शाहीन बाग का सबसे नन्हा शहीद

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नई दिल्ली। फोटो में दिख रहा नौ महीने का यह मासूम अब इस दुनिया में नहीं है। क्योंकि नियति के क्रूर हाथों ने इसे हमसे छीन लिया। जहान के अपने जीवन का एक हिस्सा शाहीन बाग के इस धरने में गुजरा। नौ महीने का जहान पिछली 18 दिसंबर से रोजाना अपनी मां नाजिया के साथ धरने में शामिल होता था। रोजाना आने के चलते न केवल लोगों से परिचित हो गया था बल्कि हर किसी की आंख का तारा बन गया था।

एक गोद से दूसरी गोद, एक कंधे से दूसरे कंधे पर रहना इस मासूम की दिनचर्या बन गयी थी। कोई उसके गाल पर तिरंगे की पेंटिंग कर देता तो कोई गमछा बनाकर उसके गले में लपेट देता। लेकिन समय इतना बेरहम हो सकता है किसी ने सोचा भी नहीं था। लोगों का यह लाडला 30 जनवरी की गलन भरी रात को बर्दाश्त नहीं कर सका। और हमेशा-हमेशा के लिए इस धरती से रुखसत हो गया। लेकिन इसके साथ ही इस मासूम ने सबसे नन्हे शहीद होने का दर्जा हासिल कर लिया है।

बताया जा रहा है कि लगातार बाहर जाड़े के मौसम में रहने से उसका गला कफ से बिल्कुल चोक हो गया था। हालांकि इसके बावजूद उसकी मां अपने संकल्प से पीछे नहीं हटी है। धरने में लगातार उनका आना जारी है। पीटीआई के हवाले से आयी खबर के मुताबिक उन्होंने कहा कि यह उनके बच्चों के भविष्य के लिए है।

बाटला हाउस इलाके में स्थित प्लास्टिक शीट से बनी एक छोटी खोली में रहने वाले जहान के पिता मोहम्मद आरिफ और नाजिया के दो और बच्चे हैं। जिसमें पांच साल की एक लड़की है और एक साल का एक दूसरा बेटा है। यूपी के बरेली से ताल्लुक रखने वाले इस जोड़े के लिए अपना पेट चलाना बेहद मुश्किल होता है। आरिफ कपड़े की सिलाई करने के अलावा ई-रिक्शा चलाने का काम करता है। उसकी पत्नी उसके सिलाई के काम में मदद करती है।

आई लव इंडिया’ वाली टोपी पहने जहान की फोटो दिखाते हुए आरिफ ने बताया कि ‘अपनी सिलाई के काम के अलावा बैटरी रिक्शा चलाने के बावजूद पिछले महीने मैं ज्यादा नहीं कमा सका। अब बच्चे की मौत के बाद हमने सब कुछ खो दिया। 

बिल्कुल बदहवासी की स्थिति में पहुंच गयी नाजिया ने कहा कि जहान 30 जनवरी की रात को सोते समय ही हम लोगों से हमेशा-हमेशा के लिए दूर चला गया। उस दिन भी वह अपने माता-पिता के साथ प्रदर्शन में गया था।

घटना की रात का ब्यौरा देते हुए नाजिया ने बताया कि ‘मैं शाहीन बाग से तकरीबन एक बजे रात में लौटी। उसको और दूसरे बच्चों की सोने की व्यवस्था करके मैं सोने चली गयी। सुबह अचानक मैंने उसकी शरीर को बिल्कुल स्थिर देखा। सोते समय ही वह हमसे हमेशा-हमेशा के लिए अलग हो गया।

आरिफ-नाजिया ने बताया कि उसके बाद तुरंत वे बच्चे को पास के अलशिफा अस्पताल ले गए जहां डॉक्टरों ने लाने से पहले ही मृत घोषित कर दिया।

18 दिसंबर के बाद जहान के साथ रोजाना शाहीन बाद के धरने में हिस्सा ले रही नाजिया कहती हैं उसको ठंड लग गयी थी और वही उसके लिए घातक साबित हुई।

उन्होंने बताया कि उसे नहीं पता चल पाया कि उसकी सर्दी इतनी खतरनाक हो गयी है। हालांकि अस्पताल द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र में मौत के पीछे की वजह का जिक्र नहीं किया गया है।

जोड़े के घर पर मौजूद पड़ोसी साजिया ने बताया कि नाजिया शाहीन बाग के धरने में हिस्सा लेने के लिए अपने पति और मां से रोजाना लड़ती थी। नाजिया अपने घर के सामने दूसरी औरतों को भी इकट्ठा करती थी जिससे सब मिलकर एक साथ जा सकें। कई बार आरिफ उन सभी को अपने ई रिक्शा से वहां छोड़ आता था।

नाजिया ने कहा कि वह मजबूती के साथ इस बात को महसूस करती है कि सीएए और एनआरसी सभी समुदायों के हितों के खिलाफ है। अभी भी वह शाहीन बाग के प्रदर्शन में शामिल होगी लेकिन बगैर बच्चों के।

उसने पीटीआई को बताया कि “मैं ऐसा क्यों कर रही थी? अपने बच्चों के लिए और हमारे उन सभी बच्चों के लिए जिन्हें इस देश में एक बेहतर भविष्य की जरूरत है।”

उसने बताया कि ‘सीएए हम लोगों को धर्म के आधार पर विभाजित करता है। और इसको कत्तई स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। मैं यह नहीं जानती कि इसमें राजनीति शामिल है लेकिन मैं यह जरूर जानती हूं कि जो मेरे बच्चों के खिलाफ है उस पर सवाल उठाया जाना चाहिए’।

हालांकि आरिफ ने अपने बच्चे की मौत के लिए एनआरसी और सीएए को जिम्मेदार ठहराया।

उसने बताया कि सरकार सीएए और एनआरसी नहीं लाती तो लोग भी विरोध-प्रदर्शन नहीं करते और तब मेरी पत्नी भी वहां नहीं जाती। और इस तरह से मेरा बच्चा जिंदा रहता।    

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