पटना। पटना से लगभग 400 किलोमीटर दूर स्थित किशनगंज जिला के रमेश शाह 2 दिन पहले राहुल गांधी से मुलाकात करने पटना आए हुए हैं। वो बताते हैं कि, “2014 और 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले इस तरह की विपक्षी बैठक हुई रहती तो बीजेपी का काम तमाम था। बीजेपी के बड़े नेता चुप जरूर हैं लेकिन एक बात तय है कि साहेब को बिहार की इस विपक्षी बैठक ने बेचैन तो कर ही दिया है।” इस सबके बीच जदयू के एक पोस्टर पर लिखा हुआ है कि ‘दलों का नहीं, भारतीय दिलों का महागठबंधन।‘
उसमें से एक राहुल सिंह बताते हैं कि, “यह बैठक विपक्ष को मजबूत बनाएगी। इसलिए हम लोग आए हैं। बिहार की तरह अन्य राज्यों में भी सभी पार्टी विपक्ष बनकर बीजेपी के खिलाफ लड़ें।
राजधानी पटना का माहौल पूरा बदला हुआ सा है। दीवारों पर पोस्टर भी दिख रहे हैं। पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की मेजबानी में विपक्षी एकता की बैठक में 17 दलों के मुखिया ने भाग लिया। यहां आए नेताओं ने अपनी-अपनी बात रखी।
राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, द्रमुक नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ए.के. स्टालिन और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला सहित अन्य और पार्टी के नेताओं ने बैठक में भाग लिया। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि विपक्षी दलों की यह बैठक ऐसे वक्त में हुई है। जब बीजेपी के शासन में देश महंगाई,बेरोजगारी,सांप्रदायिकता और नफरत की बाढ़ में डूब रहा है।
क्या हुआ बैठक में
बैठक के तुरंत बाद सभी नेताओं ने एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की और एक-एक कर अपनी बात रखी। सबसे पहले जेडीयू के नीतीश कुमार ने बैठक के बारे में अपनी बात रखते हुए कहा कि यह अच्छी और महत्वपूर्ण मुलाकात रही और इसमें हम सब एक साथ आगे बढ़ने पर सहमत हैं। अगली मीटिंग में कौन कहां से लड़ेगा यह तय हो जाएगा। हम सब का साथ में चलना देश के हित में जरुरी है। उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी देश के इतिहास को बदल रही है और ये लोग तो आजादी की लड़ाई को भी बदल कर रख देंगे। इस समय देश में हम सभी एकजुट होकर इन चुनौतियों से लडे़ेंगे।
करीब 3 घंटे 45 मिनट चली बैठक में लगभग 16-17 विपक्षी दलों के नेताओं ने अपनी बात रखी। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि, आज 3 चीज़ें तय हो गई हैं। हम लोग एक हैं, हम एकजुट होकर लड़ेंगे, तीसरी बात है हम साथ हैं और हम साथ लड़ेंगे। हमें विपक्ष मत बोलो- हम भी देश के नागरिक हैं। हम लोग भी देश प्रेमी हैं, मणिपुर जलने से हमें भी तकलीफ होती है। भाजपा की जो तानाशाही चल रही है, उसको खत्म करना है। कोई उनके खिलाफ बोलता है तो उसके पीछे ईडी और सीबीआई को लगा देते हैं। ममता ने आगे कहा कि बिहार जनान्दोलनों की धरती है यहां से जो कारवां चलता है वो अपना उद्देश्य ज़रुर पूरा करता है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि, “विपक्ष की बैठक में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक के नाम हैं। सभी नेता एक होकर आगे चुनाव लड़ने के लिए एक सूत्र तैयार कर रहे हैं। हम सभी राज्यों में अलग-अलग रणनीति बनाऐंगे। अगले महीने विपक्ष की दूसरी मीटिंग शिमला में होगी जहां 2024 के लिए अंतिम रुप से तैयारी कर ली जाएगी।
विपक्ष के मुख्य चेहरों में से एक राहुल गांधी ने कहा कि “हिंदुस्तान की नींव पर आक्रमण हो रहा है। मैंने मीटिंग में भी कहा ये विचारधारा की लड़ाई है। हमारे बीच भी कुछ मनमुटाव है लेकिन हमने ये निर्णय लिया है कि हम एक साथ हमारी विचारधारा की रक्षा करेंगे”।
पूरी बैठक के सारांश पर नजर डालें तो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाने पर चर्चा हुई। वहीं सभी दल 2024 में बीजेपी को रोकने के लिए एकमत हुए। पार्टियों के आपसी मतभेद पर आगे आए शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने कहा कि एक साथ आना होगा, दूर करने होंगे आपसी मतभेद।
एनडीए में अब भी 23 पार्टियां हैं
बिहार में माले के मीडिया प्रभारी कुमार परवेज बताते हैं कि, “इतिहास में शायद पहली बार ही इस तरह की बैठक हो रही है जिसमें कई धाराओं की पार्टियां भाजपा से देश को बचाने के लिए आज एक मंच पर आ रही हैं। विपक्षी एकता की मुहिम को यहां तक लाने के लिए नीतीश कुमार धन्यवाद के पात्र हैं, लेकिन असली शिल्पकार तो दीपंकर भट्टाचार्य ही माने जाएंगे। भाकपा-माले द्वारा आयोजित पटना के महाधिवेशन के दौरान भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता के गतिरोध को भंग किया था। इसी का नतीज़ा है कि आज उसी पटना में विपक्ष की 18 पार्टियां एक साथ बैठ रही हैं।”
बिहार की राजनीति पर लिखने वाले पत्रकार और लेखक प्रियांशु कुशवाहा बताते हैं कि, “विपक्षी एकता के लिए पटना में 17 बड़ी पार्टियों के नेता बैठ रहे हैं। मनु मंडली ने “मोदी अकेला है” का राग छेड़ दिया है। ऐसा कहने वाले जहां मिले उनको कायदे से ठीक कीजिए और बताइए कि एनडीए में अब भी 23 पार्टियां हैं। इनमें से 17 पार्टियां ऐसी हैं, जिनके लोक सभा या राज्य सभा में सदस्य हैं। चिराग़, मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश साहनी, चंद्रबाबू नायडू, ओपी राजभर जैसे नेता हैं, जो अब एनडीए के साथ जाने वाले हैं। तो मोदी अकेला नहीं है। मोदी अपने सहयोगी दलों का वोट बैंक हथियाने के बावजूद अकेला होने का ढोंग कर रहा है। 24 के चुनाव में जनता ये ढोंग भी उतार देगी।”
जेपी के शिष्य नीतीश जेपी की राह पर
बिहार के बहुजन लेखक दुर्गेश कुमार लिखते हैं कि, “इस बैठक के सूत्रधार ज़रूर नीतीश कुमार हैं, लेकिन जड़ में लालू यादव बैठे हुए हैं। दौर बदलने के साथ निश्चित ही लोग बदल जाते है, किंतु इतिहास कई बार दोहराया जाता है। जेपी को स्मृतियों में रखे हुए आज वामपंथी, मध्य मार्गी, समाजवादी सब एकजुट हो कर पाटलिपुत्र आ गए हैं”।
(पटना से सक्षम मिश्रा की रिपोर्ट।)
विपक्ष के विभिन्न विचारधाराओं वाले नेताओं को एक मंच पर लाने के लिए नीतीश का नाम इतिहास में अंकित होगा। यह मिलन समय की मांग थी। बैठक के निर्णय को ममता के तीन लाइन से समझा जा सकता है। जनचौक ने इस मिलन समारोह को निष्पक्षता से चित्रित किया है।के