सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 20 अप्रैल 23 को राज्य सरकारों को उन प्रवासी और असंगठित श्रमिकों को 3 महीने के भीतर ‘राशन कार्ड’ देने का निर्देश दिया, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। लेकिन वो केंद्र के ‘ई-श्रम पोर्टल’ पर पंजीकृत हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ‘ई-श्रम पोर्टल’ में पंजीकृत लगभग आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड देने का निर्देश दिया। जिन्हें ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ के तहत कवर नहीं किया गया।
पोर्टल में 28.6 करोड़ श्रमिक पंजीकृत हैं। इसमें से 20.63 करोड़ राशन कार्ड के आंकड़ों पर दर्ज हैं। अदालत ने कहा कि कल्याणकारी राज्य का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक प्रवासी श्रमिक को ‘राशन कार्ड रोल’ में शीघ्रता से शामिल करे।
जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस असानुद्दीन की पीठ ने कार्यकर्ताओं हर्ष मंदर, अंजलि भारद्वाज और जगदीप छोकर द्वारा दायर एक आवेदन में आदेश पारित किया। आवेदन में संघ और कुछ राज्यों पर प्रवासी मजदूरों के लिए सूखे राशन और खुले सामुदायिक रसोई के निर्देशों का पालन न करने का आरोप लगाया गया है।
पीठ ने कहा था कि कल्याणकारी राज्य में लोगों तक पहुंचना सरकार का कर्तव्य है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि सरकार अपना कर्तव्य नहीं निभा रही है या फेल हो गई है। इसमें कोई लापरवाही भी नहीं हुई है। फिर भी ये मानते हुए कि कुछ लोग छूट गए हैं, केंद्र और राज्य सरकारों को यह देखना होगा कि उन्हें राशन कार्ड मिले। पीठ ने कहा कि ये सरकार का काम है कि वो जरूरतमंदों तक पहुंचे। कभी-कभी कल्याणकारी राज्य में कुएं को प्यासे के पास जाना चाहिए।
केंद्र सरकार ने बताया है कि 28.86 करोड़ श्रमिकों ने मदद के लिए बने ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराया है। 24 राज्यों और उनके श्रम विभागों के बीच डेटा शेयरिंग हो रही है। लगभग 20 करोड़ लोग ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ के लाभार्थी हैं। ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ केंद्र और राज्यों सरकारों द्वारा मिलकर किया गया प्रयास है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण और चेरिल डिसूजा ने कहा कि नवीनतम जनसंख्या के आंकड़ों की अनुपस्थिति के कारण, 10 करोड़ से अधिक लोगों को ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’, 2013 के ‘सुरक्षात्मक छतरी’ से बाहर कर दिया गया था, वह भी बिना राशन कार्ड के।
पीठ ने कहा कि वर्तमान में हम संबंधित राज्यों को व्यापक प्रचार करके ‘ई-श्रम पोर्टल’ पर पंजीकृत लोगों को राशन कार्ड जारी करने की कवायद करने के लिए तीन महीने का समय देते हैं। और लोगों को जिला कलेक्टर कार्यालय के माध्यम से संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को संपर्क करने का निर्देश देते हैं। ताकि पोर्टल पर पंजीकृत अधिक से अधिक लोगों को राशन कार्ड जारी किया जा सके।
जिससे उन्हें भारत सरकार एवं राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’, 2013 का लाभ मिल सके। पीठ ने केंद्र सरकार को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा और और मामले को 3 अक्टूबर, 2023 को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
पीठ ने अधिकारियों को अपने आदेश को लागू करने के लिए तीन महीने का समय दिया। इसने सुनवाई की अगली तारीख 3 अक्टूबर तक केंद्र से स्थिति रिपोर्ट मांगी है। पीठ ने आदेश दिया कि हम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ई-श्रम पोर्टल पर छूटे हुए पंजीकरण कर्ताओं को राशन कार्ड जारी करने की कवायद के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार करने के लिए तीन महीने का समय देते हैं।
पीठ ने कहा कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जिला कलेक्टरों के माध्यम से श्रमिकों तक पहुंच सकते हैं। ताकि ‘ई-श्रम पोर्टल’ पर अधिक से अधिक पंजीकरण कराने वालों को राशन कार्ड जारी किए जा सकें और उन्हें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ के तहत शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को ये सूचित करने का निर्देश दिया था कि क्या ‘ई-श्रम पोर्टल’ पर पंजीकृत 28.55 करोड़ प्रवासियों/असंगठित श्रमिकों के पास राशन कार्ड हैं और क्या उन सभी को भोजन का लाभ दिया गया है।
‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ जो ग्रामीण और शहरी गरीबों को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार देता है। पीठ ने टिप्पणी की कि पोर्टल पर केवल पंजीकरण पर्याप्त नहीं है। यह जरूरी है कि सरकारों की कल्याणकारी योजना का लाभ गरीब से गरीब व्यक्ति तक पहुंचे।
जस्टिस शाह ने अतिरिक्त महाधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी से कहा कि हम राज्यों और केंद्र के बीच डेटा साझा करने में रुचि नहीं रखते हैं। हम इस बात में रुचि रखते हैं कि क्या कुशल या अकुशल प्रवासियों को योजनाओं का लाभ मिल रहा है। सरकार हर उस प्रवासी तक पहुंचें, सबसे पहले जो पहले से पंजीकृत हैं।
(जे.पी. सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं कानूनी मामलों के जानकार हैं।)