Thursday, April 25, 2024

पाकिस्तानी हिंदू मृत परिजनों की अस्थियां गंगा में कर सकेंगे विसर्जित, भारत सरकार ने स्पॉन्सरशिप क्लाज को किया खत्म

पाकिस्तान के हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए यह राहत भरी खबर है कि अब वे मृत परिजनों की अस्थियां गंगा में विसर्जित कर सकेंगे, जिनका हिंदुस्तान में कोई रिश्तेदार नहीं रहता। भारत सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए स्पॉन्सरशिप क्लाज को फौरी तौर पर खत्म कर दिया है और यह फैसला तत्काल प्रभाव से लागू होगा। इसके लिए विदेश मंत्रालय ने स्पॉन्सरशिप पॉलिसी में परिवर्तन किया है। इस बड़े बदलाव के बाद अब उन 500 से अधिक पाकिस्तानी हिंदुओं की अस्थियां हरिद्वार स्थित गंगा नदी में रस्मों रिवाज के साथ विसर्जित की जा सकेंगी, जिनका अंतिम संस्कार पाकिस्तान में हुआ था।

पाकिस्तानी अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन मृतकों की अंतिम इच्छा थी कि उनकी अस्थियां गंगा में प्रवाहित की जाएं। ऐसा फिलहाल तक संभव इसलिए नहीं हो पा रहा था कि ‘अस्थि विसर्जन’ के लिए सिर्फ उन्हीं लोगों को इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग वीजा जारी करता था जिनके रिश्तेदार भारत से स्पॉन्सरशिप भेजते थे। अब स्पॉन्सरशिप क्लाज हटा लिया गया है और कोई भी पाकिस्तानी हिंदू अस्थियां विसर्जित करने के लिए दस दिन की भारत यात्रा पर आ सकता है। ऐसा पहली बार होगा कि परिवार का कोई भी सदस्य खुद पाकिस्तान से अस्थियां लाकर हरिद्वार विसर्जन के लिए जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तानी हिंदुओं ने भारत सरकार की इस नई नीति का स्वागत किया है।

1947 के बंटवारे के बाद कुछ हिंदू और सिख परिवार पाकिस्तान में ही रह गए। भारत में उनका कोई भी रिश्तेदार या जानकार न होने के चलते वे अस्थि विसर्जन के लिए पाकिस्तान से नहीं आ सकते थे। भारत और पाकिस्तान के बीच 2019 के बाद रिश्ते खासे तनावपूर्ण हैं। व्यापार बंद है तो आवाजाही में भी भारी मशक्कत होती है। बहुतेरे पाकिस्तानी हिंदुओं की आखरी ख्वाहिश होती है कि जब भी माहौल माकूल हो और जाने के रास्ते सहज हो जाएं तो उनकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जाए। वे पाकिस्तानी हिंदू तो आसानी से ऐसा कर लेते थे जिन्हें भारत से उनके रिश्तेदार या परिचित इसके लिए स्पॉन्सरशिप भेजते थे लेकिन उनकी अर्जियां सिरे से खारिज हो जाती थीं, जिनका कोई रिश्तेदार या करीबी भारत में नहीं है। 2019 से पहले यह स्थिति नहीं थी। आसानी के साथ वीजा मिल जाता था।

द ट्रिब्यून एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के सिंध प्रांत के धारपारकर जिले के कुनरी, नगरपारकर और इस्लामकोट में कोई पांच लाख हिंदू रहते हैं। वहां सैकड़ों हिंदुओं की अस्थियां स्थानीय मंदिर या श्मशान घाटों में इस उम्मीद के साथ हिफाजत से रखी गईं हैं कि एक दिन इन्हें मृतकों की अंतिम इच्छानुसार हरिद्वार ले जाया जाएगा। अब यह उम्मीद परवान चढ़ेगी। कराची स्थित ओल्ड गोलीमार में भी बड़ी तादाद में वहां के सोनपुरी श्मशान घाट में ‘अस्थि कलश पैलेस’ में अस्थियां रखी हुईं हैं। सरकारी अनुमान है कि 2011 और 2016 के बीच लगभग 400 पाकिस्तानी हिंदुओं की अस्थियां वाघा बॉर्डर भेजी गईं थीं। इस गुजारिश के साथ कि उन्हें गंगा जी में प्रवाहित कर दिया जाए। बीएसएफ के एक अधिकारी ने इस पत्रकार को बताया कि उनकी ओर से पाकिस्तानी हिंदुओं की अस्थियां हरिद्वार भिजवा दी गईं थीं। वहां एक स्वयंसेवी संस्था ने अस्थि विसर्जन की अंतिम क्रियाएं पूरी कीं। 2016 के बाद इस सिलसिले पर विराम लग गया।

भारत की अस्थि विसर्जन प्रक्रिया के लिए दी गई ढील का स्वागत करते हुए प्रख्यात पाकिस्तानी पत्रकार मरिआना बाबर ने कहा कि यह भारत सरकार का ऐतिहासिक राजनयिक फैसला है। यकीनन इससे पाकिस्तानी हिंदू बेहद संतुष्ट होंगे। कम से कम उन हिंदू मृतकों की अंतिम इच्छा तो पूरी होगी, जिनका हिंदुस्तान से स्पॉन्सरशिप भेजने वाला कोई नहीं रहता था। इस क्लाज का टूटना स्वागत योग्य है।

गौरतलब है कि 2018 से पहले भारतीय और पाकिस्तानी हिंदुओं के बीच शादी-विवाह भी खूब होते थे। पाकिस्तानी हिंदू परिवारों में से कोई हिंदुस्तान की बहू बनता था तो कोई दामाद लेकिन तनाव भरी दीवार नए सिरे से खड़ी होने के बाद यह भी खत्म हो गया। 2018 में अचानक सब कुछ बदल गया था। कई कन्याओं का गौणा दोनों देशों के बीच खराब हुए रिश्तो की भेंट चढ़ गया। मंगनियां टूट गईं। ब्याह कर भारत आईं कई लड़कियां मायके को तरस गईं और अनेक पाकिस्तान अपने मायके गईं-या तो बड़ी मुश्किल से लौटीं या तब से वहीं हैं। फोन संपर्क भी बाधित रहता है। इंटरनेट खुलने और बंद होने का सिलसिला भी बदलता रहता है। ऐसे में उन्हें भी उम्मीद है कि भारतीय और पाकिस्तानी राजनयिक कोई मुफीद रास्ता निकालेंगे।

पाकिस्तान में कुल जनसंख्या का 2 फ़ीसदी हिंदू हैं। 1951 की जनगणना के मुताबिक पश्चिमी पाकिस्तान में 1.6 प्रतिशत हिंदू जनसंख्या थी, जबकि पूर्वी पाकिस्तान (जिसका अधिकांश हिस्सा बांग्लादेश में तब्दील हो गया) में 22.5 फ़ीसदी थी। 47 वर्षों के बाद यानी 1997 की जनगणना में हिंदुओं की तादाद में कोई खास इजाफा नहीं हुआ। 1998 की जनगणना में अभिलिखित है कि पाकिस्तान में 2.5 लाख हिंदू आबादी है। सिख अलहदा हैं। ज्यादातर हिंदू-सिख पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रहते हैं। अलबत्ता पाकिस्तानी पंजाब में सिखों की ठीक-ठाक तादाद है। पुख्ता आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। पाकिस्तान में देशराज और कटासराज विश्व विख्यात मंदिर हैं और श्री करतारपुर साहिब और ननकाना साहिब को भी यही मुकाम हासिल है। मरिआना बाबर कहती हैं कि दोनों देशों की सरकारें अगर वीजा प्रणाली में अपेक्षित ढील दें और पाकिस्तान सरकार रखरखाव के लिए विशेष फंड मुहैया कराए तो ये विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल बखूबी बन सकते हैं।

(पंजाब से अमरीक की रिपोर्ट)

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