये की धनराशि प्राप्त की, जिसका मक़सद उत्तर प्रदेश में हिंसा फैलाना था। साथ ही उत्तर प्रदेश पुलिस का कहना है कि कप्पन जिस केरल स्थित समाचार पत्र का पहचान पत्र दिखाकर ख़ुद को पत्रकार बता रहे थे वो 2018 में बंद हो गया था।

अर्णब की निजी स्वतंत्रता की फिक्र है लेकिन कप्पन की नहीं
पत्रकार कप्पन के वकील विल्स मैथ्यूज़ मीडिया को जानकारी देते हुए बताते हैं कि कप्पन चार दिनों से शौचालय नहीं जा पाए, क्योंकि उन्हें अस्पताल में उनके बिस्तर से बाँध कर रखा गया है।

कितना शर्मनाक है कि अर्णब गोस्वामी जैसे प्रोपगंडा और फेक न्यूज चलाने वाले की निजी स्वतंत्रता की चिंता सुप्रीम कोर्ट के माननीयों को सताती है, लेकिन सिद्दीक कप्पन की निजी स्वतंत्रता, मौलिक व नागरिक अधिकारों की चिंता उन्हें भी नहीं है।

आखिर क्या कारण है कि कप्पन की हेबियस कॉर्पस की याचिका पिछले साल छह अक्तूबर को दायर की गई थी वो याचिका सात बार सुप्रीम कोर्ट के सामने लिस्ट हुई पर कोई भी अंतिम निर्णय नहीं लिया गया, जबकि हेबियस कॉर्पस की याचिका की सुनवाई अति-आवश्यक मानकर जल्दी की जाती है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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