देश के कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति पद खाली रहने के समाचारों के बीच महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा को लंबे अंतराल के बाद आखिरकार कुलपति मिल ही गया। दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी विभाग की वरिष्ठ प्रोफेसर कुमुद शर्मा को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है।
हालांकि इस नाम को लेकर चर्चाएं कई महीनों से चल रही थी जो अंततः सही साबित हुई। प्रो. कुमुद शर्मा गंभीर अध्येता होने के साथ साथ हिंदी और पत्रकारिता विषय में गहरी रुचि रखने वाली हैं, ऐसे में उनके हिंदी विश्वविद्यालय की कुलपति बनने के बाद इस परिसर की स्थिति को सुधारने और अंतरराष्ट्रीय महत्व की वृद्धि और समृद्धि करने की आस भी लगाई जा रही है।
हिंदी विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति और शासन-प्रशासन पर कई सवाल पहले भी उठ चुके हैं। प्रो. रजनीश शुक्ल के २०२३ में दिए गए इस्तीफे के बाद हिंदी विश्वविद्यालय अब तक कार्यवाहक कुलपतियों के भरोसे चल रहा था। कुछ महीने नागपुर स्थित आईआईएम के निदेशक भीमराय मैत्री को कुलपति का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया था मगर तमाम विरोध और जांच के बाद उनकी नियुक्ति को अवैध करार देकर उन्हें पदच्युत कर दिया गया।
उसके बाद हिंदी विश्वविद्यालय के ही प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने फरवरी 2024 तक कार्यवाहक कुलपति का पद संभाला। उनके बाद करीब एक हफ्ते का दायित्व वरिष्ठ प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल ने भी संभाला। मंत्रालय ने 06 मार्च को एक पत्र जारी करते हुए प्रो. कुमुद शर्मा को स्थाई कुलपति नियुक्त कर दिया। अब स्थाई कुलपति की नियुक्ति होने से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि महाराष्ट्र के एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय में माहौल ठीक होगा और व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चलेंगी।
प्रो. कुमुद शर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए और पीएचडी किया है। रांची विश्वविद्यालय से उन्होंने डी लिट की उपाधि ली और उसके बाद देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में अध्यापन कार्य से जुड़ गईं। शुरुआत में उन्होंने बतौर पार्ट टाइम लेक्चरर इविंग क्रिश्चियन कॉलेज (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) से अध्यापन शुरू किया।
उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में जाकर विभिन्न सम्बद्ध कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। समय-समय पर उनके सामाजिक, साहित्यिक और कलात्मक लेखों का प्रकाशन देश के बड़े समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता है। प्रो. कुमुद शर्मा के वक्तव्य और भाषणों को डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी समय-समय पर सुना जा सकता है। साहित्य अकादमी से भी बतौर उपाध्यक्ष वो जुड़ी रहीं।
प्रो. कुमुद शर्मा की जितनी पकड़ हिंदी साहित्य में हैं उतनी ही मीडिया क्षेत्र में भी है। एक तरफ जहां उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रो. जगदीश गुप्त के मार्गदर्शन में ‘नई कविता में राष्ट्रीय चेतना का स्वरूप विकास’ जैसे विषय पर शोध कर डॉक्टर की उपाधि ली तो दूसरी ओर रांची विश्वविद्यालय में ‘भूमंडलीकरण : भारतीय मीडिया का बदलता परिदृश्य’ जैसे विषय से डी लिट की उपाधि प्राप्त की।
एक तरफ हिंदी साहित्य की गहरी समझ तो दूसरी ओर मीडिया के चाल चरित्र को भी उन्होंने बखूबी समझा जाना है। आधी दुनिया का सच, हिंदी के निर्माता, विज्ञापन की दुनिया, जनसंपर्क प्रबंधन, भूमंडलीकरण और मीडिया जैसे गंभीर विषयों पर उनकी किताबों का प्रकाशन उन्हें एक गंभीर और जिम्मेदार अध्येता के रूप में स्थापित करता है।
वर्तमान समय में देश में जितने भी केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं उनमें महिला कुलपति बहुत कम ही हैं। मगर यह आंकड़ा कुछ सालों से बढ़ा है। वर्तमान में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी महिला कुलपति ही संस्थानों की बागडोर संभाली हुई हैं, ऐसे में एक नाम अब प्रो. कुमुद शर्मा का भी जुड़ गया है।
महिलाओं के हाथों में विगत दशक में नेतृत्व बढ़ा है इसमें कोई दो राय नहीं है। हिंदी विश्वविद्यालय जिस उद्देश्य के लिए स्थापित किया गया था, वर्तमान में अभी उन उद्देश्यों की पूर्ति होती नहीं दिख रही है। ऐसे में हिंदी विश्वविद्यालय को पहली महिला कुलपति के रूप में मिली प्रो. कुमुद शर्मा के सामने इस संस्थान को उसके शिखर तक ले जाने की जिम्मेदारी के साथ पिछले सालों में उत्पन्न हुई समस्याओं से निपटने की चुनौतियां भी हैं।
हिंदी विश्वविद्यालय के स्थापना के बाद अब तक स्थाई कुलपतियों में अशोक बाजपेई, गोपीनाथन, गिरीश्वर मिश्र, विभूति नारायण राय आदि प्रशासन के साथ-साथ हिंदी की गहरी समझ रखने वाले लोग रहे। इस क्रम में प्रो. कुमुद शर्मा भी हिंदी साहित्य से जुड़ी है तो माना जा रहा है कि हिंदी विश्वविद्यालय अपनी अंतरराष्ट्रीय अस्मिता को पुनः स्थापित करने की ओर अग्रसर होगा।
अस्थाई कुलपतियों की देखरेख में बजट की कमी, प्रशासनिक कार्यप्रणाली में ढीलापन, परिसर विकास जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी सुचारू रूप से संचालित नहीं होते थे जो कि अब ठीक ढंग से संचालित होंगे, ऐसा माना जा रहा है। विभागों में शिक्षकों की नियुक्तियां, संसाधनों की कमी को दूर करना, अकादमिक परिवेश सुधारने सहित कई छात्र हित के मुद्दे नई कुलपति के लिए मुद्दे बनेंगे।
हालांकि प्रो. कुमुद शर्मा कई बड़े पदों पर दायित्व निभा चुकी हैं और उसमें वो निपुण भी मानी जाती हैं। साथ ही साथ इलाहाबाद जैसी जगह की साहित्यिक और राजनीतिक आबोहवा से भी वो काफी नजदीक से परिचित हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपनी पूर्व छात्रा की इस उपलब्धि पर मगन है। शुभ संदेश भेजे जा रहे हैं।
हालांकि वर्धा में भीषण गर्मी और बसंत के बीच यह ख़बर सभी के लिए सुखद है। अभी इस विश्वविद्यालय में कुलसचिव के पद पर प्रो. आनंद पाटील हैं, जो स्वयं हिंदी भाषा के साथ-साथ अन्य पांच भाषाओं के जानकार हैं। अब यह बसंत कैसा बीतता है और आने वाली प्रचंड गर्मी में वर्धा की पठारी पर बसे इस अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय का वातावरण छात्रों के लिए कितना अनुकूल होता है यह नई कुलपति के कार्यों पर निर्भर करेगा।
(विवेक रंजन सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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