Sunday, April 28, 2024

सुप्रीम कोर्ट से सुर्खियां: CAG की नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की नियुक्ति की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर केंद्रीय कानून एवं न्याय और वित्त मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

जनहित याचिका में शीर्ष अदालत से संविधान के अनुच्छेद 148 में उल्लिखित सीएजी के लिए निष्पक्ष, पारदर्शी और स्वतंत्र नियुक्ति प्रक्रिया सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई है।वकील मुदित गुप्ता के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, “संविधान भारत के राष्ट्रपति को अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत सीएजी नियुक्त करने का आदेश देता है। हालांकि चयन पद्धति निर्दिष्ट नहीं है, लेकिन इसे संवैधानिक, गैर-मनमाने सिद्धांतों का पालन करना होगा।”

इसमें कहा गया है कि मौजूदा प्रक्रिया में कैबिनेट सचिवालय प्रधानमंत्री के विचार के लिए “बिना स्थापित मानदंडों के” नामों को शॉर्टलिस्ट करता है, इसमें से प्रधानमंत्री एक नाम राष्ट्रपति को भेजते हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया, जहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तावित एक ही नाम को मंजूरी देते हैं, सीएजी की स्वतंत्रता के लिए संविधान की मंशा के विपरीत है। सीएजी की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया में स्वतंत्रता की कमी दिखाई देती है, इससे कार्यकारी के पूर्ण नियंत्रण और निष्ठा के बारे में चिंताएं बढ़ जाती हैं।“

इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि संविधान के संस्थापकों ने कार्यपालिका और विधायिका दोनों से सीएजी की स्वतंत्रता के सर्वोपरि महत्व को रेखांकित किया था और उनका इरादा सीएजी को एक सतर्क पर्यवेक्षक के रूप में स्थापित करना था, जो किसी भी अनधिकृत सरकारी खर्च को रोक सके। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक एक संवैधानिक लेखा परीक्षक के रूप में कार्य करता है, सरकारी व्ययों की देखरेख करता है और राजस्व संग्रह की निगरानी करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण की जनहित याचिका को व्यक्तिगत हित की याचिका बताया

वकील प्रशांत भूषण, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण जनहित याचिकाओं पर बहस की, जिसके परिणामस्वरूप संवैधानिक अदालतों में ऐतिहासिक फैसले आए, को गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यवसायी के व्यक्तिगत मामले को जनहित याचिका के रूप में छिपाकर बहस करने की संज्ञा डी और याचिका ख़ारिज कर दिया।

‘पीआईएल’ के एम चेरियन द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने फ्रंटियर लाइफलाइन की स्थापना की थी, एक कंपनी जो परिसमापन में चली गई है। वह राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण एनसीएलएटी के समक्ष कंपनी के खिलाफ परिसमापन प्रक्रिया की चुनौती हार गए थे। संबंधित मामले में भारतीय स्टेट बैंक के खिलाफ उनकी याचिकाओं को भी सुप्रीम कोर्ट ने ‘वापस ले लिया गया मानकर खारिज’ कर दिया था।

भूषण ने तर्क दिया कि चिकित्सा अनुसंधान संगठनों द्वारा ऋण का पुनर्भुगतान 2018 में नीति आयोग द्वारा सुझाए गए एक अलग शासन के तहत होना चाहिए और उन सुझावों के शीघ्र कार्यान्वयन के लिए सरकार को निर्देश देने का पुरजोर तर्क दिया।

उन्होंने कहा कि अन्य व्यवसायों के विपरीत, चिकित्सा अनुसंधान की प्रारंभिक अवधि बहुत लंबी है और इसलिए इन संगठनों को चिकित्सा अनुसंधान के लिए लिए गए ऋणों के पुनर्भुगतान के लिए उदार समयसीमा दी जानी चाहिए।

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने चेरियन द्वारा भूषण को मांगी गई राहत को पढ़ा और कहा, “यह पूरी तरह से एक व्यक्तिगत हित याचिका है क्योंकि याचिकाकर्ता सीधे मामले में शामिल है। हम जनहित याचिका के रूप में व्यक्तिगत हित याचिका पर विचार नहीं कर सकते।”

भूषण ने पूछा, “क्या इसका मतलब यह है कि जिस व्यक्ति को सिस्टम में कुछ अनियमितताओं या कमियों के बारे में व्यक्तिगत जानकारी है, उसे विसंगतियों के सुधार के लिए जनहित याचिका दायर करने से रोक दिया जाएगा?”

पीठ ने भूषण के सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया और चेरियन की जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि “हम याचिका पर पहले ही विचार कर चुके हैं।

जस्टिस पीबी वराले के शपथ लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट में 34 की पूरी क्षमता से कामकाज

गुरुवार को जस्टिस पीबी वराले के सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में शपथ लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट अब पूरी ताकत से काम कर रहा है। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार के अलावा वह दलित समुदाय से उच्चतम न्यायालय के तीसरे वर्तमान न्यायाधीश होंगे।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में आयोजित एक समारोह में न्यायमूर्ति वराले को पद की शपथ दिलाई, जिसमें अन्य न्यायाधीशों और बार के सदस्यों ने भाग लिया।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 19 जनवरी को न्यायमूर्ति वराले को भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी।

वह अनुसूचित जाति से संबंधित उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश थे और देश भर के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों में अनुसूचित जाति के एकमात्र मुख्य न्यायाधीश थे।

केंद्र सरकार द्वारा 24 जनवरी को उनकी नियुक्ति की अधिसूचना जारी करने से पहले, वह कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थे।

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार शुक्रवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की तुलसीदास के रामचरितमानस के बारे में उनकी कथित टिप्पणी पर आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका पर नोटिस जारी किया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पहले रामायण पर आधारित महाकाव्य कविता के बारे में विवादास्पद टिप्पणियों से संबंधित प्रतापगढ़ जिला अदालत में कानूनी कार्यवाही रद्द करने की मौर्य की याचिका खारिज कर दी थी। हालांकि, मौर्य ने जोर देकर कहा कि मामला राजनीति से प्रेरित है।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने न केवल उनकी याचिका पर नोटिस जारी किया, बल्कि उनके खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही पर भी रोक लगा दी।

सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई ने राज्य सरकार के रुख पर सवाल उठाते हुए पूछा, “आपको इतना संवेदनशील क्यों होना पड़ता है?” जस्टिस संदीप मेहता ने इस भावना को दोहराया, इस बात पर जोर दिया कि मामला व्याख्या के इर्द-गिर्द घूमता है।

उन्होंने कहा, “यह व्याख्या का मामला है। स्पष्ट और सरल। यह कैसे अपराध है?” पीठ ने फैसला सुनाया – “जारी नोटिस चार सप्ताह में वापस किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य के एडिशनल एडवोकेट जनरल शरण देव सिंह ठाकुर नोटिस स्वीकार करते हैं। कार्यवाही पर रोक लगाएं।”

कानूनी लड़ाई तब शुरू हुई, जब मौर्य को कथित तौर पर तुलसीदास के रामचरितमानस के खिलाफ टिप्पणी करने, विवाद खड़ा करने और उनके और समाजवादी पार्टी के अन्य सदस्यों के खिलाफ एफआईआर के लिए आरोपों का सामना करना पड़ा। आरोपों में पवित्र पाठ के विशिष्ट छंदों पर प्रतिबंध लगाने की वकालत करना, उन्हें समाज के महत्वपूर्ण हिस्से का अपमान करना शामिल है।

एफआईआर में सार्वजनिक गुस्से और बेचैनी के माहौल का विवरण दिया गया, जिसमें नेताओं द्वारा रामचरितमानस की प्रतियों को जलाने का समर्थन करने और इसके भक्तों के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने की खबरें हैं।

महमूद मदनी को हलाल उत्पादों पर यूपी सरकार के प्रतिबंध पर दंडात्मक कार्रवाई से अंतरिम सुरक्षा

सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत प्रमुख महमूद मदनी को हलाल उत्पादों पर यूपी सरकार के प्रतिबंध पर दंडात्मक कार्रवाई से अंतरिम सुरक्षा दी सुप्रीम कोर्ट ने हलाल-प्रमाणित उत्पादों के निर्माण, बिक्री, भंडारण और वितरण पर उत्तर प्रदेश सरकार के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट की याचिका पर नोटिस जारी किया। इसने जमीयत प्रमुख महमूद मदनी और ट्रस्ट के अन्य पदाधिकारियों को किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से भी राहत दी।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट द्वारा संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हुई। पीठ  ने पहले हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र की दो अन्य याचिकाओं पर नोटिस जारी किया, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा “हलाल-प्रमाणित उत्पादों के निर्माण, बिक्री, भंडारण और वितरण” पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती दी गई।

पिछले साल 18 नवंबर को लागू किए गए प्रतिबंध से विवाद खड़ा हो गया और हलाल उत्पादों को जब्त करने के लिए राज्य भर के मॉलों पर पुलिस की छापेमारी हुई। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि प्रतिबंध नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और स्थापित प्रमाणन प्रक्रियाओं को कमजोर करता है। उनका तर्क है कि यह गलत धारणा वाली कार्रवाई है, जो खुदरा विक्रेताओं के लिए अराजकता पैदा करती है और वैध व्यापार प्रथाओं को प्रभावित करती है।

मुकदमे में 11 साल की देरी: साबरमती जेल ब्रेक के आरोपी को जमानत मिली

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 2013 के साबरमती जेल ब्रेक मामले में एक आरोपी को जमानत दे दी, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि 11 साल से मामले में मुकदमा शुरू नहीं हुआ था, जिसके दौरान आरोपी जेल में रहा ।

न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने आज आरोपी को यह सूचित किये जाने के बाद जमानत दे दी कि यद्यपि उसे संबंधित मामले में बरी कर दिया गया है लेकिन जेल से कैदियों के भागने के मामले में कोई प्रगति नहीं होने के कारण वह जेल में ही रहा।

आरोपी रजीउद्दीन नशर 2008 के अहमदाबाद धमाकों के सिलसिले में 2008 से जेल में बंद है।जेल में रहने के दौरान ही उसे 2013 में जेल से कैदियों के भागने के मामले में आरोपी के तौर पर भी नामजद किया गया था। बाद में उन्हें फरवरी 2022 में एक विशेष अदालत ने अहमदाबाद विस्फोट मामले में सभी अपराधों से बरी कर दिया था।

जेल से कैदियों के फरार होने के मामले में शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि अभियोजन पक्ष ने 169 गवाहों का हवाला दिया है और मुकदमे का निष्कर्ष जो 10 साल में भी शुरू नहीं हुआ है, किसी भी उचित समय सीमा में समाप्त नहीं हो सकता है।

मुख्तार अंसारी के बेटे की आचार संहिता उल्लंघन मामले में गिरफ्तारी पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी को गिरफ्तारी से राहत दे दी है। उमर अंसारी पर साल 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आचार संहिता के कथित उल्लंघन के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस पीके मिश्रा की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है।

उमर अंसारी की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल कोर्ट में पेश हुए। सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले में मुख्य आरोपी को लगातार जमानत मिलती रही है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते साल दिसंबर में उमर अंसारी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि तथ्यों और परिस्थितियों को देखने से लगता है कि अपराध हुआ है। हालांकि अब हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।

4 मार्च 2022 को पुलिस ने मुख्तार अंसारी के दोनों बेटों अब्बास अंसारी और उमर अंसारी के साथ ही 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मऊ जिले के कोतवाली पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की थी।

आरोप है कि 3 मार्च 2022 को अब्बास अंसारी, उमर अंसारी और मंसूर अहमद अंसारी ने पहाड़पुरा ग्राउंड पर एक जनसमूह को संबोधित किया। इस दौरान स्थानीय प्रशासन से हिसाब बराबर करने की बात कही गई थी। इसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना गया था।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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