Friday, April 26, 2024

निजीकरण से लड़ना है तो बैंकों को अपने ग्राहकों का भरोसा जीतना होगा

सरकारी बैंकों के निजीकरण और बैंक कर्मचारियों के विरोध स्वरूप किए जा रहे आंदोलन और हड़ताल के बीच यह सवाल बार-बार उठ रहा है कि सरकारी बैंकों की सेवाओं के बारे में ग्राहकों की शिकायतों को नज़रंदाज़ क्यों किया जाता है।

इस मामले में  सरकारी पक्ष के कथित समर्थक आईटी सेल द्वारा बैंकिंग सेवाओं की फर्जी शिकायतों से बैंकों के निजीकरण का अभियान चलाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर ग्राहकों की वास्तविक शिकायतों पर बैंक और उनके कर्मचारियों का रवैया निराशाजनक है।

सरकार की बैंकिंग नीतियां बैंकों का मैनेजमेंट और बैंक के स्टाफ का मिला जुला रवैया बैंकों को आम जनता से दूर लेता जा रहा है। इस बीच एक हैरान करने वाली ख़बर स्टेट बैंक के बारे में आई है।  देशभर में अपनी हजारों शाखाओं के माध्यम से हजारों करोड़ का व्यवसाय करने वाला स्टेट बैंक एक पिद्दी सी एनबीएफसी अडानी कैपिटल की मदद से  गांवों में कृषि ऋण पहुंचाएगा।

इन पंक्तियों के लेखक को पिछले दिनों स्टेट बैंक की स्थानीय ब्रांच में जाने पर जो अनुभव मिला उससे यह बताने के लिए पर्याप्त है कि स्टेट बैंक और उसके कर्मचारी अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने को तैयार बैठे हैं।

 स्टेट बैंक के दूसरे शहर की ब्रांच के एक खाते में कुछ कैश पैसा जमा कराने के लिए जब काउंटर पर बैठी कर्मचारी को जमा स्लिप देकर ऐसा अनुरोध किया गया तो वहां बैठी कर्मचारी ने कहा कि किसी भी एकाउंट में पैसा एटीएम से ही जमा होगा। कैश से जमा नहीं होगा। इस पर उसकी बात का विरोध किया कहा कि जब एटीएम कार्ड नहीं है तो खाते में पैसा जमा कैसे होगा।  तो वो मानने को तैयार नहीं हुईं, बड़ी मुश्किल से पैसा जमा करने को राजी हुईं, साथ में यह भी कहा कि भविष्य में ऐसे दुबारा जमा नहीं होगा। वहीं मौजूद एक और कर्मचारी यह नियम बताने लगा कि एटीएम कार्ड से जमा करने का नियम ग्राहकों की सुविधा के लिए है।

यह समझ में आने वाली बात नहीं है कि अगर कोई बैंक एकाउंट होल्डर नहीं है तो  वह क्या किसी एकाउंट में पैसा जमा नहीं कर सकता ? और अगर कोई अपने खाते में पैसा जमा करेगा तो ? कैसे जमा करेगा? बैंक के यह नियम और कर्मचारियों का व्यवहार तो बैंक से ग्राहकों को दूर रखने या करने के लिए काफी है। अगर ऐसे नियम बनते और लागू होते रहे तो आम आदमी स्टेट बैंक से दूर ही होगा ।

जब सारी बैंक की शाखाएं नेट से जुड़ीं थीं तो यह प्रचार किया गया था कि इससे ग्राहकों को बहुत लाभ होगा उन्हें विश्व स्तरीय सेवाएं मिलेंगी। लेकिन जल्द ही ग्राहकों के सामने नए-नए नियम आड़े आ गए। तो ऐसे में कर्मचारियों की अपनी सुविधाएं बैंक सेवाओं से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गईं। किसी दूसरी ब्रांच के किसी एकाउंट में पैसा जमा कराना ग्राहकों के लिए हमेशा टेढ़ी खीर रहा है। और जबसे कैश जमा करने की सुविधा एटीएम में हुई है तब से ग्राहक का ब्रांच में जाकर कैश जमा कराना दूभर हो गया है। जबकि कुछ वैधानिक और तकनीकी कारणों से ग्राहक के लिए बैंक की ब्रांच में जाकर खाते में जमा करना और उसकी रसीद जिसमें बैंक मुहर और क्लर्क के दस्तखत होते हैं, उसे लेना और अपने पास रखना ज़रूरी होता है।

ऐसे में बैंक के नियम या कर्मचारी के कारण ग्राहक किसी खाते में कैश जमा नहीं कर पाए तो ऐसे बैंक से क्या फायदा।

स्टेट बैंक में खाता खुलवाना भी बहुत बड़ा काम होता है, स्टाफ नया खाता खोलने में बहुत बहाने करता है, खाता खोल भी दिया तो उसमें ऐसी गलती हो जाएगी कि आप परेशान हो जाएं।

इसी तरह स्टेट बैंक से ड्राफ्ट बनवाना भी आसान नहीं है, ड्राफ्ट न बनाने के दसियों कारण हो जाएंगे, इसी तरह आरटीजीएस से पैसा ट्रांसफर करवाना हो तो सही सूचना न देकर ग्राहक को परेशान करने की घटनाएं होती रहती हैं।

इसीलिए छोटे शहर के छोटे और मझोले दुकानदारों, किसानों, महिलाओं और वंचित वर्ग  से यह बैंक दूर होता जा रहा है। क्योंकि बड़े शहरों में लाखों करोड़ों का लेन-देन करने वाले अधिकतर प्रभावित नहीं होते। लेकिन छोटे शहरों, कस्बों की ग्रामीण शाखाओं और उन सुदूर पर्वतीय क्षेत्र की शाखाओं में सेवा का स्तर बहुत घटिया होता है। जहां आसपास कोई और बैंक नहीं होता। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां 40-50 किमी क्षेत्र में कोई बैंक नहीं होता वहां स्टेट बैंक की मनमानी असहनीय हो जाती है। उदाहरण के लिए टिहरी जिले की चमियाला शाखा को ही लें, उसी के निवासी और गांधी विचार की शीर्ष संस्था गढ़वाल उत्तराखंड सर्वोदय मण्डल के अध्यक्ष साहब सिंह सजवाण ने पहाड़ की दूरदराज़ शाखाओं में बैंक की कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठाए हैं उनका कहना है कि, स्टेट बैंक खाता धारकों को बहुत परेशान करता है। टिहरी गढ़वाल चमियाला स्टेट बैंक के खाता धारकों को परेशान करने के अनेकों किस्से हैं। नेटवर्क न होना अलग परेशानी है।

अभी सामान्य लोगों, किसानों व महिलाओं को व्यक्ति व्यक्तिगत,कृषि प्राथमिक क्षेत्र  या सरकारी योजना के अंतर्गत ऋण देने में आनाकानी वह लेट लतीफी करना और मना करने की कहानियां अलग हैं, जिसके लिए तो उन्हें कुछ कहा ही नहीं जा सकता। 

यह वही बैंक है जिसका रिकार्ड पहले ही कमजोर और कम आमदनी वाले लोगों को अपनी सेवाएं देने में अच्छा नहीं रहा है। यदि यह बैंक ऐसा ही करेगा तो इससे सामान्य ग्राहक और भी दूर हो जाएंगे।

नोफ्रिल/शून्य बैलेंस के नाम पर खुले एकाउंट से रुपए काटने/निकालने , खराब सेवाओं और कर्मचारियों के व्यवहार के कारणों से सामान्य लोगों के बीच लिए स्टेट बैंक वैसे ही छवि बहुत अच्छी नहीं है।

स्टेट बैंक की स्थानीय ब्रांच में मिले अनुभव को जब इन पंक्तियों के लेखक ने अपनी फेसबुक में इस शीर्षक से शेयर किया, ‘ओ स्टेट बैंक वालों यह मूर्खता मत करो’ तब इस पोस्ट पर लोगों की जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली। करीब 300 लाइक, कमेन्टस और शेयर की प्रतिक्रियाएं आईं।

अधिकांश कमेन्ट्स को पढ़कर यह लगा कि ग्राहक स्टेट बैंक की सेवाओं से बहुत नाराज़ हैं। एक तरफ तो सरकार समर्थक बैंकों को प्राइवेट का माहौल बनाने के लिए सोशल मीडिया में फर्जी माहौल बना रहे हैं तो दूसरी तरफ बैंक अपनी सेवाओं को नहीं सुधार रहे हैं।

स्टेट बैंक की सेवाओं के बारे में वरिष्ठ एडवोकेट शीशराम कंसवाल जी का कहना है कि,’स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के स्टाफ और अधिकारियों की बदतमीजी पेशेवर है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारियों और अधिकारियों के कारण ही कोई भी सामान्यतः स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में खाता नहीं रखना चाहता है। मेरा 50 साल का अनुभव है।’

कुमाऊं के जाने माने उद्यमी संजीव भगतजी का कहना है कि, ‘इस बैंक में तानाशाही है। कोई भी नियम से काम नहीं करता। काम टालने के लिए रोज नये नियम बताते हैं।’

सामाजिक कार्यकर्ता तसलीम अंसारी जी का कहना है कि, ‘एसबीआई में कर्मचारियों की हर एक काम के प्रति उदासीनता, हीला हवाली अब बहुत पुरानी और आम बात हो चुकी है। जनता के दिमाग में इनकी ये ही इमेज फीड है। एसबीआई जाना मतलब आज झगड़ा होना तय है।’

पहाड़ की कृषि और बागवानी से जुड़े वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता बच्ची सिंह बिष्ट जी का कहना था कि, ‘भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारी बेहद घटिया व्यवहार वाले हैं।पेशेवर व्यवहार की कमी के कारण लोग इससे लगातार दूर हो रहे हैं।मजबूरी में ही कोई इनके पास जाता है।यह लगातार का अनुभव है’

बैंक नीतियों और बैंक के कर्मचारियों के व्यवहार को इंगित करते हुए सोनू नाम की एक्टिविस्ट कहती हैं,- ….. (बैंक में) नीचे के कर्मचारियों को केवल डमी बना कर बैठा रखा है लेकिन कर्मचारियों को भी समझना चाहिए कि ये सब ग़लत है साजिश है पहले लोगों को दूर करेंगे, कर्मचारियों से बैंक से फिर इन्हें भी साफ कर देगी यही सरकार की राजनीति है ये हमारी नासमझी और कामचोरी होगी।

इसी तरह अनेक ग्राहकों के बहुत खराब अनुभव स्टेट बैंक के साथ हैं। कुछ लोगों ने तो फेसबुक में ही बैंक के प्रति अपशब्दों का प्रयोग भी किया है, जिसे लिखा नहीं जा सकता। यह सही है कि स्टेट बैंक के निजीकरण होने की संभावना नहीं है लेकिन खुंदक खाए ग्राहक बैंक के तुरंत निजीकरण की इच्छा करते हुए भी दिखे हैं। हालांकि स्टेट बैंक के ग्राहकों की शिकायतों को दूर करने के फोरम हैं और स्थानीय/रीजनल स्तर के कार्यालय भी हैं। परन्तु यह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रहे हैं। तभी स्टेट बैंक के प्रति रोष दिखाई दे रहा है।

(इस्लाम हुसैन लेखक और टिप्पणीकार हैं और काठगोदाम में रहते हैं।)

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