Thursday, April 18, 2024

नई संसद के उद्घाटन को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने

नई दिल्ली। संसद की नई बिल्डिंग के उद्घाटन को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्षी दल आमने-सामने खड़े हो गए हैं। विपक्ष दो मुद्दों को लेकर सत्ता पक्ष पर सवाल उठा रहा है। पहला सावरकर के जन्मदिन पर नई संसद का उद्घाटन और दूसरा राष्ट्रपति की जगह पीएम मोदी द्वारा उसका किया जाना। आपको बता दें कि नये संसद भवन का 28 मई को उद्घाटन की घोषणा की गयी है और बताया गया है कि इसका उद्घाटन पीएम मोदी करेंगे। इस खबर के आने के बाद से ही प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है। विपक्ष के एक हिस्से ने इस पर अपना कड़ा एतराज जाहिर किया है।

इसके पहले कांग्रेस समेत तमाम दूसरे दलों ने संसद की नींव रखे जाने के मौके पर दिसंबर, 2020 में आयोजित समारोह का भी बहिष्कार किया था। विपक्ष ने उस समय पूरे आयोजन को लेकर ही सवाल उठाया था। उसका कहना था कि एक ऐसी स्थिति में जबकि किसानों का आंदोलन चल रहा है और पूरा देश कोरोना महामारी ग्रस्त है साथ ही लॉकडाउन से आर्थिक हालत बेहद बुरी हो गयी है इस तरह के किसी कार्यक्रम का कोई औचित्य नहीं है।

अब पार्टियां फिर सरकार के फैसले पर सवाल उठा रही हैं। ज्यादातर दलों को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उद्घाटन किए जाने पर एतराज है। उनका कहना है कि इस काम के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित किया जाना चाहिए। सूत्रों के हवाले से आयी खबर में बताया गया है कि इस मामले में कांग्रेस कहना था कि शामिल होना है या फिर बहिष्कार करना है विपक्ष मिलकर इसका फैसला करेगा।

कांग्रेस लगातार अपने रुख को कठोर करती जा रही है लेकिन इसके साथ ही वह बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। क्योंकि नई बिल्डिंग का उद्घाटन सावरकर के जन्मदिन के मौके पर हो रहा है। लेकिन सावरकर के मसले पर शिवसेना के रुख के चलते जिसमें उसने इस बात को साफ कर दिया था कि वह सावरकर पर किसी तरह का हमला बर्दाश्त नहीं करेगी, कांग्रेस के लिए मामला थोड़ा टेढ़ा हो गया है। यहां तक कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार ने भी कहा था कि कांग्रेस को सावरकर पर हमले से बचना चाहिए।

सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि “यह हमारे देश के सभी निर्माताओं का अपमान है। गांधी, नेहरू, पटेल, बोस आदि को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया है। डॉ. अंबेडकर को पूरी तरह से नकार दिया गया है।”

रविवार को वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी इस मैदान में कूद पड़े। उनका भी कहना है कि भवन का उद्घाटन पीएम को नहीं बल्कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को करना चाहिए। क्योंकि वह एक संवैधानिक पद है।

जबकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोमवार को इस मामले को दलित और आदिवासियों से जोड़ दिया। उनका कहना था कि “ऐसा लगता है कि मोदी सरकार द्वारा राष्ट्रपति के पद को दलित और आदिवासी समुदायों से सुनिश्चित करने के पीछे एकमात्र वजह चुनाव है। पहले पूर्व राष्ट्रपति श्री कोविंद नयी संसद भवन की नींव रखे जाने पर नहीं बुलाए गए और अब नई संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया जा रहा है।”

उन्होंने कहा कि गणतंत्र की सबसे बड़ी कानून बनाने वाली इकाई संसद है और राष्ट्रपति उसकी संवैधानिक मुखिया हैं। उन्होंने कहा कि “वह अकेली सरकार, विपक्ष और हर नागरिक का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह भारत की पहली नागरिक हैं। नई संसद भवन का उनके द्वारा उद्घाटन भारत सरकार के लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादा को परिलक्षित करेगी। मोदी सरकार ने बार-बार इस मर्यादा का अपमान किया है। भाजपा-आरएसएस ने अपनी सरकार के दौरान राष्ट्रपति के पद को महज टोकेन तक सीमित कर दिया है।”

इस बीच आज बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने मौजूदा संसद के औचित्य पर एक बार फिर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि नई संसद की कोई जरूरत ही नहीं थी। और जो हमारी मौजूदा संसद है वह महज एक बिल्डिंग नहीं बल्कि देश की एक विरासत है। उसमें आजादी की लड़ाई और उसका इतिहास छुपा है। लिहाजा उसके बदले जाने का कोई औचित्य नहीं था। दुनिया में किसी देश ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कहा कि कभी किसी देश को जरूरत पड़ी तो उसने अपनी पुरानी बिल्डिंग में सुधार कर उसका इस्तेमाल किया। 

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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