मोदी सरकार का बजट मजबूरी का : एआईपीएफ 

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लखनऊ, मोदी सरकार द्वारा कल पेश किया गया बजट मजबूरी का बजट है और यह इन अर्थों में है कि लंबे चौड़े दावे और बड़ी-बड़ी बातों के बावजूद बजट का आकार नहीं बढ़ा है। यदि मुद्रा स्फीति को ध्यान में रखा जाए तो वास्तव में 50 लाख 65 हजार करोड़ के प्रस्तावित बजट में कोई वृद्धि नहीं हुई है। बजट पर यह प्रतिक्रिया आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्य समिति की तरफ से दी गई। 

इस बजट में मिडिल क्लास को जरूर 12 लाख रुपए तक की इन्कम टैक्स में छूट देने की बात कही गई हो लेकिन इसके जरिए जो बाजार में मंदी को दूर करने की बात और लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने की बात की जा रही है वह वास्तविकता से परे है।

इससे बाजार में छाई मंदी के संकट का हल नहीं होगा। पूरा बजट कॉरपोरेट घरानों के लिए परोसा गया है और सार्वजनिक क्षेत्र को कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए उपयोग में लगाया गया है। बीमा और बिजली जैसे क्षेत्र के निजीकरण में सौ फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत देने का प्रस्ताव किया गया है।

कारपोरेट घरानों को टैक्स में छूट जारी है। मौजूदा संकट के हल और शिक्षा-स्वास्थ्य व रोजगार के लिए संसाधन जुटाने हेतु कॉरपोरेट घरानों की संपत्ति पर टैक्स और काली पूंजी की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने की कोई योजना बजट में नहीं लाई गई। देश भर में सरकारी विभागों में खाली पड़े 1 करोड़ नौकरियों को भरने पर बजट मौन है।

आम जनता के हितों के लिए खर्च होने वाले धन में एक लाख करोड़ रुपए के खर्च कम किए गए हैं। वास्तविकता यह है कि अभी तक जितना आवंटन खर्च के लिए बजट में किया जाता है उतना भी सरकार खर्च नहीं करती है। आम जनता की जीवन के लिए बेहद जरूरी खाद्य सब्सिडी, कृषि व सहायक गतिविधियों, शिक्षा,स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, समाज कल्याण, शहरी विकास के बजट में कटौती की गई है।

इनमें प्रस्तावित आंकड़े करीब 2024-25 के बराबर ही है और अगर 5 फ़ीसदी मुद्रा स्फीति के हिसाब में लिया जाए तो आवंटन वास्तव में घट गए हैं। खास सब्सिडी में पिछले वर्ष आवंटित 2.05 लोग लाख करोड़ के सापेक्ष 2.03 लाख करोड रुपए आवंटित किए गए हैं।

शिक्षा का बजट 1.26 लाख करोड़ 2024-25 में आवंटित किया गया था जिसमें महज 3012 करोड रुपए की वृद्धि की गई है। जो 2.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी है और मुद्रास्फीति की तुलना में वास्तव में घट गई है। स्वास्थ्य के बजट में भी कुल मिलाकर कमी की गई है।

मनरेगा का पिछले वर्ष आवंटित बजट 86000 करोड़ रुपए ही इस बार भी रखा गया है जो आवश्यक 100 दिन काम के आवंटन के लिहाज से बेहद कम है और महंगाई की तुलना में घटाया गया है। अनुसूचित जाति और जनजाति के बजट में भी कटौती की गई है। अनुसूचित जाति के लिए जहां 3.4 प्रतिशत वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए 2.6 प्रतिशत सब प्लान का बजट आवंटित किया गया है।

रोजगार के लिए जरूरी आईटी और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में भी आवश्यक बजट का आवंटन नहीं किया। जिससे मैन्युफैक्चरिंग समेत सर्विस सेक्टर में भी रोजगार में बड़े पैमाने पर वृद्धि हो सकती थी। कुल मिलाकर यह बजट जन विरोधी है और कॉर्पोरेट घरानों के मुनाफे के लिए है।

(प्रेस विज्ञप्ति) 

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