संघ विचारक और तुगलक के संपादक गुरुमूर्ति कोर्ट की अवमानना में फिर घिरे

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आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम को जमानत मिलने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और तुगलक के संपादक गुरुमूर्ति ने ट्वीट करते हुए न्यायमूर्ति मुरलीधर पर जो सवाल उठाए थे, उसमें दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा गुरुमूर्ति को अवमानना से बचने के लिए बिना शर्त माफी मांगने का मौका दिए जाने के बाद गुरुमूर्ति ने अक्तूबर 2019 में बिना शर्त माफ़ी मांगकर अपनी जान छुड़ाई थी। अब गुरुमूर्ति की इस टिप्पणी पर कि अधिकांश न्यायाधीश बेईमान और गुणहीन होते हैं और राजनेताओं के पैरों में गिरकर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद प्राप्त करते हैं, मद्रास हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की गई है।

अधिवक्ता पी पुगलेंथी द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय में एक अवमानना याचिका दायर की गई है, जिसमें अदालत से संज्ञान लेने  का आग्रह किया गया है। एक अन्य वकील एस दोरीसामी ने एडवोकेट जनरल को पत्र लिखा है कि वे गुरुमूर्ति के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट्स एक्ट, 1971 की धारा 15 (1) (बी) के तहत अनुमति दें।

दरअसल 14 जनवरी को पत्रिका के वार्षिक कार्यक्रम के दौरान गुरुमूर्ति ने कथित तौर पर कहा था कि अधिकांश न्यायाधीश बेईमान और गुणहीन होते हैं और राजनेताओं के पैरों में गिरकर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद प्राप्त करते हैं।

अधिवक्ता पी पुगलन्थी द्वारा मद्रास हाई कोर्ट के समक्ष दाखिल याचिका में कहा गया है कि गुरुमूर्ति का भाषण जनता के मन में न्यायपालिका के सम्मान को कम करने के उनके इरादे को उजागर करता है। गुरुमूर्ति ने अपने भाषण के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि बहुत से न्यायाधीशों ने राजनेताओं के पैरों में गिर कर अपने पद को प्राप्त किया है, और इसलिए वे भ्रष्ट राजनेताओं के प्रति सहानुभूति रखेंगे। उनके भाषण से यह साफ है कि राजनेताओं द्वारा नियुक्त किए गए न्यायाधीशों के हाथों न्याय नहीं होगा। प्रतिवादी द्वारा जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, उससे स्पष्ट है कि लोगों का न्यायपालिका के प्रति विश्वास खत्म हो जाएगा और इसका नतीजा यह होगा कि कानून के शासन का विलोप हो जाएगा।

याचिका में एसके सरकार बनाम विनय चंद्र मिश्रा एआईआर 1981 एससीसी 723 मामले के फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि न्यायालय, एडवोकेट जनरल की सहमति के बिना अपने विवेक से इस मामले में दायर की गई याचिका में दिए गए सूचना के आधार पर मामले का स्वत: संज्ञान ले सकता है।

इसी बीच, अधिवक्ता एस दोरीसामी ने महाधिवक्ता विजय नारायण को पत्र लिखकर अवमानना की दीक्षा के लिए कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट्स अधिनियम, 1971 की धारा 15 (b) के तहत सहमति मांगी। अपने पत्र में दोरीसामी ने कहा है, “गुरुमूर्ति के झूठे, निंदनीय और बेईमान भाषण ने लोगों के न्याय के प्रशासन के प्रति विश्वास को कम कर दिया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट अपमान और अनादर किया गया है, जो कि आपराधिक अवमानना है।”

दोरीसामी ने कहा है कि तमिलनाडु की सरकार एस गुरुमूर्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अनिच्छुक है, क्योंकि वह सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की एक मजबूत सहयोगी है। सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक पार्टी को एस गुरुमूर्ति से डर लगता है, क्योंकि गुरुमूर्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति सहानुभूति रखते हैं और भाजपा के राजनीतिक सलाहकार हैं। चूंकि मेरी न्यापालिका की प्रतिष्ठा को बनाए रखने में बड़ी दिलचस्पी है, इसलिए मैं मद्रास हाई कोर्ट के समक्ष अवमानना करने वाले के खिलाफ न्यायालयों के अधिनियम की अवमानना जनरल की धारा 15 (बी) के तहत आपराधिक अवमानना करार देते हुए कार्यवाई करने की मांग करता हूं।

अपने पत्र में दोरीसामी ने गुरुमूर्ति द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत ठहराते हुए कहते हैं कि गुरुमूर्ति के अनुसार हाई कोर्ट के अधिकांश न्यायाधीश मेरिट रहित होते हैं और उन्हें अवैध तरीके से न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है। यह न्यायाधीशों के खिलाफ एक गलत और तुच्छ कथन है। मद्रास उच्च न्यायालय के लगभग सभी न्यायाधीश अपनी योग्यता के आधार पर नियुक्त किए गए हैं।

केवल उनके नाम मद्रास उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा चुने जाते हैं और इसके बाद इसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास भेज दिया जाता है। फिर वहां से उनके नाम कानून मंत्रालय के पास भेज दिए जाते हैं। कानून मंत्रालय इन नामों को इंटलिजेंस ब्यूरो के पास भेजता है, फिर इंटलिजेंस ब्यूरो प्रत्येक उम्मीदवारों की ईमानदारी और योग्यता की गहन जांच करता है।

इस जांच के दौरान यदि रिपोर्ट में यह पाया जाता है कि किसी उम्मीदवार की मेरिट सही नहीं है, तो उसका नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को वापस कर दिया जाता है। कोलेजियम प्रणाली के तहत किसी भी राजनेता के लिए उच्च न्यायालय की नियुक्ति में हस्तक्षेप करने का कोई मौका नहीं है। ईमानदारी के साथ केवल मेधावी व्यक्तियों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में चुना जाता है।

अपने पत्र में दोरीसामी ने यह भी कहा है कि गुरुमूर्ति ने भीमा कोरेगांव मामले में कार्यकर्ता गौतम नवलखा को रिहा करने के आदेश के बाद न्यायमूर्ति एस मुरलीधर (अब उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश) के खिलाफ अपनी टिप्पणी के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय से अवमानना कार्यवाही मामले में, बिना शर्त माफी मांगी थी, तब उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ कार्रवाई बंद की थी।

गौरतलब है कि इसके पहले वर्ष 2019 में दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुमूर्ति को अवमानना से बचने के लिए बिना शर्त माफी मांगने का मौका दिया था। आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम को जमानत मिलने के बाद गुरुमूर्ति ने ट्वीट करते हुए न्यायमूर्ति मुरलीधर पर सवाल उठाए थे। गुरुमूर्ति ने कहा था कि क्या न्यायमूर्ति मुरलीधर पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के जूनियर थे। इसके बाद न्यायमूर्ति मुरलीधर ने साफ किया था कि उनके पी चिदंबरम के साथ किसी भी तरह के कोई रिश्ते नहीं हैं। उन्होंने पी चिदंबरम के जूनियर के रूप में भी कभी काम नहीं किया है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि पत्रकार होने का यह मतलब नहीं है कि आपको कुछ भी लिखने का अधिकार है। हम सभी स्वतंत्र प्रेस का समर्थन करते हैं, लेकिन उसमें कोई निहित स्वार्थ नहीं होना चाहिए। 29 अक्तूबर 2018 को हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए कोर्ट की अवमानना की प्रक्रिया शुरू की थी। जस्टिस हीमा कोहली और जस्टिस योगेश खन्ना की बेंच ने गुरुमूर्ति को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि आपके खिलाफ कोर्ट की अवमानना की प्रक्रिया क्यों न शुरू की जाए।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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