धार्मिक आयोजन और भगदड़: कमजोर भीड़ प्रबंधन और आपातकालीन सेवाओं की कमी का खामियाजा

दुनिया भर के होने वाले धार्मिक आयोजन हर साल अनगिनत श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। लेकिन, बड़े आयोजनों के साथ कई खतरे भी जुड़े होते हैं। इनमें भगदड़ एक गंभीर समस्या है। अधिक भीड़, कमजोर भीड़ प्रबंधन और अधूरी बुनियादी सुविधायें अक्सर दुखद घटनाओं का कारण बनती हैं।

पहले भी धार्मिक आयोजनों में भगदड़ के कारण कई लोगों की जान गई है, जिसकी वजह डर, संकरे निकास मार्ग और आपातकालीन सेवाओं की कमी रही है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को सख्त भीड़ नियंत्रण, बेहतर बुनियादी ढांचा और रियल-टाइम मॉनिटरिंग लागू करनी चाहिए।

बड़े आयोजनों में लोगों की जागरूकता और अनुशासित व्यवहार भी बेहद ज़रूरी है। चूंकि अतीत में कई बार ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गंवाते रहे हैं। ऐसे में हम इस लेख में हम दुनिया के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक आयोजनों और भगदड़ों के बीच के संबंध को ऐतिहासिक घटनाओं, उनके कारणों और भीड़ प्रबंधन के बदलते तरीक़ों के संदर्भ में समझने का प्रयास करेंगे।

धार्मिक संदर्भ में भगदड़

• भगदड़ तब होती है, जब बड़ी संख्या में लोग किसी स्थान पर अनियंत्रित तरीके से इकट्ठा हो जाते हैं और अचानक घबराहट, जगह की कमी या अफ़वाहों, ढांचे के गिरने, या सुरक्षा ख़तरे जैसी बाहरी वजहों से हड़बड़ाकर भागने लगते हैं। धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की संभावना अधिक इसलिए होती है, क्योंकि

• तीर्थ स्थलों और धार्मिक केंद्रों में लाखों श्रद्धालुओं की अत्यधिक भीड़ एकत्रित हो जाती है।

• भक्तों में गहरी आस्था और धार्मिक जोश के कारण पैदा होने वाले भावनात्मक और आध्यात्मिक उत्साह से सामूहिक हलचल बढ़ जाते हैं।

• अव्यवस्थित योजनाएं, अपर्याप्त निकासी मार्ग और बुनियादी ढांचे की कमी से भगदड़ बढ़ सकती है।

• किसी छोटी अफ़वाह से घबराहट फैल सकती है और भीड़ बेकाबू हो सकती है

दुनिया के विभिन्न भागों में धार्मिक आयोजनों में भगदड़

भारत अपनी विशाल धार्मिक विविधता के कारण कई बड़े धार्मिक आयोजनों का केंद्र रहा है, जहां कई बार भगदड़ की घटनाएं हुई हैं।

कुंभ मेले में भगदड़

कुंभ मेला, दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में बारी-बारी से आयोजित होता है।

1954 के प्रयागराज कुंभ मेले में भारी भीड़ और अव्यवस्थित प्रबंधन के कारण 800 लोगों की मौत हो गई।

2013 में इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 36 लोग मारे गए।

सबरीमाला मंदिर भगदड़

केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में विशेष रूप से मकर ज्योति महोत्सव में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। यहां 1999 में हुई भगदड़ में 50 से अधिक लोग मारे गए थे। 2011 में एक वाहन के पलटने से घबराहट फैल गई थी, जिससें 106 लोगों की मौत हो गयी थी।

वैष्णो देवी मंदिर भगदड़

जनवरी 2022 को जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर में भीड़ के कारण भगदड़ मच गयी थी, जिसमें 12 लोगों की मौत हो गयी थी।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक आयोजनों के दौरान भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा उपायों में सुधार की आवश्यकता है।

इस्लामिक तीर्थयात्राओं और धार्मिक आयोजनों में भगदड़

इस्लामिक धार्मिक आयोजनों, विशेष रूप से हज यात्रा में कई बड़े पैमाने पर भगदड़ की घटनाएं हुई हैं।

हज यात्रा में भगदड़

हर साल सऊदी अरब के मक्का में हज यात्रा में लाखों मुस्लिम श्रद्धालु शामिल होते हैं। इसमें भीड़ के कारण भगदड़ की घटनाएं बार-बार होती रही हैं।

1990 में मक्का में एक पैदल यात्री सुरंग में 1,426 लोगों की मौतें हुई थीं।

1994 में मीना में शैतान को पत्थर मारने की रस्म के दौरान 270 लोग मारे गये थे।

2006 में मीना में ही भगदड़ हुई थी, जिसमें 346 लोगों की जानें गयी थीं।

2015 में मीना में ही अबतक की सबसे भीषण भगदड़ हुई थी, जिसमें 2,400 से अधिक लोग मारे गये थे।

अन्य इस्लामिक आयोजनों में भगदड़

2010 में इराक़ के बग़दाद में एक धार्मिक जुलूस में भगदड़ मचने से 60 से अधिक लोगों की मौत हो गयी थी।

इराक़ के क़र्बला में अशूरा समारोह के दौरान भी कई बार भगदड़ की घटनाएं होती रही हैं।

ईसाई धार्मिक आयोजनों में भगदड़

हालांकि हिंदू और इस्लामिक आयोजनों की तुलना में ईसाई आयोजनों में भगदड़ की घटनाएं कम होती है, फिर भी कुछ घटनाएं दर्ज की जाती रही हैं।

नाइजीरिया के चर्च में भगदड़

2013 में नाइजीरिया के उके स्थित एक चर्च में भगदड़ हुई थी, जिसमें 28 लोग मारे गये थे।

2014 में लागोस के एक धार्मिक समारोह में 16 लोगों की मौतें हुई थीं।

फिलीपींस के ब्लैक नजारिन उत्सव में भगदड़

मनीला में हर साल आयोजित होने वाले ब्लैक नजारिन उत्सव में कई बार भगदड़ से लोग घायल हुए हुए हैं और मारे गए हैं।

ब्राजील और लैटिन अमेरिका

ब्राजील और मैक्सिको में बड़े कैथोलिक जुलूसों में भीड़ प्रबंधन से जुड़ी समस्यायें देखी गयी हैं, जिसमें भगदड़ मचती रही है, लेकिन लोगों की जानें नहीं गयी हैं।

बौद्ध और अन्य धार्मिक आयोजनों में भगदड़

चीन के मंदिर उत्सवों में भगदड़

1994 में चीन के एक मंदिर में भगदड़ से 100 से अधिक लोगों की मौत हो गयी थी।

तिब्बत और नेपाल के बौद्ध आयोजनों में भगदड़

यहां भी कभी-कभी भीड़ बढ़ने से दुर्घटनाएं हुई हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर भगदड़ की घटनाएं दुर्लभ रही हैं।

धार्मिक आयोजनों में भगदड़ के मुख्य कारण निम्नलिखित रहे हैं:

अत्यधिक भीड़भाड़

ख़राब भीड़ प्रबंधन

अफ़वाहें और घबराहट

अपर्याप्त निकासी मार्ग और कमज़ोर आधारभूत संरचना

आस्था से प्रेरित जल्दबाज़ी

रोकथाम के उपाय और सीख

सरकारों और धार्मिक संगठनों ने भगदड़ रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण क़दम भी उठाए हैं, जैसे कि बेहतर आधारभूत संरचना, यानी मंदिर परिसरों का विस्तार, सुगम मार्ग, और आपातकालीन निकासी के उपाय।

तकनीकी समाधान, जैसे कि CCTV कैमरे, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और GPS ट्रैकिंग।

अनुशासित प्रवेश प्रणाली, अर्थात सीमित टिकट और चरणबद्ध प्रवेश प्रणाली।

प्रशिक्षित बचाव दल और प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं जैसी आपातकालीन व्यवस्था।

दार्शनिक और नैतिक दृष्टिकोण

धार्मिक आयोजनों में होने वाली भगदड़ उन गहरी दार्शनिक और नैतिक सवाल को जन्म देती है, जो आस्था, ज़िम्मेदारी और मानव जीवन के मूल्य से जुड़ी होती हैं। दार्शनिक दृष्टिकोण से ये घटनाएं आध्यात्मिक आस्था और व्यावहारिक सुरक्षा के बीच संतुलन पर प्रश्न उठाती हैं।

लाखों श्रद्धालु पवित्र स्थलों पर यह विश्वास लेकर इकट्ठा होते हैं कि ईश्वर उनकी रक्षा करेगा, लेकिन मानव सीमाओं और प्रशासनिक विफलताओं के कारण अक्सर दुखद घटना हो जाती हैं। क्या आस्था के नाम पर भीड़भाड़ वाले स्थानों में जान जोखिम में डालना उचित है? क्या धार्मिक भक्ति सुरक्षा की तर्कसंगत चिंताओं से अधिक महत्वपूर्ण होनी चाहिए ?

नैतिक रूप से भगदड़ सरकार, धार्मिक नेताओं और व्यक्तियों की ज़िम्मेदारियों पर सवाल खड़ा करती है। प्रशासन की यह ज़िम्मेदारी होती है कि वह भीड़ की सुरक्षा सुनिश्चित करे, लेकिन लापरवाही, कमजोर योजना और आपातकालीन प्रबंधन की कमी के कारण बड़े हादसे हो जाते हैं।

धार्मिक नेता भक्तों को बड़े आयोजनों में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन कई बार अनुशासन और सतर्कता पर ज़ोर नहीं दिया जाता। वहीं श्रद्धालु भी भावना और उत्साह में आकर अनजाने में अराजकता को बढ़ावा दे सकते हैं।

भगदड़ के बाद एक बड़ा नैतिक सवाल यह भी उठता है कि इसकी ज़िम्मेदारी आख़िर किसकी है-आयोजकों, प्रशासन या श्रद्धालुओं की ? ये घटनाएं यह बताती हैं कि नैतिक जागरूकता, अनुशासित भीड़ प्रबंधन और बेहतर बुनियादी ढांचे की सख़्त ज़रूरत है। सच्ची आस्था वही है, जो जीवन को महत्व दे, और एक ज़िम्मेदार प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक आयोजनों में भक्ति और सुरक्षा एक साथ बनी रहे।

संक्षेप में इन सवालों को इस तरह बिंदुवार रखा जा सकता है:

क्या आस्था सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है?

धार्मिक आयोजनों में सरकारों और आयोजकों की क्या ज़िम्मेदारी होनी चाहिए?

क्या जानलेवा परंपराओं को जारी रखना नैतिक रूप से उचित है?

अंतत: धार्मिक आयोजनों में भगदड़ एक गंभीर चुनौती है, जिससे बचने के लिए योजनाबद्ध प्रयास, जागरूकता और सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं। विश्वास और परंपरा महत्वपूर्ण तो हैं, लेकिन सुरक्षा से समझौता भी नहीं किया जाना चाहिए।

अतीत यही दिखाता है कि आस्था, श्रद्धा का जनसैलाब ला सकती है, लेकिन किसी तरह की बरती गयी लापरवाही आपदा का पहाड़ भी पैदा कर सकती है। ऐसे में इस तरह की आपदा पैदा नहीं हो, इसके लिए जितनी ज़िम्मेदारी सरकारों की है, उतनी ही ज़िम्मेदारी श्रद्धालुओं के अनुशासन और विवेक से लिए गये फ़ैसले की भी है।

(उपेंद्र चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं)

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