Sunday, April 28, 2024

‘समान नागरिक संहिता’ का समर्थन कहां और कब महंगा पड़ेगा ‘आप’ को?   

केंद्र की नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के जिन राजनीतिक कट्टर विरोधी दलों ने ‘समान नागरिक संहिता’ (यूसीसी) का खुला समर्थन किया है; उनमें आम आदमी पार्टी (आप) भी शुमार है। ‘आप’ सुप्रीमो व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बाकायदा यूसीसी का समर्थन किया है। पंजाब में भी ‘आप’ की सरकार है। भगवंत मान मुख्यमंत्री हैं। जब से ‘आप’ के राष्ट्रीय नेतृत्व ने यूसीसी का समर्थन किया है तब से ‘आप’ की पंजाब इकाई में चौतरफा सन्नाटा पसरा हुआ है। मुख्यमंत्री, उनके मंत्री और पार्टी विधायक तो क्या- आम कार्यकर्ता भी इस पर किसी किस्म की कोई प्रतिक्रिया देने से फिलवक्त बच रहे हैं। वजह साफ है।

पंजाब विधानसभा चुनाव में लोगों ने तीसरे विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी को जबरदस्त बहुमत के साथ सत्ता में आने का मौका दिया था। उसके चंद महीने बाद भगवंत मान की नुमाइंदगी वाली संगरूर लोकसभा सीट खाली हो गई। ‘आप’ का अति आत्मविश्वास वहां उसे ले डूबा क्योंकि पार्टी के लोग मानते थे कि भगवंत मान के मुख्यमंत्री होने का सीधा लाभ संगरूर में मिलेगा। लेकिन वहां से गरमख्याली व खालिस्तान के खुले समर्थक अलगाववादी नेता सिमरनजीत सिंह मान ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल करके सबको चौंका दिया। ‘आप’ का आत्मविश्वास डगमगाया और उसके मनोबल पर भी नागवार असर पड़ा।

संगरूर में स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ राष्ट्रीय मुद्दे भी शिद्दत के साथ आम आदमी पार्टी उठाती थी। खासतौर से ‘आप’ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और सूबे के मुख्यमंत्री भगवंत मान। ‘समान नागरिक संहिता’ इनमें से एक बड़ा मुद्दा था। जिला मलेरकोटला संगरूर संसदीय सीट का हिस्सा है। वह मुस्लिम बाहुल्य है। वहां की तकरीबन 80 फ़ीसदी आबादी मुस्लिम है। पंजाब का पहला शाहीनबाग मोर्चा मलेरकोटला में ही लगा था। वहां के बाशिंदे लगातार ‘समान नागरिक संहिता’ का पुरजोर विरोध करते आए हैं। सिख समुदाय भी उनके साथ है।

सो संगरूर लोकसभा उपचुनाव हुए तो भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल ने विभिन्न मंचों से जोर देकर कहा कि आम आदमी पार्टी किसी भी सूरत में यूसीसी का समर्थन नहीं करेगी क्योंकि अपने मूल में यह अल्पसंख्यक विरोधी है। यही बात सिमरनजीत सिंह मान और अन्य उम्मीदवार कहा करते थे। मुस्लिम मत संगरूर में निर्णायक है। अवाम ने राज्य की राजनीति में लगभग हाशिए पर आ चुके बुजुर्ग सिख सियासतदान सिमरनजीत सिंह मान को जिताया। इसके बाद जालंधर लोकसभा उपचुनाव हुए। यहां भी मुस्लिम वोट अच्छी तादाद में हैं और बाकायदा सर्वे में पाया गया था कि स्थानीय बहुतेरे सिख भाजपा की जिन नीतियों के खिलाफ हैं; उनमें ‘समान नागरिक संहिता’ और नोटबंदी का मुद्दा अहम है।

जालंधर लोकसभा उपचुनाव के दौरान धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने हर धार्मिक स्थल की चौखट पर मत्था टेका और कहा कि ‘आप’ यूसीसी का समर्थन नहीं बल्कि प्रबल विरोध करेगी। जालंधर लोकसभा उपचुनाव में ‘आप’ को जबरदस्त बहुमत मिला। यूसीसी के मुखर विरोध ने इसमें जबरदस्त भूमिका अदा की।

सूबे के ज्यादातर सिख ‘समान नागरिक संहिता’ के विरोध में हैं। ऐसा लगता है कि अगर यह लागू हो जाती है तो उनकी अलहदा पहचान मिट जाएगी। चिरकाल से चले आ रहे रीत-रिवाज खत्म हो जाएंगे। सिख मैरिज एक्ट कभी लागू नहीं होगा। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की शक्तियां क्षीण हो जाएंगी। अर्धसैनिक बलों तथा फौज की भर्ती तक में कटौती होगी।

बेशक इनमें से ज्यादातर बातें भ्रामक हैं लेकिन आम सिख तो यही मानकर चल रहा है। देश में सिख अल्पसंख्यक माने जाते हैं लेकिन पंजाब में बहुसंख्यक। बावजूद इसके पंजाब में सिखों के बड़े तबके में ‘अल्पसंख्यक मानसिकता’ पाई जाती है। यहां बड़े पैमाने पर रह रहा मुस्लिम और ईसाई तबका तो खैर खुद को अल्पसंख्यक मानता ही है। बेशक उनके साथ सामाजिक तौर पर किसी किस्म का कोई भेदभाव नहीं किया जाता। लेकिन कतिपय सिखों, मुसलमानों और ईसाइयों को लगता है कि ‘समान नागरिक संहिता’ उनके खिलाफ षड्यंत्र सरीखी है। उनका सवाल है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उसे लागू करने की चर्चा भाजपा एक से दूसरे कोने तक क्यों कर रही है?

केंद्र के यूसीसी प्रस्ताव का ‘आप’ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल द्वारा समर्थन करने की घोषणा की सूचना मीडिया को पहले-पहल पंजाब से राज्यसभा सांसद संदीप पाठक ने दी। पाठक आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। ‘आप’ के यूसीसी का समर्थन करने की घोषणा के बाद पंजाब में पार्टी हक्की-बक्की सी रह गई। मुख्यमंत्री तक खामोश हैं।

पूछने पर ‘आप’ का कोई भी नेता, विधायक और मंत्री किसी भी किस्म की कोई प्रतिक्रिया इस संवेदनशील मुद्दे पर नहीं देना चाहता। यहां तक कि पार्टी के जिला पदाधिकारी भी। नाम नहीं देने की शर्त पर आम आदमी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने इस पत्रकार से कहा कि यूसीसी का समर्थन करने से पहले ‘आप’ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने इस बाबत पंजाब इकाई से कोई बातचीत तक नहीं की। विचार-विमर्श तो दूर की बात है।

प्रसंगवश, एकतरफा फैसला लेना अरविंद केजरीवाल की फितरत है। उनकी ‘असली’ राजनीति को आज तक कोई नहीं समझ पाया। पंजाब इकाई अनुशासन और केजरीवाल टीम की नाराजगी के चलते मुंह नहीं खोल रही। एक अन्य पार्टी नेता कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर ‘समान नागरिक संहिता’ का समर्थन करना आम आदमी पार्टी की कोई मजबूरी या सोच हो सकती है लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि पंजाब में वह प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में है। यानी लोगों ने उसे भारी बहुमत के साथ शासन-व्यवस्था की बागडोर सौंपी है।

दिल्ली में ‘समान नागरिक संहिता’ को दिया गया समर्थन पंजाब में तगड़ा नुकसान दे सकता है। नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ‘जनचौक’ से कहते हैं कि, “अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी असल में भाजपा की बी टीम है। केजरीवाल पंजाब को अपनी कॉलोनी समझते हैं। किसी भी बड़े फैसले के वक्त मुख्यमंत्री भगवंत मान को विश्वास में नहीं लिया जाता, बस बता दिया जाता है कि मीडिया के आगे यह बोलना है। वह बोल देते हैं।”

कांग्रेस के तेजतर्रार विधायक सुखपाल सिंह खैहरा के अनुसार, “यूसीसी पर मुख्यमंत्री और ‘आप’ की पंजाब इकाई की खामोशी बताती है कि राज्य सरकार असल में दिल्ली के आदेशों से चलती है। भगवंत मान एक कमजोर और कठपुतली मुख्यमंत्री हैं। दिल्ली में ‘आप’ ‘समान नागरिक संहिता’ का समर्थन करती है और पंजाब में खामोश इसलिए रहती है कि यहां इसका कड़ा विरोध हो रहा है। यह किसी भी पार्टी का दोगलापन है।”

वहीं आम आदमी पार्टी के कई वरिष्ठ नेता ऐसे हैं जिन्हें विधानसभा चुनाव से पहले मंत्री पद देने का वादा किया गया था लेकिन किसी विभाग का चेयरमैन तक नहीं बनाया गया। उनका एक ‘कॉकस’ भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भीतर ही भीतर उभर रहा है। यानी पार्टी कभी भी विघटन अथवा खुली बगावत का सामना करने को मजबूर हो सकती है।

नाखुश आम आदमी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और विधायक कहते हैं, “आप ने पहले स्थापित परंपराओं के विपरीत सिख गुरुद्वारा एक्ट में अपने तौर पर ही संशोधन करने का फैसला कर लिया। अब यूसीसी का समर्थन करने की घोषणा की है। देशभर के अल्पसंख्यक इसके खिलाफ हैं। पंजाब वैसे भी देश के परंपरागत राजनीतिक माहौल के विपरीत चलता रहा है। पंजाबी बेइंतहा देश प्रेमी हैं लेकिन बहुमत के रूप में उनकी समझ व मानसिकता थोड़ी अलग है। भाजपा पंजाब में अभी यूसीसी पर ज्यादा मुखर नहीं है लेकिन राजनीतिक जरूरतों के मुताबिक जब वह ज्यादा सक्रिय हुई तो पंजाब एक बड़ा तबका इस मुद्दे पर एकजुट हो जाएगा और तब सीधे टकराव की नौबत आएगी।”

गौरतलब है कि सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई वाला शिरोमणि अकाली दल ‘समान नागरिक संहिता’ को अल्पसंख्यक तथा सिख विरोधी बताकर इसका पुरजोर विरोध कर रहा है। कांग्रेस पहले से ही राष्ट्रीय स्तर पर इसका तीखा तार्किक विरोध कर रही है। आम आदमी पार्टी की दिल्ली में बैठी पहली कतार की लीडरशिप पंजाब की जमीनी हकीकत से सरासर नावाकिफ है, यह एक बार फिर साफ हो गया है। दिल्ली और पंजाब में उसके पास बहुमत के साथ सत्ता है लेकिन भविष्य में किसी अन्य राज्य में उसकी जड़ें जमेंगी- फिलहाल तो कोई संभावना नजर नहीं आती।

तो ऐसे में ‘आप’ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की क्या मजबूरी थी कि ‘समान नागरिक संहिता’ का वह आनन-फानन में समर्थन करते हैं और भूल जाते हैं कि पंजाब में आने वाले दिनों में इसका कितना नागवार असर होगा। विशेष तौर पर तब जब विधानसभा चुनाव, संगरूर तथा जालंधर लोकसभा उपचुनाव में पार्टी की समूची लीडरशिप यूसीसी के खिलाफ बोलकर लोगों को भरमा चुकी है। आपसी बातचीत में आम लोग पूछ रहे हैं कि अब झाड़ू वालों का स्टैंड कहां गया?

‘समान नागरिक संहिता’ पर अरविंद केजरीवाल के समर्थन, फिलवक्त पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की खामोशी और पार्टी के अन्य वरिष्ठ लोगों की चुप्पी का असली इम्तिहान तब होगा; जब चेतावनी के अनुसार सूबे के किसान, खेत मजदूर और अन्य जत्थेबंदियां पहले व्यापक किसान आंदोलन की तर्ज पर आंदोलन शुरू करेंगी और सड़कों पर आएंगी। तय है कि सूबा हुकूमत उन पर फूल तो नहीं बरसाएगी। अलबत्ता पुलिसिया लाठियां जरूर उनकी पीठों पर अपने निशान छोड़ेंगी। आंदोलन की एक वजह यह भी बनेगा कि यूसीसी पर आम आदमी पार्टी का दिल्ली में स्टैंड और तथा पंजाब में सिरे से अलहदा है।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की रिपोर्ट।)

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