Friday, April 26, 2024

मद्रास हाई कोर्ट का अदालत की मौखिक टिप्पणियों की मीडिया रिपोर्टिंग पर याचिका सुनने से इनकार

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कहा कि उच्च न्यायालयों को अनावश्यक एवं ‘बेवजह’ टिप्पणियों से बचना चाहिए, क्योंकि उसके गंभीर परिणाम होते हैं। कोविड-19 से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने यह सलाह दी। सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र और वरिष्ठ वकील रणजीत कुमार ने बिहार सरकार की तरफ से पेश होते हुए कहा कि इस तरह की टिप्पणियों से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारी कुछ नहीं कर रहे हैं। कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने के तरीकों को लेकर मद्रास और दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और विभिन्न प्राधिकारों को काफी फटकार लगाई है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस नागेश्वर राव और जस्टिस रवींद्र भट्ट की पीठ ने देश में कोविड-19 प्रबंधन का स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई की है। उन्होंने केंद्र और बिहार सरकार के हलफनामे का संज्ञान लिया और उच्च न्यायालयों को चेताया। दूसरी और इस संबन्ध में चुनाव आयोग द्वारा दाखिल याचिका को मद्रास हाई कोर्ट ने सुनने से इनकार कर दिया। 

दरअसल कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच चुनावी रैलियों पर रोक नहीं लगाने को लेकर मद्रास उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई थी। इसके बाद चुनाव आयोग ने मद्रास हाई कोर्ट से अनुरोध किया है कि मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग से मीडिया को रोका जाए। हाल ही में चुनाव आयोग की कड़ी आलोचना करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा था कि कोविड की दूसरी लहर के लिए अकेले आपकी संस्था (चुनाव आयोग) जिम्मेदार है और आपके अधिकारियों को संभवतः हत्या के आरोप में बुक किया जाना चाहिए। इस याचिका को सुनने से मद्रास हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया।

उच्चतम न्यायालय में केंद्र और बिहार के सरकारी वकीलों ने कहा कि कोविड-19 से पीड़ित अधिकारियों सहित सरकारी अधिकारी महामारी की स्थिति से निपटने में अथक काम कर रहे हैं। कुमार ने कहा कि ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों को फटकारना काफी मनोबल गिराने वाली बात है। पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों को भी पता है कि यह नया वक्त है जहां उनका हर शब्द सोशल मीडिया का हिस्सा बन जाता है। पीठ ने कहा कि हम सम्मान और धैर्य की उम्मीद करते हैं।

मद्रास हाई कोर्ट की मौखिक टिप्पणी, जिसमें कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार माना गया था, पर चुनाव आयोग ने मद्रास न्यायालय से अनुरोध किया था कि मीडिया संस्‍‌थनों को निर्देश जारी किए जाएं कि अपने रिपोर्टों को आदेशों या निर्णयों में दर्ज टिप्पणियों तक सीमित करें और अदालती कार्यवाही के दरमियान की गई मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग से बचें। याचिका में ‌मद्रास उच्च न्यायालय की 26 अप्रैल की मौखिक टिप्पणियों के मीडिया कवरेज मुद्दा को विशेष रूप से उठाया गया था, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि चुनाव आयोग भारत में कोविड-19 की स्थिति के लिए इकलौता जिम्मेदार है और चुनावी रैलियों में आयोग कोविड प्रोटोकॉल का अनुपालन कराने में विफल रहा है, इसलिए इस पर हत्या का मुकदम चलाया जाना चाहिए। इसे सुनने से मद्रास हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया।

दरअसल मौखिक टिप्पणियां आदेश का हिस्सा नहीं होतीं इसलिए केंद्र या राज्य सरकार पर बाध्यकारी नहीं होतीं। कोरोना महामारी को लेकर देश के अलग-अलग हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर केंद्र सरकार की नाकामियों पर तीखी टिप्पणियां की थीं। चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के खिलाफ हाई कोर्ट की इन टिप्पणियों को मीडिया में काफी सुर्खिया मिलीं और इससे चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की आम जनमानस में काफी किरकिरी भी हुई। 

वास्तव में मीडिया में जो कुछ छपा वो कोर्ट रूम में हुई बहस का हिस्सा था और कोर्ट द्वार दिए गए औपचारिक आदेश में इसका कहीं जिक्र नहीं था। 26 अप्रैल को एक खबर प्रकाशित हुई कि मद्रास हाई कोर्ट ने कोरोना केसों में बढ़ोतरी के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया, जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार और मतदान हुआ था। चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक रैलियों में कोविड नियमों का पालन नहीं होने पर हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग कोरोना की दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार है, आपके अधिकारियों पर हत्या का केस दर्ज होना चाहिए! हत्या के केस को लेकर मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी ने खूब सुर्खियां बटोरीं, लेकिन कोर्ट के मूल आदेश में इसका उल्लेख नहीं था।

इसी तरह 24 अप्रैल को दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली में कोविड संकट को लेकर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर केंद्र या राज्य के किसी अधिकारी ने ऑक्सीजन की सप्लाई को बाधित किया, तो उसे छोड़ेंगे नहीं। दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पाली की खंडपीठ ने महाराजा अग्रसेन हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की थी।

दिल्ली हाई कोर्ट में ऑक्सीजन की सप्लाई में बाधा डालने पर फांसी देने की टिप्पणी कोर्ट रूम में बहस का एक हिस्सा था। हालांकि अपने वास्तविक आदेश में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आदेश देते हुए कहा कि बिना रुकावट मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई जारी रखने के लिए क्रोयेजेनिक टैंक्स को बढ़ाया जाए। इसके अलावा कोर्ट ने ऑक्सीजन सप्लायर्स को ऑक्सीजन से जुड़े डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़ी तमाम जानकारियां दिल्ली सरकार के अस्पताल के नोडल ऑफिसर से साझा करने का आदेश दिया था।

इसी तरह 28 अप्रैल को झारखंड हाई कोर्ट ने ड्रंग कंट्रोलर को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट की राय में ड्रग कंट्रोलर अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम रहा और जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी होती रही। कोर्ट ने कहा कि ड्रग कंट्रोलर का तरीका दुर्भाग्यपूर्ण है और गंभीर चिंता का विषय है। प्रथम दृष्टया, ऐसा लगता है कि ड्रग कंट्रोलर अपने कर्तव्यों को निभाने में नाकाम रहा, क्योंकि जांच करके दवाओं की ब्लैक मार्केटिंग को रोकना ड्रग कंट्रोलर की अहम जिम्मेदारी थी। हालांकि एक बार फिर, कोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर या उनके अधिकारियों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की। बल्कि कोर्ट ने राज्य सरकार से जीवन रक्षक जरूरी दवाओं की आपूर्ति बनाए रखने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में अदालत को अवगत कराने को कहा।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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