केंद्र के खिलाफ जनहित याचिकाएं हटाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट में हड़कंप, किसके इशारे पर हो रहा ऐसा?

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में रोटेशन पॉलिसी और मुकदमों की लिस्टिंग को लेकर कई बार विवाद सामने आ चुका है। लेकिन मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में जो सामने आया वह देश के न्यायिक इतिहास में अनूठा है। केंद्र सरकार के खिलाफ अवमानना मामले से संबंधित तीन जनहित याचिकाओं की सुनवाई होनी थी, जज और वकील दोनों तैयार थे। लेकिन ऐन वक्त पर जो सामने आया वह हैरान करने वाला था। दरअसल, तीनों जनहित याचिकाओं को बिना किसी स्पष्टीकरण और सूचना के सूची से हटा दिया गया।

सरकार के खिलाफ तीनों याचिकाओं को हटाने के पीछे कौन है, कम से कम सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को नहीं पता है। ऐसे में सवाल उठता है कि सुप्रीम कोर्ट में किसके इशारे पर यह सब किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में बिना किसी सूचना के तीनों मुकदमों को हटाने के मामले पर देश के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश ने मंगलवार को कहा कि “कुछ चीजें अनकही छोड़ दी जानी चाहिए।”

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में बार-बार देर करने के लिए केंद्र के खिलाफ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही पीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने पिछली तारीख पर निर्देश दिया था कि मामले को 5 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। न्यायिक निर्देश के बावजूद मामला मंगलवार को सूचीबद्ध नहीं किया गया था।

याचिकाकर्ताओं में से एक एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने विरोध के तौर पर पीठ के समक्ष इस चूक को उठाया। इस पर न्यायमूर्ति कौल ने जवाब दिया कि उन्हें यकीन है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ को मामले को हटाए जाने की जानकारी थी, हालांकि उन्हें खुद नहीं पता था कि ऐसा कैसे और क्यों किया गया।  

जस्टिस कौल ने कहा कि “मैं स्पष्ट करता हूं कि मैंने इसे हटाया नहीं था या इसे लेने की अनिच्छा व्यक्त नहीं की थी। मुझे यकीन है कि सीजेआई को इसकी जानकारी है। कुछ बातों को अनकहा छोड़ देना ही बेहतर है। हम देखेंगे ।”  

सुप्रीम कोर्ट देश में कानून के शासन का रक्षक है। जस्टिस कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछली सुनवाई में प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) के उल्लंघन में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण को मंजूरी देने में “पिक एंड चूज़” पद्धति अपनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की खिंचाई की थी, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक बार कॉलेजियम मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में अपना निर्णय दोहराता है, यह केंद्र के लिए बाध्यकारी है।

केंद्र सरकार के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई करने वाले जस्टिस संजय किशन कौल 25 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। और उससे पहले अदालत में छुट्टियां शुरू हो जायेगी। एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि यह बहुत ही अजीब है कि मामले को हटा दिया गया। अदालत को रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के नियमों के तहत, मुख्य न्यायाधीश न केवल देश का न्यायिक प्रमुख होता है, बल्कि अदालत का प्रशासनिक प्रमुख भी होता है। वह “रोस्टर का मास्टर” है और सभी मामलों और पीठों को सौंपने की शक्तियां सीजेआई के पास निहित हैं।

सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच जजों की नियुक्ति और तबादले को लेकर कई बार टकराव की स्थिति देखने को मिली है। जस्टिस कौल की अध्यक्षता वाली पीठ तबादलों और नियुक्तियों पर सरकार को निशाने पर लेती रही है।

दरअसल, कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों में से कुछ नामों को मजूरी नहीं देने से सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पहले नाराजगी व्यक्त कर चुका है, कुछ नामों को रोक लेने से अनुशंसित न्यायाधीशों की वरिशष्ठता प्रभावित हुई थी।

पीठ बेंगलुरु एडवोकेट्स एसोसिएशन, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और एनजीओ कॉमन कॉज द्वारा दायर अलग-अलग आवेदनों पर विचार कर रही थी, जिसमें केंद्र द्वारा बार-बार दोहराए जाने के बावजूद कॉलेजियम की सिफारिशों को रोकने को चुनौती दी गई थी।

पीठ ने कहा कि परेशान करने वाला पहलू यह है कि जब किश्तों में नामों को मंजूरी दी जाती है तो उम्मीदवार अपनी वरिष्ठता खो देते हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मामले में, पीठ ने कहा कि उसने पांच नामों को मंजूरी दे दी है। लेकिन सरकार ने नंबर 3, 4 और 5 पर उल्लिखित उम्मीदवारों को मंजूरी देने का फैसला किया, जबकि नंबर 1 और 2 पर नामों को रोक दिया। नाम वरिष्ठता के क्रम में भेजे गए हैं।

जस्टिस कौल ने पूछा था, “उन्होंने वरिष्ठता खो दी। यह स्वीकार्य नहीं है। मैं कभी भी किसी ऐसे व्यक्ति को न्यायाधीश पद स्वीकार करने का सुझाव नहीं दे पाऊंगा जिसके पास उचित अभ्यास हो। उसे अपनी गर्दन क्यों अड़ानी चाहिए?”

बेंगलुरु एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने पीठ से कहा कि अदालत को अनुच्छेद 141 के तहत एक आदेश पारित करना चाहिए जिसमें कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर नियुक्तियों को सख्ती से मंजूरी देने के लिए दिशानिर्देश दिए जाएं।

अनुच्छेद 141 के तहत, सभी अधिकारियों, न्यायिक और नागरिक दोनों को, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित किसी भी आदेश का पालन करना होगा।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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