उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले के तहत आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि बिना कपड़े उतारे बच्चे के स्तन छूने से पॉक्सो एक्ट की धारा 8 के अर्थ में यौन उत्पीड़न नहीं होता है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के वक्षस्थल (ब्रेस्ट) को बिना स्किन टू स्किन टच के छूने के अपराध को पॉक्सो ऐक्ट के दायरे से बाहर बताया था।
उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पाक्सो एक्ट के तहत बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि यह बहुत ही परेशान करने वाला निष्कर्ष है। आपको इस पर ध्यान देना चाहिए। मैं इस पर याचिका दायर करूंगा या फिर आप इसका स्वतः संज्ञान लें। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि निर्णय अभूतपूर्व है और एक खतरनाक मिसाल कायम करने की संभावना है। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया, जिसमें पाक्सो एक्ट के आरोपियों को बरी करते हुए स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट को जरूरी बताया गया था। चीफ जस्टिस बोबडे ने एजी को निर्णय को चुनौती देने के लिए उचित याचिका दायर करने का निर्देश दिया और दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का नोटिस जारी किया है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अटॉर्नी जनरल फैसला हमारे ध्यान में लाए हैं, जिसमें हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से पाक्सो एक्ट की धारा 8 के तहत आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया है कि अभियुक्त का अपराध करने का कोई यौन इरादा नहीं था, क्योंकि कोई प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क नहीं था। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह आदेश भविष्य में गंभीर मिसाल बन सकता है।
यूथ बार असोसिएशन में बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। हाई कोर्ट के इस फैसले पर विवाद छिड़ गया था। नागरिक संगठनों एवं कई जानी-मानी हस्तियों ने इसे हास्यास्पद बताकर फैसले की आलोचना की थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 12 वर्ष की एक नाबालिग के साथ हुए इस अपराध के मुकदमे की सुनवाई में कहा था कि बच्ची को निर्वस्त्र किए बिना, उसके वक्ष स्थल (ब्रेस्ट) को छूना यौन हमला नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह की हरकत पॉक्सो एक्ट के तहत यौन हमले के रूप में परिभाषित नहीं की जा सकती। हालांकि ऐसे आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 (शीलभंग) के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला की एकल पीठ ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि किसी हरकत को यौन हमला माने जाने के लिए ‘गंदी मंशा से त्वचा से त्वचा (स्किन टू स्किन) का संपर्क होना’ जरूरी है। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है। जस्टिस गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन किया, जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यौन हमले की परिभाषा में शारीरिक संपर्क प्रत्यक्ष होना चाहिए या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि स्पष्ट रूप से अभियोजन की बात सही नहीं है कि आवेदक ने उसका टॉप हटाया और उसका ब्रेस्ट छुआ। इस तरह बिना संभोग के यौन मंशा से सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ। यौन हमले की घटना मानने के लिए यौन इच्छा के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क होना चाहिए।
जस्टिस गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा था कि किसी विशिष्ट ब्योरे के अभाव में 12 वर्षीय बच्ची के वक्ष को छूना और क्या उसका टॉप हटाया गया या आरोपी ने हाथ टॉप के अंदर डाला और उसके वक्ष को छुआ गया, यह सब यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है। वक्ष छूने का कृत्य शील भंग करने की मंशा से किसी महिला/लड़की के प्रति आपराधिक बल प्रयोग है।
अभियोजन पक्ष और नाबालिग पीड़िता की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके वक्ष को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की। हाई कोर्ट ने कहा, चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह आईपीसी की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है। धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष की कैद है, वहीं पॉक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है।
सत्र अदालत ने पॉक्सो कानून और आईपीसी की धारा 354 के तहत उसे तीन वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। दोनों सजाएं साथ-साथ चलनी थीं। एकल पीठ ने उसे पॉक्सो कानून के तहत अपराध से बरी कर दिया और भादंसं की धारा 354 के तहत उसकी सजा बरकरार रखी। एकलपीठ ने कहा था कि अपराध के लिए (पॉक्सो कानून के तहत) सजा की कठोर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अदालत का मानना है कि मजबूत साक्ष्य और गंभीर आरोप होना जरूरी हैं।
गौरतलब है कि पॉक्सो कानून के तहत यौन हमले की परिभाषा है कि जब कोई यौन मंशा के साथ बच्ची/बच्चे के निजी अंगों, वक्ष को छूता है या बच्ची/बच्चे से अपना या किसी व्यक्ति के निजी अंग को छुआता है या यौन मंशा के साथ कोई अन्य कृत्य करता है जिसमें संभोग किए बगैर यौन मंशा से शारीरिक संपर्क शामिल हो, उसे यौन हमला कहा जाता है। एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि यौन हमले की परिभाषा में शारीरिक संपर्क प्रत्यक्ष होना चाहिए या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)
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