Sunday, April 28, 2024

मणिपुर विधानसभा सत्र महज 11 मिनट में खत्म, हिंसा पर नहीं हुई चर्चा

नई दिल्ली। मंगलवार (29 अगस्त) को मणिपुर विधानसभा सत्र 11 मिनट तक चला और फिर अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। राज्य में 3 मई को शुरू हुई हिंसा के करीब 4 महीने के बाद बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र में हिंसा पर कोई चर्चा नहीं हुई। सत्र के आखिरी पल में राज्य में फैले अशांति से निपटने के लिए “बातचीत और संवैधानिक तरीकों से” शांति स्थापित करने के लिए एक प्रस्ताव रखा गया और सदन ने इसे पारित भी कर दिया।

संविधान के तहत विधानसभा सत्र की स्थापित प्रक्रियाओं के पालन के लिए जल्दबाजी में 29 अगस्त को एकदिवसीय सत्र बुलाया गया था। आपको बता दें कि संविधान के अनुसार विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक समय का अंतर नहीं होना चाहिए और मणिपुर विधानसभा की यह अवधि 2 सितंबर को खत्म हो जाएगी।

मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा का असर सदन में भी दिखा। 60 सदस्यीय विधानसभा वाले इस राज्य में कुकी समुदाय के 10 विधायक सदन से नदारद थे। इन विधायकों ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए पहले ही कह दिया था कि वो इंफाल आने में असमर्थ हैं। जबकि 10 नागा विधायक और अन्य सभी विधायक सदन में उपस्थित थे।

राज्य में शांति स्थापित करने के लिए विधानसभा में पेश किए गए प्रस्ताव को एकतरफा पारित करने पर सवाल उठाते हुए मणिपुर कांग्रेस प्रमुख और विधायक मेघचंद्र सिंह ने कहा कि अध्यक्ष द्वारा सदन में प्रस्ताव की घोषणा नहीं की गई, न ही अध्यक्ष द्वारा इसे पढ़ा गया और न ही सदन में इस पर कोई बहस हुई।

प्रस्ताव में कहा गया है कि “क्योंकि शांति राज्य की इस वक्त पहली प्राथमिकता है, यह सदन लोगों के बीच सभी मतभेदों और दिक्कतों का हल करने का पूरा प्रयास करेगा। और इस प्रयास के लिए बातचीत और संवैधानिक रास्तों को अपनाया जाएगा, ये प्रयास पूर्ण शांति बहाली तक सतत रूप से चलेगा।”

सदन में विधानसभा सचिव द्वारा जारी दिन की कार्य सूची के अलावा एक और अतिरिक्त सूची थी। इस सूची में कार्य के केवल दो बिंदु अंकित किए गए थे, एक शोक सन्दर्भ था जिसमें अध्यक्ष, पांच पूर्व विधायकों और एक विधानसभा सचिव के निधन पर एक प्रस्ताव पेश करेंगे और दूसरा मुख्यमंत्री बीरेन सिंह द्वारा सलाहकार समिति की रिपोर्ट की प्रस्तुति के बारे में लिखा हुआ था।

विधानसभा सत्र शुरु होने का समय सुबह 11 बजे था, सदन में आकर स्पीकर थोकचोम सत्यब्रत सिंह के सीट ग्रहण करने के तुरंत बाद, कांग्रेस पार्टी के विधायक और मणिपुर के पूर्व सीएम ओकराम इबोबी सिंह ने समन द्वारा सत्र को बुलाए जाने का विरोध करते हुए कहा कि “सत्र कैसे बुलाया गया क्या इसी तरीके से सत्र बुलाया जाता है? ओकराम आगे कहते हैं कि “क्या यह मजाक चल रहा है? और फिर नारा लगाया-“आइए लोकतंत्र बचाएं, आइए संविधान बचाएं।”

एकदिवसीय सत्र की प्रकृति पर सवाल उठाते हुए ओकराम ने कहा कि एक नियमित सत्र के संचालन के लिए राज्यपाल द्वारा विधायकों को कम से कम 15 दिन पहले नोटिस भेजा जाता है। लेकिन क्या इस मामले में ऐसा कुछ हुआ? और इतने कम समय में समन भेजकर सत्र के लिए बुलाया गया है तो क्या इसे विशेष या आपातकालीन सत्र नहीं कहा जाएगा। ओकराम ने आगे कहा कि देश में कानून का कोई शासन नहीं है।

ओकराम इबोबी के साथ अन्य चार कांग्रेस विधायकों ने नारेबाजी शुरू कर दी और उनके हाथ में तख्तियां थीं जिन पर लिखा था, ‘लोकतंत्र बचाओ, संविधान बचाओ’।

सदन में कांग्रेस विधायकों के विरोध-प्रदर्शन के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने शोक संदेश पेश करते हुए दो मिनट का मौन धारण किया। हालांकि कांग्रेस के लोग अभी शांत नहीं हुए थे, जिसके बाद सीएम बीरेन सिंह ने यह साफ कर दिया कि सरकार का राज्य में हुए हिंसा को लेकर बहस कराने का कोई इरादा नहीं है।

हिंसा को लेकर सदन में चर्चा ना करने पर सीएम बीरेन सिंह ने तर्क दिया कि “ऐसा इसलिए है, क्योंकि प्रक्रिया के नियमों के हिसाब से किसी विचाराधीन मामले पर सदन में चर्चा की अनुमति नहीं है। और इसलिए, “अलग से चर्चा की भी आवश्यकता नहीं है।”  

सदन में हंगामा न थमता हुआ देख स्पीकर ने सत्र शुरू होने के महज 9 मिनट बाद ही सदन को 30 मिनट के लिए स्थगित कर दिया। दोबारा सदन शुरू होने के ठीक दो मिनट के अंदर कांग्रेस विधायकों ने फिर से विरोध शुरू कर दिया जिसके बाद 30 मिनट बाद शुरू हुआ सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थागित कर दिया गया।

सदन में कांग्रेस विधायकों द्वारा विरोध करने के पीछे वजह थी। कांग्रेस विधायकों ने ये मांग रखी थी कि विधानसभा सत्र कम से कम 5 दिन चलना चाहिए, और सदन में मणिपुर हिंसा को लेकर बहस हो, ये भी एजेंडा में होना चाहिए।

सत्र स्थगित होने के बाद मंत्री गोविंददास कोंथौजम ने सदन के अंदर कांग्रेस विधायकों द्वारा अपनाए गए रवैये को अनियंत्रित और असंवैधानिक बताया है। 

कांग्रेस विधायकों के रवैये पर मंत्री गोविंददास कहते हैं कि यह कांग्रेस विधायकों का व्यवहार ही था जिसकी वजह से राज्य की सबसे हॉट टॉपिक पर चर्चा करने का सुनहरा मौका गंवा दिया। राज्य के लिए ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस विधायक राज्य में केवल राष्ट्रपति शासन चाहते हैं। यहां तक कि राहुल गांधी ने भी मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की इच्छा जताई थी। हालांकि, उन्हें ये समझना होगा कि वे जो करने की कोशिश कर रहे हैं उससे संकट का हल नहीं निकलेगा और बल्कि संकट और बढ़ सकता है।

हालांकि, भाजपा के सहयोगी पार्टी के विधायक ने विधानसभा सत्र को लेकर सरकार की आलोचना की है। राज्य में भाजपा के गठबंधन सहयोगी भी सत्र को आयोजित करने के तरीके से नाखुश हैं। नेशनल पीपुल्स पार्टी के एक विधायक, जो मणिपुर में भाजपा गठबंधन के सहयोगी और एनडीए का भी हिस्सा हैं, ने सत्र को “पूरी तरह से अलोकतांत्रिक” बताया है और कहा कि सरकार ने सहयोगियों को अंधेरे में रखा।

विधायक ने आगे कहा कि, हम एनडीए और एनईडीए के गठबंधन का हिस्सा हैं और क्योंकि बीजेपी सत्ताधारी है तो हम मूकदर्शक बने हुए हैं। 

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि ये सत्र महज एक तमाशा था, और अगर सदन कुछ और दिन चल जाता तो बीजेपी में आंतरिक रूप से दरार आने लग जाती। एक्स पर एक पोस्ट में, रमेश ने कहा कि भाजपा ने हमेशा से ही, एक अवसर को महज औपचारिकता में बदल दिया है और मणिपुर में भी यही देखने को मिला है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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