Friday, March 29, 2024

पंजाब में पूरी तरह से फुस्स हो गयी रेफरेंडम- 2020 की कवायद

तथाकथित खालिस्तान के लिए रेफरेंडम-2020 के लिए शुरू किए जा रहे पंजीकरण के प्रतिबंधित सिख्स फ़ॉर जस्टिस के अभियान को पंजाबियों ने पूरी तरह नकार दिया है। गुरपतवंत सिंह पन्नू ने 4 जुलाई से श्री हरमंदिर साहिब में अरदास करके रजिस्ट्रेशन शुरू करने की घोषणा की थी। 4 और 5 जुलाई को अमृतसर स्थित श्री हरमंदिर साहिब में सिख्स फ़ॉर जस्टिस (एसएफजे) की ओर से न कोई अरदास की गई और न ही रजिस्ट्रेशन हुआ। दरबार साहिब के बाहर चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात है और अंदर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की टास्क फोर्स। कई सालों के बाद लाइट मशीन गनों से लैस पुलिस बल तैनात किया गया। सूबे के शेष बड़े गुरुद्वारों में भी यही आलम है।

एहतियात के तौर पर पंजाब पुलिस ने लगभग 200 युवकों को हिरासत में लिया है। हालांकि सरकार के लिए चिंता का एक नया सबब यह है कि अब गुरपतवंत सिंह पन्नू ने खालिस्तानी गतिविधियां जारी रखने के लिए एक रूसी पोर्टल का इस्तेमाल किया है। यानी अपने तौर पर वह अपना दायरा बढ़ा रहा है। शनिवार की देर रात इस पोर्टल के लिंक को भी ब्लॉक कर दिया गया।                                               

हाल ही में भारत सरकार ने गुरपतवंत सिंह पन्नू को आतंकवादी घोषित किया था और पंजाब में उस पर देश विरोधी गतिविधियां चलाने के 16 मामले दर्ज हैं और उसके एक करीबी सहयोगी जोगिंदर सिंह गुज्जर को कपूरथला पुलिस ने गिरफ्तार किया है। सिख्स फ़ॉर जस्टिस को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पिछले साल जुलाई में प्रतिबंधित किया था। पन्नू ने अलग-अलग ऑडियो और वीडियो संदेशों के जरिए 4 जुलाई से रेफरेंडम-2020 के लिए सिख समुदाय से पंजीकरण की अपील की थी।

उसने कहा था कि बड़े पैमाने पर 18 साल की उम्र से ऊपर के सिख पुरुष और महिलाएं खालिस्तान के पक्ष में मतदान करें और उसकी मुहिम को सशक्त करें। गुरपतवंत सिंह पन्नू ने 15 जून को श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को एक विशेष पत्र लिखकर खालिस्तान आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए आशीर्वाद मांगा था। पन्नू ने लिखा था कि 4 जुलाई को रेफरेंडम-2020 के लिए मतदाता पंजीकरण शुरू करने से पहले श्री अकाल तख्त साहिब में संगठन के लोग अरदास करेंगे। इस पत्र के आधार पर ही पुलिस अतिरिक्त रूप से मुस्तैद हो गई। राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह किसी भी सूरत में पन्नू या अन्य अलगाववादियों को पंजाब में पैर पसारने नहीं देना चाहते। सीधे कैप्टन के स्तर पर इस मामले पर पैनी नजर रखी जा रही है।                                        

सरकारी खुफिया एजेंसियों के आला अधिकारियों के मुताबिक एसएफजे और पन्नू का अभियान पंजाब में एकबारगी तो फुस्स हो गया है। राज्य के दो-तीन शहरों से ऐसी खबरें जरूर हैं कि दीवारों पर रेफरेंडम-2020 और खालिस्तान जिंदाबाद के पोस्टर गुपचुप ढंग से लगाए गए लेकिन पुलिस ने उन्हें हटा दिया और अज्ञात लोगों के विरुद्ध मामला दर्ज किया।

अब एसएफजे ने भारत के मित्र देश रूस के पोर्टल के जरिए ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण शुरू किया। शनिवार को रूसी वेबसाइट www.pun-jabfree.ru से पंजीकरण की कवायद शुरू की गई। हालांकि देर रात इस लिंक को ब्लॉक कर दिया गया लेकिन यह खुफिया एजेंसियों के लिए खतरे की घंटी तो है ही। इसलिए कि भारत विरोधी गतिविधियों के लिए रूसी साइबरस्पेस का इस्तेमाल दोनों देशों के बीच खटास पैदा कर सकता है।

कुछ दिन पहले जब पन्नू ने ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण की बात कही थी तब से कयास लगाए जा रहे थे कि एसएफजे अमेरिकन वेबस्पेस का इस्तेमाल कर सकता है लेकिन गुरपतवंत ने शनिवार को जिस वेबसाइट को तैयार कर ऑनलाइन वोटिंग शुरू करवाई, वह रूस के साइबर स्पेस की निकली। इससे कई तरह के सवाल भी उठे हैं। रूस के पास अपनी जमीन से काम करने के लिए वेब पोर्टल्स के लिए बेहद कठोर कानूनी ढांचा है। वहां तक पन्नू की पहुंच होना गैरमामूली बात है।                            

जिक्र-ए-खास है कि पंजाब में अलगाववादी नेता पूर्व सांसद सिमरनजीत सिंह मान के अमृतसर अकाली दल सरीखे इक्का-दुक्का सियासी संगठन खालिस्तान का खुला समर्थन करते हैं लेकिन वे भी रजिस्ट्रेशन के लिए एसएफजे और गुरपतवंत सिंह पन्नू के साथ नहीं आए। मान ने सिख्स फ़ॉर जस्टिस से कुछ सवाल पूछे थे जिसका उन्हें कोई जवाब नहीं मिला और माना जा रहा है कि इसीलिए उन्होंने अब एसएफजे से किनारा कर लिया है। रही बात आम सिखों की तो वे पहले से ही खालिस्तान के सख्त खिलाफ हैं। 

खालिस्तान की मांग और बात करने वाले उम्मीदवार चुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचा पाते। ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने खालिस्तान की खुली हिमायत की तो केवल मुट्ठी भर सिखों ने ही उनका साथ दिया। तभी फिर साबित हो गया था कि व्यापक सिख समुदाय खालिस्तान की अवधारणा के खिलाफ है। अब रेफरेंडम-2020 को भी नकार दिया गया है।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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