‘राज्य प्रायोजित’ हिंसा में मणिपुर को जलाया जा रहा है: NFIW

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नई दिल्ली। मणिपुर सरकार सुप्रीम कोर्ट में सवालों का जवाब नहीं दे सकी। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार से राज्य में जमीनी स्थिति को लेकर “स्थिति रिपोर्ट” दाखिल करने को कहा, जिसमें पुनर्वास, हथियारों की बरामदगी और राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार लाने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देना होगा। मणिपुर राज्य 3 मई से ही जातीय हिंसा की चपेट में हैं।

मणिपुर सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “स्थिति में सुधार हो रहा है, हालांकि धीरे-धीरे”, और उन्होंने अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कोर्ट से समय मांगा है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई की अगली तारीख 10 जुलाई तय की है।

मुख्य न्यायाधीश ने एसजी के बात पर कहा कि, “हम इसे लंबे समय तक स्थगित नहीं कर सकते। इसलिए क्योंकि हम जानना चाहते हैं कि जमीन पर क्या कदम उठाए गए हैं…हमें एक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दें।”

मणिपुर सरकार नया स्थिति रिपोर्ट देने से बच रही है। इस बीच दो महीने बाद भी राज्य में अमन-शांति कायम नहीं हुई है। नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने राज्य का दौरा कर स्थिति को जानने की कोशिश की। टीम ने, मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच चल रही हिंसक झड़प को “राज्य प्रायोजित” बताया है। इसके अलावा टीम ने पाया कि राहत शिविरों में विस्थापितों की स्थिति दयनीय है।

एनएफआईडब्ल्यू की महासचिव एनी राजा ने सोमवार को संवाददाताओं से बात करते हुए बताया कि उन्हें संदेह है कि इस हिंसा “जिसने 130 से अधिक लोगों की जान ले ली और लगभग 60,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं” का कारण है राज्य में पेट्रोलियम की खोज से जुड़ी हुई है, जिसकी शुरूआत 2017 में हुई थी।

“वर्तमान समय में मणिपुर में जो हो रहा है वह न तो सांप्रदायिक हिंसा है और न ही केवल दो समुदायों के बीच की लड़ाई है। इसमें भूमि, प्राकृतिक संसाधन, कट्टरपंथियों और उग्रवादियों की मौजूदगी के सवाल शामिल हैं। फासीवादी सरकार ने अपने छिपे हुए कॉर्पोरेट समर्थक एजेंडे को मूर्त रूप देने के लिए चतुराई से रणनीति अपनाई है, जिसके कारण आज दो समुदायों के बीच में वर्तमान संकट पैदा हुआ है और इससे मणिपुर जल रहा है। यह एक राज्य प्रायोजित हिंसा है।”

जिस छह राहत शिविरों का उन्होंने दौरा किया, टीम के सदस्यों ने पाया कि “उन्हें कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसे उनके विस्थापन और उनके रिश्तेदारों पर हमले या हत्या पर मुआवजा या एफआईआर की प्रतियां मिली हों।”

टीम की सदस्य अधिवक्ता दीक्षा द्विवेदी ने कहा, “एक शिविर में हमें एक पूर्व-मसौदा शिकायत दिखाई गई थी, जिसे शिकायत करने की इच्छा रखने वाले सभी लोगों को यह कहते हुए जमा किया था, ‘मेरा घर कुकी लोगों द्वारा नष्ट कर दिया गया है।”

एनएफआईडब्ल्यू की राष्ट्रीय सचिव निशा सिद्धू, जो टीम का हिस्सा थीं, उन्होंने कहा कि सैनिटरी पैड, महिलाओं के अंडरगारमेंट्स और चिकित्सा सुविधाओं की कमी है, और यहां तक कि गर्भवती महिलाओं, या जिनकी अभी-अभी डिलीवरी हुई थी, उनके ज़रुरत के अनुसार कोई अलग भोजन नहीं दिया जा रहा है। केवल दिन में दो बार चावल और दाल दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि, “हमने अधिकारियों से इन शिविरों में आंगनवाड़ी शुरू करने के लिए कहा ताकि छोटे बच्चों को अधिक भोजन मिल सके, मनरेगा के तहत महिलाएं कुछ कमा सकें और शिविरों में वृद्धावस्था पेंशन का भुगतान कर सकें।” इस वक्त में इन लोगों के लिए यह चीजें बहुत ज़रूरी है।

एनएफआईडब्ल्यू ने जिन चीजों की मांग कि है, उसमें मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का इस्तीफा, सभी युद्धरत समूहों को निरस्त्र करना और सभी पक्षों के साथ विश्वास बहाली के उपाय भी शामिल हैं।

एनएफआईडब्ल्यू ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच, मैतेई और कुकी-बहुल क्षेत्रों के बीच बफर जोन के दोनों किनारों पर समान सुरक्षा बल की तैनाती की भी मांग की है। मैतेई समूह इस बफर जोन को राज्य को विभाजित करने की दिशा में एक कदम के रूप में देखता हैं।

पिछले महीने, केंद्र ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा के देख-रेख में एक जांच आयोग और मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक शांति समिति का गठन किया, जिसका कुकी समूहों ने बहिष्कार किया था।

26 जून को, मुख्यमंत्री कार्यालय ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक के बाद एक बयान में यह संकेत दिया कि शांति प्रक्रिया में और भी अधिक प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। केंद्र का कहना है कि बहुसंख्यक मैतेई लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश पर मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के कारण हिंसा भड़की थी। जबकि एनएफआईडब्ल्यू ने अदालत के आदेश को माध्यमिक मुद्दा बताया है, इससे पहले समुदायों के बीच अविश्वास पैदा करने वाले फैसलों की एक श्रृंखला सूचीबद्ध की है।

एनी राजा ने कहा कि उन्होंने शिविरों में महिलाओं को अपने पड़ोसियों से फोन पर बात करते देखा है और उनमें से अधिकांश इस हिंसक विभाजन के बावजूद घर लौटना चाहती हैं। एनी राजा ने बताया की, “राज्य के बाहर की मणिपुरी महिलाएं दोनों समुदायों के बीच विश्वास पैदा करने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।” उन्होंने कहा कि एनएफआईडब्ल्यू जल्द ही राष्ट्रीय राजधानी में दोनों समुदायों की महिलाओं को एक ही मंच पर लाने का प्रयास करेगा।

(राहुल कुमार की रिपोर्ट।)

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