देहरादून। चारधाम सड़क परियोजना या ऑल वेदर रोड उत्तराखंड में बर्बादी और तबाही का कारण बन चुकी है। यह सड़क सिर्फ बरसात में ही नहीं, अब तो हर मौसम में धंसने और बहने लगी है। पहाड़ी से लगातार आने वाला मलबा भी अब तक कई लोगों की जान ले चुका है। इस बीच उत्तराखंड की एक और बड़ी परियोजना खतरे में पड़ती प्रतीत हो रही है। यह परियोजना है दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे।
इस एक्सप्रेसवे का करीब 12 किमी हिस्सा नदी में सीमेंट सरिया के पिलर खड़े करके एलिवेटेड रोड के रूप में बनाया जाना है। लेकिन पिछले महीने लगातार एक हफ्ते तक हुई बरसात के कारण इस परियोजना के कई पिलर मलबे से धंस गये हैं या फिर इसमें झुकाव आ रहा है। नदी की तरफ से हो रहे कटाव के कारण भी कुछ पिलर खतरे में आ गये हैं। हालांकि इस सबके बाद भी परियोजना पर काम जारी है।
हाल में इस योजना के पिलर धंसने को लेकर आ रही खबरों के बाद ‘जनचौक’ ने ग्राउंड जीरो पर जाकर हालात का जायजा लेने का प्रयास किया। देहरादून शहर की सीमा पार करते ही आशारोड़ी का जंगल शुरू हो जाता है। साल के पेड़ों के इस जंगल में प्रवेश करते ही एक्सप्रेसवे का काम नजर आने लगता है। यहां साल के सौ साल से भी पुराने सैकड़ों पेड़ इस परियोजना के लिए काट डाले गये। कुल 2,572 पेड़ों की इस परियोजना के लिए बलि दे दी गई। इनमें 1,622 साल के पेड़ भी शामिल थे।
जब इस परियोजना की शुरुआत हो रही थी तो सिटीजन फॉर ग्रीन दून संस्था ने देहरादून के कई जन संगठनों के साथ मिलकर पेड़ काटने के खिलाफ लंबा आंदोलन चलाया था। कई बार लोगों ने पेड़ों पर आरी चलाने के काम को रोका। आशारोड़ी और उत्तर प्रदेश की सीमा में मोहंड में कई बार प्रदर्शन भी किया गया। लेकिन, इसके बावजूद हजारों की संख्या में पेड़ काट दिये गये। आशारोड़ी में पेड़ों को काटकर यह एक्सप्रेसवे कहीं एलिवेटेड तो कहीं रैंप के आकार में बनाया गया है। डाटकाली मंदिर के पास कुछ साल पहले बनी टनल के अलावा एक और टनल बनकर तैयार हो गई है। डाटकाली तक का क्षेत्र देहरादून वन प्रभाग के आशारोड़ी रेंज का हिस्सा है।
डाटकाली टनल पार करते ही उत्तर प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। यह क्षेत्र सहारनपुर जिले के मोहंड वन रेंज का हिस्सा है। टनल पार करते ही जंगल की तबाही का मंजर और भयावह हो गया है। पुरानी दो लेन सड़क से यात्रा करते हुए सड़क के आसपास का जो हिस्सा ऊंचे साल के पेड़ों से आच्छादित नजर आता था, वहां अब बेरहमी से काटा गया पहाड़ है और चारों तरफ फैला हुआ मलबा है। साफ लगता है कि पहाड़ को मैदान बनाने के लिए न सिर्फ हजारों पेड़ों पर आरियां चलाई गई हैं, बल्कि अरावली की भंगुर पहाड़ियों को भी बेरहमी से काटा गया है।
डाटकाली मंदिर से देहरादून-सहारनपुर-दिल्ली रोड पर आगे बढ़ते ही मोहंड रौ (पहाड़ी नाला) मिल जाता है। आमतौर पर यह एक बरसाती नाला है। लेकिन मध्य हिमालयी पहाड़ियों के बरसाती नालों और अरावली पहाड़ी के मोहंड रौ जैसे पहाड़ी नालों में फर्क यह है कि मध्य हिमालयी क्षेत्र के बरसाती नालों में पूरे बरसात अच्छी मात्रा में पानी रहता है, लेकिन मोहंड और अरावली की अन्य रौ में बरसात के आम दिनों में भी पानी की एक छोटी धार होती है। लेकिन, तेज बारिश के वक्त ये नाले उफान पर होते हैं और कई बार भारी नुकसान पहुंचाते हैं। दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे आगे बढ़कर मोहंड रौ में पहुंच जाता है। करीब 6 किमी एक्सप्रेसवे इसी मोहंड रौ में सरिया-सीमेंट के पिलर बनाकर एलिवेटेड रोड से गुजारा जाएगा।
मोहंड रौ के बीचों-बीच दर्जनों की संख्या में पिलर बना दिये गये हैं। कुछ पिलर का काम पूरा हो चुका है, कुछ का आधा-अधूरा है तो कुछ का काम अभी शुरू हो रहा है। पिछले कुछ महीनों से यहां पिलर बनाकर एलिवेटेड रोड का काम तेजी से किया जा रहा था। दावा किया गया है कि इसी वर्ष दिसंबर तक यह काम पूरा कर दिया जाएगा। काम में तेजी को देखकर ऐसी उम्मीद भी की जा रही थी। लेकिन, पिछले महीने लगातार एक हफ्ते तक हुई बारिश ने न सिर्फ दिसंबर तक इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की उम्मीदों पर पानी फेरा है, बल्कि परियोजना के भविष्य पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।
मोहंड रौ के बीचों-बीच बनाये गये कुछ पिलर मलबे में धंस गये हैं। कुछ पिलरों में हल्का झुकाव आ गया है, जबकि नदी के कटाव के कारण भी कई पिलर खतरे में हैं। कुछ ऐसे पिलर भी यहां साफ देखे जा सकते हैं, जो एक किनारे से टूट गये हैं। इस सबके बावजूद यहां एलिवेटेड रोड का निर्माण कार्य रोका नहीं गया है, बल्कि लगातार जारी है। इस परियोजना को बना रही नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अधिकारियों का कहना है कि बारिश से आये मलबे के कारण पिलरों को नुकसान पहुंचा है या नहीं इसके आकलन की जिम्मेदारी आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों को सौंपी गई है।
देहरादून से दिल्ली के बीच नियमित रूप से यात्रा करने वाले लोग मोहंड रौ के पिलरों की मौजूदा स्थिति को देखकर चिन्तित हैं। दिल्ली से निजी वाहन से लौट रही दीपा कौशलम कहती हैं कि “दिसम्बर से इस एक्सप्रेसवे को शुरू करने की बात की जा रही है। केन्द्र सरकार का मौजूदा नेतृत्व बेहद जिद्दी है। हमें आशंका है कि चुनावों को देखते हुए हर हाल में दिसम्बर में इसे शुरू करने के प्रयास होंगे। हाल की बारिश से पिलरों में जो नुकसान नजर आ रहा है, उसके बाद भी ऐसा किया गया तो यह बेहद खतरनाक स्थिति होगी”।
साइड से टूटे हुए एक पिलर की ओर इशारा करके वे बताती हैं कि “फिलहाल मलबा और सीमेंट का मसाला डालकर कहा जा सकता है कि ट्रीटमेंट कर दिया गया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि यह ट्रीटमेंट सिर्फ बाहरी दिखावा साबित होगा। पिलर नीचे से हिल चुका है। जब एलिवेटेड रोड पर हेवी ट्रैफिक चलेगा तो इस पिलर और इस जैसे कई और पिलरों के भरभराकर गिर जाने खतरा बना रहेगा”।
देहरादून स्थित एसडीसी फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल इस प्रोजेक्ट को तुरन्त निरस्त करने की जरूरत बताते हैं। वे कहते हैं कि “एनएचएआई के अधिकारियों के अनुसार पिछले 25 वर्षों में मोहंड रौ की स्थिति और इस क्षेत्र में हुई बारिश का अध्ययन करने के बाद इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है। लेकिन वे सवाल उठाते हैं कि यदि केदारनाथ जैसी आपदा आई और मोहंड में मंदाकिनी जैसा उफान आया तो क्या ये पिलर इसी स्थिति में खड़े रह पाएंगे”?
अनूप नौटियाल कहते हैं कि “जरूरत पिछले 25 वर्षों की स्थिति का अध्ययन करने की नहीं है। बल्कि, जरूरत इस बात की है कि आने वाले 50 वर्षों की संभावित स्थिति का अध्ययन किया जाए”। अनूप नौटियाल कहते हैं कि “जलवायु परिवर्तन, बारिश में अनियमितता और मानव दबाव तीन ऐसी स्थितियां हैं, जिनके कारण हाल के वर्षों में कई ऐसे बदलाव देखे गये हैं, जो पहले कभी नहीं देखे गये थे। ऐसे में पिछले 25 सालों की मोहंड की स्थिति का अध्ययन करके परियोजना को मंजूरी दिये जाने की बात बेहद बचकानी महसूस होती है”।
आशारोड़ी और मोहंड के जंगलों को एक्सप्रेसवे के लिए काटे जाने से बचाने के लिए पिछले वर्ष अप्रैल और मई में हुए आंदोलन की अगुवाई करने वाले सिटीजन फॉर ग्रीन दून संस्था के हिमांशु अरोड़ा कहते हैं कि “सरकार की जिद है कि पहाड़ों को मैदान बना दिया जाए। इसी जिद का हमने विरोध किया था। बड़ी संख्या में साल जैसे पेड़ों को काटकर एक तरफ देहरादून की आबोहवा को खराब करने के मामले में एक कदम और आगे बढ़ाया जाता है तो दूसरी तरफ यह प्रोजेक्ट भी बनने से पहले ही सवालों के घेरे में है”।
हिमांशु अरोड़ा कहते हैं कि “पहाड़ी नदियों के स्वभाव की थाह किसी अध्ययन से नहीं ली जा सकती, यह संकेत कई बार प्रकृति हमें दे चुकी है। इसके बावजूद हम संभलने के लिए तैयार नहीं हैं”।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और चारधाम सड़क परियोजना के पर्यावरणीय आकलन के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई एम्पावर्ड कमेटी के अध्यक्ष रहे डॉ. रवि चोपड़ा कहते हैं कि नदियों के तल पर पिलर बनाकर एलिवेटेड रोड बनाना बेहद जोखिम भरा काम है। यदि हम मान भी लें कि इन पिलर को बनाने में सुरक्षा संबंधी सभी नियमों का पालन किया गया है तो भी इंजीनियरिंग में कोई न कोई कमी रहने की आशंका बनी रहती है, जिससे भविष्य में इस तरह के पुल टूटने की आशंका बनी रहती है”।
वे कहते हैं कि “हाल के दिनों में पौड़ी में पिलर पर बना एक पुल टूट गया था। बिहार में भी ऐसे कुछ पुल टूटे हैं”। डॉ. चोपड़ा के अनुसार “हाल के वर्षों में पुलों और एलिवेटेड रोड की इंजीनियरिंग पिछले कुछ वर्षों की वर्षा के आधार पर की जाती है, लेकिन यह ठीक नहीं है। अब वर्षा का पैटर्न बदल गया है। अब तेज बारिश होती है और नदियों में अचानक बाढ़ आ जाती है। ऐसे में इस तरह के अध्ययन को आधार बनाकर बनाये गये पुल और एलिवेटेड रोड खतरनाक साबित हो सकते हैं”।
दिल्ली-देहरादून एलिवेटेड एक्सप्रेसवे के बारे उनका स्पष्ट रूप से कहना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए इस प्रोजेक्ट को बंद करने पर कोई संकोच नहीं किया जाना चाहिए।
(देहरादून से त्रिलोचन भट्ट की ग्राउंड रिपोर्ट।)
Please CORRECT the technical error putting : ARAVALIS instead of SIWALIKS….
…..and in my opinion “do we still think legislative and executive system is Sensitive 🤔”, well ! well ! It seems WE ALL are still TOO NAIVE at this ripe age🙏