दरभंगा/नई दिल्ली। बिहार के दरभंगा जिले के घनश्यामपुर प्रखंड के तुमौल ग्रामवासी मुन्ना मंडल और उनके परिवार के सामने भोजन का घनघोर संकट उपस्थित हो गया है।
गुड़गांव में दिहाड़ी मज़दूरी का काम कर रहे मुन्ना और उनके पांच सदस्यीय परिवार को स्थानीय पंचायत और प्रशासन ने 21 दिन के लिए होम क्वारंटाइन में रहने के लिए कहा है। लेकिन मुन्ना और उनके परिवार के लिए आवश्यक भोजन और ईंधन सामग्री की कोई व्यवस्था पंचायत या प्रशासन ने नहीं की।
घनश्याम पुर ब्लॉक के गोरहैर तुमौल पंचायत के रहने वाले मुन्ना के पास रहने के लिए अपना घर भी नहीं है जिसके कारण उन्हें जानवरों के लिए बनाई गई झोपड़ी में पिछले पांच दिनों से रहना पड़ रहा है।
मुन्ना के परिवार में उनकी पत्नी मंजू देवी और उनकी चार बेटियाँ हैं, जिसमें सबसे छोटे बचे की उम्र मात्र 3 साल है। मुन्ना का कहना है कि जानवरों के रहने के लिए इस झोपड़ी में मच्छरों के कारण बच्चों के लिए शाम के बाद से रहना मुश्किल हो जाता है।
14 मई को जब मुन्ना का परिवार गुड़गांव से ऑटो में बैठकर गांव आया तो एक जिम्मेदार नागरिक की तरह वह खुद सबसे पहले गांव में बने क्वारंटाइन सेंटर पर गए।
गांव के क्वारंटाइन सेण्टर पर महिलाओं और छोटे बच्चों के ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। अतः पंचायत के मुखिया सुरेश यादव ने उन्हें अंचलाधिकारी के आदेश पर मुन्ना और उनके परिवार को होम क्वारंटाइन के लिए भेज दिया ।
परदेस में मज़दूरी कर जीवन बसर कर रहे मुन्ना के पास रहने के लिए घर भी नहीं है। मज़बूरन उन्हें अपने परिवार के साथ पशुओं के लिए बनी झोपड़ी में रहने का इंतज़ाम करना पड़ा।
लेकिन मुन्ना और उनके परिवार के लिए झोपड़ी में रहना गुड़गांव से लौटने से कम यातनादायी नहीं है। मुन्ना कहते हैं, “हम यह सोचकर आए थे कि परदेस से भला देस। मगर यहाँ हमारी देखभाल का कोई इंतज़ाम नहीं है। न ही खाना दिया जा रहा है और न ही रात में मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी या कोई अगरबत्ती।”
गांव के मुखिया सुरेश यादव ने यह पूछने पर कि आप मुन्ना मंडल के परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था क्यों नहीं करते, कहा, “सर मेरे पास इसका कोई प्रावधान नहीं है। जो हो रहा है सब बीडीओ, सीओ, साहेब के आदेश पर हो रहा है।”
बीडीओ साहेब ने बताया कि “पहले हम सर्वेक्षण करेंगे कि कितने लोग होम क्वारंटाइन में हैं, फिर उनके लिए क्या किया जा सकता है, उस पर विचार करेंगे।”
“और सर्वेक्षण होने से पहले अगर किसी मज़दूर परिवार की जान चली जाए तो?”
“सर, इस सवाल का जवाब जिला प्रशासन दे सकता है।”
दरभंगा के जिलाधिकारी त्यागराजन ने व्हाट’सएप्प’ मैसेज के माधयम से बताया कि “ऐसा संभव नहीं है। चूँकि हमारे पास बहुत सारे मामले हैं, इसलिए अगर कोई चूक हुई है तो हम उसे दुरुस्त करेंगे।”
रिपोर्ट के लिखे जाने के चंद घंटे के अंदर स्रोतों से पता चला कि घनश्यामपुर अंचल के सीओ ने मुन्ना मंडल के से संपर्क किया और मुखिया को आदेश दिया कि वे अविलम्ब मुन्ना मंडल को झोपड़ी से निकलकर अपने घर जाने की आज़ादी दें और उनके राशन की भी व्यवस्था करें।
दरभंगा जिला ग्राम स्वराज अभियान समिति के संयोजक अजित कुमार मिश्र ने कहा कि “ अगर जिलाधिकारी हस्तक्षेप नहीं करते तो मुन्ना का परिवार अन्न के लिए कलप जाता जबकि बिहार राज्य सरकार की शताब्दी अन्न कलश योजना के तहत पंचायत के वार्ड सदस्य और मुखिया को यह अधिकार है कि वह भूख से जूझ रहे किसी भी निराश्रित परिवार के लिए प्रति वयस्क 10 किलो और प्रति अवयस्क 7 किलो अनाज देने की अनुशंसा स्थानीय डीलर से कर सकता है।”
इस संवाददाता के यह पूछने पर कि पंचायत के प्रतिनिधि इस योजना का लाभ क्यों नहीं निराश्रितों के लिए उठाते, अजित मिश्र ने बताया कि ज्यादातर पंचायत प्रतिनिधि को किसी भी योजना के बारे में ठीक ठीक मालूम नहीं है। और जिन चंद प्रतिनिधि को मालूम है वे भ्रष्ट हैं इसलिए नहीं चाहते कि इस तरह की किसी भी योजना का लाभ किसी को मिले।
(जेएनयू से पढ़े मिथिला के रहने वाले श्याम आनंद झा सामाजिक संस्था ‘क्रिया’ के संस्थापक हैं। और तमाम क़िस्म की सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं।)