वाराणसी। वर्तमान समय में काशी की कई सड़कें, अधिकांश लिंक रोड और लिंक रोड से गली-कॉलोनियों को जाने वाली सडकों की हालत खस्ता है। शहर के अतिव्यस्तम इलाके में शुमार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पास से गुजरी ट्रॉमा सेंटर से भगवानपुर, भगवानपुर से छित्तूपुर, छित्तूपुर से सिर गोवर्धन की सड़क, सामनेघाट में स्थित मदरवा इलाके की सड़क, रामनगर-लंका को जोड़ने वाले गंगा पर बने शास्त्री पुल के सड़क छलनी हो गई है। नगवां चुंगी की सड़कें कई स्थानों पर कटकर आधी हो चुकी हैं, जिनमें मिट्टी-गिट्टी डालकर छोड़ दिया गया है।
इन मार्गों से वाराणसी, रामनगर, मुग़लसराय, सोनभद्र, बिहार, बंगाल, झारखंड, मिर्जापुर, भदोही और चंदौली से रोजाना लाखों की तादात में नागरिकों का आवागमन होता है। इन सड़कों के बदहाल होने से बीएचयू के छात्र-छात्राओं, नागरिकों, सैलानियों, श्रद्धालुओं, बीएचयू इलाज को आए मरीजों और तीमारदारों, स्कूली बच्चों, महिलाओं, पैडल रिक्शा चालकों, ऑटो चालकों और ई-रिक्शा चालकों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
स्थानीय नागरिकों ने बताया कि उक्त सड़कें कई सालों से बदहाल हैं। इनको मानक के अनुरूप बनाने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा यह समझ से परे है? घनत्व के हिसाब से ये वाराणसी शहर लगभग 15-17 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। इसकी आबादी लगभग 36 लाख है। ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि इसी सीमित स्पेस वाले बनारस में करीब डेढ़ लाख छोटे और बड़े वाहन भी मौजूद हैं।
पूर्वांचल और सीमावर्ती बिहार की कई तरह की गतिविधियों के हब होने के चलते रोजाना पचास हजार से अधिक वाहन शहर में दाखिल होते हैं। इस लिहाज से इन सड़कों को मानक के अनुरूप तैयार करना चाहिए। ‘जनचौक’ की टीम रविवार और सोमवार को वाराणसी शहर की सड़कों की स्थिति जानने निकली, जिसमें कई सड़कें अपनी बदहाली से बेजार मरम्मत की बाट जोहती नजर आईं।
सीन-1 : भगवानपुर-छित्तूपुर-सिर रोड की बदहाली
सिर-गोवर्धन के रहने वाले पैंतालीस वर्षीय गुड्डू ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पेट पालते हैं। सोमवार को वे सवारी के इंतजार में बीएचयू के छित्तूपुर में अपने वाहन के पास खड़े हैं। वह “जनचौक” को बताते हैं कि दो महीने पहले सिर-गोवर्धन से ट्रॉमा सेंटर बीएचयू वाली रोड से गुजरने के दौरान गड्ढे में मेरे ई-रिक्शा की बैट्री बीच से टूट गई। मैं रोजाना 400 से 500 रुपये कमाता हूं। आठ लोगों का इस आमदनी से गुजरा होता है”।
वो बताते हैं कि “अचानक बैट्री के टूट जाने से मुझे 15,000 रुपये कर्ज लेकर दूसरी बैट्री की व्यवस्था करनी पड़ी। इस कर्ज से मैं अब तक उबर नहीं सका हूं। मेरे साथ यह घटना होने के बाद अन्य रिक्शा चालकों ने भी इस रूट से गुजरना बंद कर दिया है। अब सवारी को लेकर दो से तीन किमी अतिरिक्त सफर करना पड़ता है। जिसमें समय और बैट्री की चार्जिंग की बर्बादी होती है। क्या किया जाए? मजबूरी है।”
गुड्डू आगे कहते हैं कि “शहर की मुख्य सडकों की स्थिति ठीक है, लेकिन इन सड़कों के बाद अधिकांश रोड की हालत बहुत ही दयनीय है। गली-कॉलोनियों में ई-रिक्शा लेकर जाना किसी मुसीबत से कम नहीं है। शहर में आए दिन वीवीआईपी के अलावा स्वयं मुख्यमंत्री योगी आते हैं। लेकिन किसी को सड़कों की दुर्दशा नहीं दिखाई दे रही है। मेरी मांग है कि जल्द सड़कों की मरम्मत की जाए। ताकि बनारस की छवि और वाहन चालकों को नुकसान नहीं उठाना पड़ा।”
सीन-2 : शास्त्री पुल पर झटका देते गड्ढे
गंगा नदी पर बने राजघाट और शास्त्री पुल को वाराणसी का ईस्टर्न गेटवे कहा जाता है। शास्त्री ब्रिज से रोजाना चंदौली, सोनभद्र, मिर्जापुर और सीमावर्ती बिहार के दर्जनों जनपदों के काफी तादाद में नागरिक यहां आते हैं। पुल के पश्चिमी सिरे पर रोड पर कई छोटे-बड़े गड्ढे हो गए हैं। साथ ही रोड पर गिट्टियों के उखड़ने से लंबे-लंबे स्क्रैच बन गए हैं। चूंकि, रोड उस स्थान पर जर्जर हुआ है, जहां वाहन चालक रोड छोड़कर ब्रिज पर चढ़ते और अपोजिट साइड के वाहन ब्रिज से उतरते हैं। ऐसे में वाहन के पहिये गड्ढे में फंसने से चालक और सवारी परेशान हो जाते हैं। लिहाजा, क्षतिग्रस्त सड़क की जल्द से जल्द मरम्मत करने की आवश्यकता है।
भगवानपुर सनबीम कॉलेज के पास गोबिंद की परचून की दुकान है। दुकान के पास में ही सड़क के टूट जाने से बड़ा सा गड्ढा बन गया है, जिसमें सड़ते हुए पानी पर मच्छर और मक्खियां भिनभिना रही हैं। महात्मा काशी विद्यापीठ में बीकॉम द्वितीय वर्ष के छात्र चौबीस वर्षीय गोबिंद “जनचौक” से कहते हैं कि “पहले यहां सड़क तक कूड़ा फैला रहता था। मोदी जी के आने के बाद कूड़ा हटा दिया जाता है। आसपास स्ट्रीट लाइट लगी हैं। लेकिन इसके अलावा मुझे और कोई विकास नहीं महसूस होता है। यह सड़क आठ-नौ साल से बदहाल है। इसके गड्ढे में आये दिन रिक्शा, साइकिल, छोटे-बड़े वाहन और पैदल राहगीरों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसकी खबर लेने वाला कोई नहीं है।”
गोबिंद आगे बताते हैं “जो विकास हुआ है, वह वहीं हुआ है, जहां मोदीजी, योगीजी और वीवीआईपी का आना-जाना होता है। आप मुख्य शहर के अलावा बनारस के किसी अन्य सड़क, लिंक रोड और कॉलोनियों में चले जाइये। पैदल या वाहन से चलने में महज बीस मिनट में सड़कों की बदहाली से तबियत पस्त हो जाएगी। कहने को तो हम लोग स्मार्ट शहर में रहते हैं। लेकिन हकीकत को आप बदल तो नहीं सकते हैं ना। जल्द से मानक के अनुरूप सड़क की मरम्मत और निर्माण किया जाए।”
आए दिन चोटिल होते हैं लोग
पांडेयपुर इलाके में पहडिय़ा चौराहे की सड़क अतिव्यस्ततम सड़कों में एक है। शासन के आदेश के बाद गड्ढे भरने के बाद भी पांडेयपुर, पहडिय़ा और बेनीपुर समेत दो दर्जन से अधिक कॉलोनियों को जोड़ऩे वाली सड़क कई स्थानों पर उखड़कर खराब हो गई है। स्थानीय आनंद स्वरूप कहते हैं कि “इस सड़क से एंबुलेंस, स्कूल बस, दोपहिया वाहन, साइकिल सवार, बच्चे व बुजुर्गों को गुजरने में किसी अनहोनी की आशंका बनी रहती है। रोड के झटकेदार होने से आए दिन राहगीर गिरकर घायल भी होते हैं।” स्थानीय लोगों ने संबंधित विभागों से जल्द से जल्द सड़क के मरम्मत की मांग की है।
पैचवर्क के नाम पर लाखों का खेल
बारिश में खराब हुईं सड़कों को बनाने के नाम पर हर साल लाखों रुपये का खेल होता है। सड़कों पर पैचवर्क ऐसा होता है कि एक माह भी नहीं चलता है। पैचवर्क का कोई ऑडिट नहीं होता और न ही हिसाब। जितना पैसा पैचवर्क के नाम पर खर्च किया जाता है उतनी राशि में कई सड़कें बन जाएंगी। सड़क पर पानी लगने से जो सड़कें खराब होती हैं उन्हें एक बार सही ढंग से क्यों नहीं बनाया जाता है?
सर्वे रिपोर्ट 118 ने मचाई थी खलबली
पीडब्ल्यूडी के एक्सईएन केके सिंह “जनचौक” को बताते हैं कि मेरे निर्माण खंड के अधीन कोई सड़क मेरी जानकारी में ख़राब नहीं है। टीम नजर बनाये हुए है। कहीं सड़क मानक अनुरूप नहीं होगी तो एस्टीमेट बनाकर तत्काल कार्य किया जाएगा”। दूसरी ओर, यूपी शासन ने सूबे की सड़कों को गड्ढामुक्त करने का दवा किया था। तब वाराणसी में अफरा-तफरी में सड़कों के गड्ढों को भर दिये गये थे। गड्ढा भरो अभियान और इस दौरान मानक विहीन कार्य की पोल तब खुल गई जब पांच-छह महीने पहले पीएम के संसदीय कार्यालय की सर्वे रिपोर्ट सामने आई।
इस सर्वे रिपोर्ट से कुछ हफ्ते पहले शहर की सड़कों को गड्ढामुक्त करने के अभियान में आशातीत सफलता पर वाराणसी की टीम को बाकायदा सम्मानित किया गया था। इसके बाद पीएम के संसदीय कार्यालय की टीम ने अपने स्तर से सर्वे कराया तो 118 की संख्या में सड़कें बदहाल और मानक विहीन मिलीं। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद बनारस के लोगों में खासी नाराजगी देखी गई। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर लापरवाही को लेकर लोग कई सवाल भी उठाते हैं।
क्या कहते हैं जिम्मेदार अधिकारी?
निर्माण खंड-1 के एक्सईएन आशुतोष सिंह ने “जनचौक” को बताया कि “ट्रॉमा सेंटर, सिर, गोवर्धन और छित्तूपुर की बदहाल सड़क की जानकारी है। इस रोड के निर्माण और मरम्मत के लिए इस्टीमेट के बाद टेंडर की प्रक्रिया चल रही है। जल्द नागरिकों को अच्छी सड़क पर चलने की सुविधा हो जाएगी। कॉलोनियों और गलियों की सड़कें नगर निगम और जिला पंचायत की होती हैं। लिहाजा, हम लोग चाहकर भी इनकी मरम्मत नहीं कर सकते हैं।”
(उत्तर प्रदेश के वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)