तीन दिन पहले यूपी चुनाव में ड्यूटी करते हुये जान गँवाने वाले 1621 शिक्षकों की मौत को टर्म एंड कंडीशन्स के जंजाल में उलझाकर सिर्फ़ 03 शिक्षकों को टर्म्स एंड कंडीशन्स के माकूल मरा हुआ घोषित करने वाले उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी अपने सगे भाई का गरीबी रेखा के नीचे आय का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाकर ईडब्ल्यूएस कोटा से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति करवाते समय सारे टर्म्स एंड कंडीशन्स ताक पर धर दिये। इसके लिये सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु सिद्धार्थ नगर उत्तर प्रदेश के कुलपित सुरेंद्र दुबे जो नियमानुसार रिटायर हो जाने चाहिये, को एक्सटेंशन देकर उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री स्वतंत्र प्रभार सतीश द्विवेदी ने अपने सगे भाई अरूण द्विवेदी को आर्थिक तौर पर कमजोर समुदाय के (EWS) कोटे के तहत विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त करवाया।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इस पर टिप्पणी करते हुये अपने फेसबुक पेज पर लिखा है- “इस संकटकाल में यूपी सरकार के मंत्रीगण आम लोगों की मदद करने से तो नदारद दिख रहे हैं लेकिन आपदा में अवसर हड़पने में पीछे नहीं हैं। यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई गरीब बनकर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति पा गए। लाखों युवा यूपी में रोजगार की बाट जोह रहे हैं, लेकिन नौकरी “आपदा में अवसर” वालों की लग रही है। ये गरीबों और आरक्षण दोनों का मजाक बना रहे हैं”।
कांग्रेस महासचिव ने आगे लिखा है, “ये वही मंत्री महोदय हैं जिन्होंने चुनाव ड्यूटी में कोरोना से मारे गए शिक्षकों की संख्या को नकार दिया और इसे विपक्ष की साज़िश बताया।”
आगे उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी सवाल खड़े करते हुये कहा है, “क्या मुख्यमंत्री जी इस साज़िश पर कोई ऐक्शन लेंगे?”
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गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में ड्यूटी करते हुये कोरोना के शिकार होकर जान गँवाने वाले अधिकारियों और शिक्षकों के मुद्दे को भी लगातार उठाते हुये वो यूपी सरकार से पीड़ित परिवार को एक करोड़ रुपये हर्जाना और एक नौकरी की मांग करती आ रही हैं।
वहीं आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह ने इसके लिये सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार ठहराते हुये कहा है– “आज मेरे साथ यूपी के लाखों बेरोज़गार नौजवान योगी आदित्यनाथ से पूछना चाह रहे हैं, वो लाखों नौजवान जो चपरासी की नौकरी के लिये लंबी-लंबी लाइनें लगाकर फॉर्म भरते हैं और नौकरी नहीं मिलती और हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट जाना पड़ता है, वो लाखों शिक्षामित्र जिन्हें नौकरी के बजाय लाठियां मिली पूछ रहे हैं, वो लाखों ग्राम विकास अधिकारी जिनको नियुक्ति पत्र मिल गया था मगर नौकरी नहीं मिली वो पूछता है कि जब हम अपना हक़ मांगने लखनऊ आते हैं तो लाठियां और भद्दी-भद्दी गालियां दिलवातो हो लेकिन मंत्री के भाई को नियम क़ानून सब ताक पर रखकर आपने कैसे नौकरी दिलवा दी”।
आप नेता ने बेसिक शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री से जांच व कार्रवाई मांगते हुये कहा है– “इसलिये मांग करता हूँ कि ऐसा संवेदनहीन मंत्री जो अपने विभाग के 1621 शिक्षकों की मृत्यु की बात दरकिनार करते हुये इसे विपक्ष की साजिश बताता हो ऐसा चालाक और संवेदनहीन मंत्री जिसने सारे नियमों और क़ानूनों को ताक पर रखकर अपने भाई को ईडब्ल्यूएस कोटे में जिस पर किसी गरीब सवर्ण के बच्चे को नौकरी मिलनी चाहिये उसके में फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर अपने भाई को असिस्टेंट प्रोफेसर बनवाया उन्हें तुरंत इस्तीफा देना चाहिये और योगी आदित्यनाथ में गर तनिक भी नैतिकता है तो उन्हें आरोपी मंत्री को फौरन बर्खास्त करके उनके खिलाफ़ जांच के आदेश देने चाहिये”।
उन्होंने आगे कहा है कि बेसिक शिक्षा मंत्री को ये नहीं मालूम कि उनके विभाग के कितने शिक्षक ड्यूटी करते हुये कोरोना से मरे पर उन्हें ये मालूम है कि कैसे गरीबी रेखा के नीचे आय का फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर और उस वाइस चांसलर का इस्तेमाल करके जो रिटायर होने वाला था उसको एक्सटेंशन देकर मंत्री के भाई की नियुक्ति की जा सकती है। मंत्री का भाई आर्थिक रूप से कमजोर कैसे हो गया।
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की नियुक्ति तत्काल रद्द किए जाने की मांग करते हुए कहा कि यह गरीबों व सामान्य वर्ग के आरक्षण पर सत्ता में बैठे लोगों की मिलीभगत से उनके हक पर दिनदहाड़े डाला गया है। एक तरफ उत्तर प्रदेश में लाखों युवा रोजगार के लिये दर-दर भटक रहे हैं, दूसरी तरफ आपदा में अवसर तलाशने वाले नौकरी हड़प रहे हैं।
उन्होंने बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी की आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग के सामान्य कोटे से सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के मामले में हुये फर्जीवाड़े में संलिप्त लोगों के विरुद्ध विधिक कार्यवाही व बेसिक शिक्षा मंत्री की संलिप्तता की जांच कराये जाने की मांग करते हुये कहा है कि पूर्व से ही दूसरे विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत मंत्री के भाई कैसे आर्थिक रूप से कमजोर हो सकते हैं? उनके द्वारा किसकी सिफारिश पर जिला प्रशासन से निर्धन आय वर्ग का प्रमाणपत्र प्राप्त किया गया इसकी जांच भी आवश्यक हो गयी है। यह नियुक्ति पूरी तरह से एक फर्जीवाड़ा है। क्योंकि इसमें गलत तथ्यों के साथ बड़ी सिफारिश के साथ प्रमाणपत्र प्राप्त करने के साथ सामान्य वर्ग के निर्धन आयवर्ग के अभ्यर्थी का अधिकार हड़पा गया है।
उन्होंने आगे कहा कि– “ये वही मंत्री हैं जो पंचायत चुनाव ड्यूटी में कोरोना संक्रमण से ग्रसित होकर अपनी जान गंवाने वाले शिक्षकों की संख्या के आंकड़ों में न सिर्फ हेराफेरा की थी, बल्कि मंत्री महोदय अपनी वाह-वाही में उनकी संख्या तीन बताकर 1621 मृतक शिक्षकों के परिवार के गम को गम नहीं मानते हुए संवेदनहीनता का परिचय दे रहे थे। अब अपने भाई की नियुक्ति मामले में मौन साधकर बोलने से मना कर रहे हैं।
इसके अलावा उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूमिका और नैतिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या विश्वविद्यालय की कुलाधिपति व प्रदेश के मुख्यमंत्री, अपने मंत्री द्वारा अपने भाई को नियम विरुद्ध लाभ पहुंचाने के षड्यंत्र का खुलासा हो जाने पर कार्यवाही करेंगे? उन्होंने कहा कि इस प्रकरण से यह साबित हो गया है कि सत्तारूढ़ दल भाजपा को नियम-कानून से कोई लेना देना नहीं है। वह आपदा में अवसर तलाशने वाली प्रजाति की तरह कार्य करने में भरोसा करती है। उसका सामान्य वर्ग के निर्धनों के लिये आरक्षण व्यवस्था में कमजोर अभ्यर्थी का अधिकार हड़पना गलत नहीं लगता है। उन्होंने कहा कि यह पूरा फर्जीवाड़ा मंत्री के संरक्षण में यदि नहीं हुआ तो उन्हें अपना मुंह खोलना चाहिये। उनके मौन से साबित हो गया है कि पूरे प्रकरण में उनकी गम्भीर संलिप्तता है और वह सवालों से बच रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूरे प्रकरण की निष्पक्षता के साथ जांच के अलावा मंत्री के भाई अरुण द्विवेदी की नियुक्ति तत्काल रद्द करने के साथ उनके विरुद्ध नियम सम्मत कार्यवाही की जाए।
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