दो कुकी महिलाओं को नंगा घुमाने के वीडियो के बारे में जब मणिपुर के मुख्यमंत्री से इंडिया टुडे की महिला पत्रकार ने सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि, “ऐसे सैकड़ों केस हुए हैं। इसीलिए राज्य में इंटरनेट बंद रखा गया है। एक केस को लेकर आप लोग! लेकिन मैं इसकी निंदा करता हूं। यह बेहद जघन्य कृत्य हुआ है। मानवता के खिलाफ अपराध की घटना है। इस घटना से जुड़े व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है। उसे देश के कानून के मुताबिक कड़ी सजा देंगे।”
उनकी इस स्वीकृति से कोई इंसान भौचक और शर्मसार हो जाएगा। इसके बाद महिला पत्रकार ने प्रश्न करते हुए कहा कमाल कर रहे हैं आप, जिस प्रकार से दो महिलाओं को नग्न करने घुमाया गया, उस घटना पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है, पर मुख्यमंत्री का जवाब था, “किसने घटना को दबाया? कल ही यह वीडियो वायरल हुई है। ऐसी सैकड़ों एफआईआर दर्ज हैं। हमें आपके आरोप नहीं सुनने हैं, आपको जमीनी हकीकत को देखना होगा।”
महिला एंकर ने सवाल किया, “4 मई की घटना है। 18 मई को इस घटना की एफआईआर दर्ज की गई। इतनी बड़ी घटना आपके राज्य में हुई है, जिसमें महिलाओं को शर्मसार किया जा रहा है, और आपको पता ही नहीं चला?”
गोदी मीडिया ने कल रात से मणिपुर का संज्ञान लेना शुरू किया है। पानी जब सिर से ऊपर चला जाता है तभी इनकी अंतरात्मा जाग पाती है। सोशल मीडिया जब किसी मुद्दे पर पूरी तरह से केंद्रित हो जाता है और गोदी मीडिया के तमाम धतकर्म के बावजूद जब उसकी रेटिंग अचानक से गिर जाती है, तब-तब ऐसा होता है। मणिपुर का वायरल वीडियो भी इसी का एक उदाहरण है।
लेकिन एक बार जब उसे ऊपर से भी हरी झंडी मिल जाती है, तो वह सत्ता-प्रतिष्ठान को भी एक झटके में नंगा कर सकता है। यही कारण है कि आज इंडिया टुडे ने अपने लाइव कार्यक्रम में मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को उन बातों को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया, जिसकी भाजपा आलाकमान ने कल्पना भी नहीं की होगी।
मणिपुर के मुख्यमंत्री को भी पता चल गया कि गोदी मीडिया ने मौसम बदलते ही रंग बदल दिया है। सभी जानते हैं कि आज समाचारपत्रों और न्यूज़ चैनल की कमाई का बड़ा स्रोत सरकार, राज्य सरकार और उनके सहयोग से कॉर्पोरेट मुहैया कराता है। जब तक नागरिकों की चेतना कुंद और विभाजित रहती है, तब तक ऐसे सवाल दम तोड़ते रहते हैं।
लेकिन जब-जब मीडिया अप्रासंगिक हो जाने के स्तर तक पहुंचने लगता है, उपर से यह भी साफ़ हो जाता है कि दबाव का स्तर केंद्रीय मंत्रियों और प्रधानमंत्री तक चला गया है, सर्वोच्च न्यायालय स्वतः संज्ञान की मुद्रा में एक्शन लेने जा रहा है, कथित राष्ट्रीय मीडिया तात्कालिक स्वार्थ-सिद्धि को परे धकेल ऐसे क्षण पैदा करता है, जो उसकी वैधता को फिर से कुछ समय के लिए मान्यता प्रदान कर देते हैं।
यही पूंजीवादी लोकतंत्र की कड़वी हकीकत है। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग कोई आज नहीं बल्कि 3 मई के बाद से ही मणिपुर में कुकी एवं अन्य समुदाय के द्वारा की जा रही है। लेकिन इस्तीफ़ा सिर्फ उन्हीं मुख्यमंत्रियों का आजतक भाजपा राज में लिया गया है, जो केंद्रीय सत्ता के पहेली वाले खेल में फिट नहीं बैठते।
सारा देश किसान आंदोलन के दौरान उत्तर प्रदेश में किसानों को अपनी गाड़ी से कुचलकर मार देने के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा के पिता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफे की मांग करते रह गये, लेकिन वे आज भी माननीय सांसद और मंत्री बने हुए हैं। यौन शोषण मामले में सांसद बृजभूषण शरण सिंह बनाम पहलवान महिला खिलाड़ियों का आंदोलन देश ही नहीं दुनिया में भारत पर बदनुमा दाग बना हुआ है। आज मजबूरन दिल्ली पुलिस को मामला दर्ज कर चार्जशीट में उन जघन्य कृत्यों को अदालत के समक्ष रखना पड़ा है, लेकिन सिंह भाजपा के सम्मानित सांसद तब तक रहेंगे, जब तक उन्हें अदालत अंतिम तौर पर सजा न सुना दे।
असल में तीनों आरोपी हिन्दुत्ववादी राजनीति की प्रयोगशाला के हिस्सा हैं। मणिपुर में कुकी को निशाना बनाकर बहुसंख्यक मैतेई हिंदू पर अपनी पकड़ मजबूत करने, किसान की पहचान के बजाय ब्राह्मणवादी विचारधारा बनाम सिख समुदाय और गोंडा से लेकर अयोध्या तक अपने साम्राज्य को स्थापित कर चुके बृजभूषण शरण सिंह, जिन्हें बाबरी मस्जिद का विध्वंस करने वाले प्रमुख लोगों में से एक गिना जाता है, के खिलाफ कार्रवाई का अर्थ है, उस विचारधारा और समर्थक आधार पर हमला करना। यह कैसे संभव हो सकता है, इसके बारे में प्रत्येक जागरूक भारतीय को गहन विचार करना होगा।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)