लखनऊ। डॉ. कफील खान की रासुका के तहत की गयी गिरफ्तारी की कई संगठनों ने निंदा की है। और इस मामले की इलाहाबाद हाईकोर्ट से संज्ञान लेने की अपील की है। गौरतलब है कि एएमयू में भाषण देने के मामले में कफील को पहले विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया और जब उन्हें जमानत मिल गयी। तो रिहा करने की जगह उनके ऊपर सूबे के योगी प्रशासन ने रासुका लगा दिया। जिसके चलते उनकी रिहाई एक बार फिर कई महीनों के लिए लटक जाएगी। ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश की पुलिस डॉ. कफील के साथ बदले की भावना से काम कर रही है। डॉ. कफील इस समय मथुरा जेल में बंद हैं।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की राज्य इकाई ने इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना की है।
पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने लखनऊ से जारी बयान में कहा है कि योगी सरकार में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटा जा रहा है। सीएए का महज बोलकर विरोध करने के लिए डॉ. कफील को पहले एसटीएफ लगाकर पकड़ा गया और जब कोर्ट से उनकी रिहाई मंजूर हो गयी, तो उसे रोकने के लिए रासुका लगा दिया गया।
यह रासुका जैसे कठोर (काले) कानून का दुरुपयोग है और डॉ. कफील के खिलाफ ज्यादती है। यह योगी सरकार की दमनकारी और नफरत की राजनीति का परिचायक है। यदि इस कानून का ऐसे लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाना है, जो सरकार से असहमत हैं, तो कानून की किताब से रासुका को हटा देना चाहिए।
माले नेता ने डॉ. कफील पर तामील रासुका को वापस लेने और उन्हें रिहा करने की मांग करते हुए कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय को योगी सरकार की इस दुर्भावनापूर्ण और गैर-जरूरी कार्रवाई पर स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।
दूसरी तरफ इस मामले पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि प्रदेश सरकार के इशारे पर उत्तर प्रदेश पुलिस संविधान और कानून की मर्यादाओं को कुचल रही है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के विचारों के प्रचार प्रसार के लिए चौरी-चौरा से राजघाट तक की यात्रा पर निकले दस सत्याग्रहियों की ग़ाजीपुर में गिरफ्तारी और डॉ० कफील को सीएए, एनआरसी के खिलाफ अलीगढ़ में छात्रों के धरने को सम्बोधित करने के आरोप में गिरफ्तार करने और ज़मानत उपरान्त रासुका लगाए जाने की घटना इसका जीवंत उदाहरण है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार के मुखिया द्वारा ‘ठोक दो’ और ‘बदला लेने’ जैसी असंसदीय भाषा से पुलिस बल को इस प्रकार की गैरकानूनी कार्रवाई की प्रेरणा मिलती है।
राजीव यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तक ने ज़मानत दिए जाने के बाद रिहाई को बाधित करने के लिए रासुका लगाए जाने के खिलाफ कठोर टिप्पणी की थी। उसके बावजूद उत्तर प्रदेश पुलिस सरकार की शह पर ऐसी कार्रवाइयां कर रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की पुलिस उस समय गूंगी बहरी बन जाती है जब वंचित समाज के खिलाफ हिंसा या उत्पीड़न के मामले सामने आते हैं।
उन्होंने कहा कि कानूपुर में दलित समाज द्वारा पुलिस से अनुमति लेकर अंबेडकर कथा के आयोजन मात्र से सवर्ण समाज के लोगों ने पूरी दलित बस्ती को घेर कर उन पर हिंसक हमला किया। महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों समेत कई लोगों के हाथ पैर तोड़ डाले लेकिन राज्य के मुखिया का कोई बयान तक नहीं आया और न ही पुलिस कार्रवाई में कोई तेज़ी देखने को मिली।
मंच महासचिव ने मांग किया कि चौरी चौरा से राजघाट तक जाने वाले सत्याग्रहियों पर से तुरंत मुकदमा वापस लिया जाए और बदले की भावना के तहत गिरफ्तार डॉ० कफील को अविलंब रिहा किया जाए।
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