Friday, March 29, 2024

बैकफुट पर आई मोदी सरकार, टेके किसानों के सामने घुटने

पूरा देश देख रहा है, पूरे देश के मेहनतकश, किसान, मजदूर, बैंक कर्मचारी, रेल कर्मचारी और अन्य तबके देख रहे हैं कि निर्वाचित निरंकुश सरकार को पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश कि किसानों ने किस तरह तीनों कृषि कानूनों पर घुटने के बल ला खड़ा कर दिया। अगर अंधाधुंध निजीकरण, सरकारी संपत्तियों को औने पौने दामों में बेचने, भीषण मंहगाई, बेरोजगारी, महंगी होती जा रही शिक्षा और इलाज तथा कार्पोरेटपरस्ती के खिलाफ देश भर के किसान, मजदूर और छात्र-नौजवान सड़क पर उतर जाएं तो क्या होगा? कृषि कानून वापस लेने के निर्णय के पीछे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को भी साधुवाद जो इस मुद्दे पर लगातार मुखर रहकर नरेंद्र मोदी सरकार को घेरते रहे। कृषि कानूनों पर उच्चतम न्यायालय ने जहां एक ओर इनके क्रियान्वयन पर रोक लगा दी वहीं भक्त मंडली द्वारा बंद रास्तों को खोलने के लिए एक के बाद एक याचिकाओं के झांसे में नहीं आया और स्पष्ट कर दिया कि किसानों को आन्दोलन का अधिकार है और कृषि कानूनों से उत्पन्न विवाद का हल सरकार करे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया है। केंद्र सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून को भी वापस लेना पड़ा था ।

केंद्र सरकार की ओर से नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के आगे आखिरकार केंद्र सरकार को झुकना पड़ा है।

राकेश टिकैत के नेतृत्व में किसान तीनों कानून वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे। किसानों ने साफ कर दिया था कि उन्हें इन कानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं। केंद्र सरकार ने किसानों की चिंता पर संशोधन की बात कही। दो साल तक कानून सस्पेंड करने का भी आश्वासन दिया लेकिन किसान आंदोलन खत्म करने को राजी नहीं हुए। पीएम मोदी ने इसका भी जिक्र अपने संबोधन में किया।

ये पहला अवसर नहीं है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को अपने कदम वापस लेने पड़े। इससे पहले भी पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को एक अध्यादेश वापस लेना पड़ा था। केंद्र सरकार को जब भूमि अधिग्रहण अध्यादेश वापस लेना पड़ा था, तब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए हुए कुछ ही समय हुआ था।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता में आने के कुछ ही महीने बाद केंद्र सरकार ने नया भूमि अधिग्रहण अध्यादेश बनाया। इसके जरिए भूमि अधिग्रहण को सरल बनाने के लिए किसानों की सहमति का प्रावधान खत्म कर दिया गया था। जमीन अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी किसानों की सहमति जरूरी थी। नए कानून में किसानों की सहमति का प्रावधान समाप्त कर दिया था।

किसानों ने इसका विरोध किया। सियासी दलों ने भी भारी विरोध किया जिसके कारण सरकार ने इसे लेकर चार बार अध्यादेश जारी किए लेकिन वो इससे संबंधित बिल संसद में पास नहीं करा पाई। अंत में केंद्र सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े और पीएम मोदी की सरकार ने 31 अगस्त 2015 को ये कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान इस बाबत प्रस्ताव लाया जाएगा और इन तीनों कानूनों को वापस ले लिया जाएगा। हालांकि उन्होंने कहा कि ये तीनों कानून किसानों के हित में थे और ज्यादातर किसान इसके पक्ष में थे, लेकिन कुछ किसान इससे सहमत नहीं थे, इसीलिए वे इन्हें वापस ले रहे हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles