Friday, March 29, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए में बंद कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को दी राहत

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 17 अप्रैल 23 को यूएपीए मामले में एक्टिविस्टों को राहत दी और जहां सुप्रीम कोर्ट ने 4.5 साल की हिरासत के बाद दो कथित माओवादियों को जमानत दी वहीं असम एमएलए अखिल गोगोई के डिस्चार्ज को रद्द करने के गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि की और अखिल गोगोई को जमानत दे दी। वहीं प्रो.जी.एन. साईंबाबा मामले की सुनवाई की जिसमें साईंबाबा के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सभी मुद्दों पर नए सिरे से फैसला करने के लिए हाईकोर्ट को भेजा जाए।

1- यूएपीए: सुप्रीम कोर्ट ने 4.5 साल की हिरासत के बाद दो कथित माओवादियों को जमानत दी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के दो नेताओं की 2018 में हुई हत्या के मामले में भाकपा (माओवादी) से कथित रूप से जुड़े दो आरोपियों को इस आधार पर जमानत दे दी कि वे चार साल से अधिक समय से हिरासत में थे और आरोप तक नहीं फ्रेम हुए हैं। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता साढ़े चार साल से हिरासत में हैं। आरोप तय नहीं किया गया है और अभियोजन पक्ष 140 से अधिक गवाहों की जांच करने का प्रस्ताव करता है। कुछ आरोपी फरार हैं। इस प्रकार, निकट भविष्य में परीक्षण शुरू होने की कोई संभावना नहीं है।

यह घटना 23 सितंबर, 2018 को हुई थी, जिसमें किदारी सर्वेश्वर राव (विधान सभा के सदस्य और विधान सभा में तेलुगु देशम पार्टी के व्हिप) और सिवेरी सोमा (तेलुगु देशम पार्टी से संबंधित पूर्व विधायक) की विशाखापत्तनम में डुमब्रिगुडा पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में पंचायत लिवितिपुत्तु, पोथांगी गांव के पास हत्या कर दी गई थी।

यूएपीए की पहली अनुसूची में अधिसूचित आतंकवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से कथित रूप से संबंधित 45 अभियुक्तों के खिलाफ उसी दिन मृत वर्तमान विधायक के निजी सचिव द्वारा एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। मामला बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को स्थानांतरित कर दिया गया था। अपीलकर्ताओं (क्रमशः अभियुक्त संख्या 46 और 47) को 13 अक्टूबर, 2018 को गिरफ्तार किया गया था और उनके खिलाफ 10 अप्रैल, 2019 को आरोप पत्र दायर किया गया था। चार्जशीट में 79 (शुरुआत में 85) अभियुक्तों और 144 गवाहों को नामजद किया गया था।

वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने अदालत के समक्ष दलील दिया कि दोनों आरोपियों के खिलाफ यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि उन्होंने माओवादियों के साथ-साथ सह-अभियुक्तों को आश्रय और रसद सहायता प्रदान की और उन्होंने बारूदी सुरंगें बिछाईं। अपराध में दो अपीलकर्ताओं की संलिप्तता का कोई प्रथम दृष्टया सबूत नहीं है।

यह तर्क दिया गया था कि मामले में आरोप तय नहीं किए गए हैं और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि अभियोजन पक्ष के 144 गवाहों की जांच की जानी है, मुकदमे में वर्षों लगेंगे और इसलिए अपीलकर्ताओं की निरंतर कारावास संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन होगा।

दूसरी ओर केंद्र सरकार की ओर से उपस्थित एएसजी, केएम नटराज ने कहा कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया मजबूत सबूत हैं और इसलिए यूएपीए की धारा 43-डी की उप-धारा (5) के परंतुक के मद्देनजर, अपीलकर्ता जमानत के हकदार नहीं हैं।

पीठ ने कहा कि आरोपी नं. 84 को उच्च न्यायालय ने इस आधार पर जमानत दी थी कि वह प्रथम दृष्टया अपराध में शामिल नहीं था। हम यह समझने में विफल हैं कि आरोपी संख्या 46 द्वारा आरोपी संख्या 84 के कहने पर घटना से बहुत पहले 8,000 रुपये की दवाओं की खरीद का 23 सितंबर, 2018 को हुई घटना से कोई संबंध कैसे है। इस तथ्य के अलावा कि आरोपी संख्या 84 को उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी है।

पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री यह मानने के लिए उचित आधार नहीं बताती है कि यूएपीए के तहत अपराध करने के अपीलकर्ताओं के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सत्य हैं। इसलिए, धारा 43-डी की उपधारा (5) के प्रावधान के तहत जमानत देने पर प्रतिबंध इस मामले में लागू नहीं होगा।

2- यूएपीए: सुप्रीम कोर्ट ने असम के एमएलए अखिल गोगोई के डिस्चार्ज को रद्द करने के गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि की, जमानत दी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ‘गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम’, 1967 (यूएपीए) के तहत अपराधों के संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता से नेता बने अखिल गोगोई को डिस्चार्ज करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करने के गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले के “सभी पहलुओं में” पुष्टि की। जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने हालांकि मुकदमे के लंबित रहने के दौरान असम विधानसभा के सदस्य को विशेष अदालत द्वारा लगाए गए नियमों और शर्तों के अधीन जमानत दे दी।

मामले को लड़ने के लिए एनआईए को पर्याप्त समय नहीं देने के लिए ट्रायल कोर्ट की गलती को देखने के बाद हाईकोर्ट ने डिस्चार्ज आवेदन को नए सिरे से विचार के लिए भेज दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में गोगोई की अपील पर पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सीनियर एडवोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी ने अदालत को बताया कि विधायक को कमज़ोर सबूतों के आधार पर वापस जेल भेजना न्याय का ‘उल्लंघन’ होगा।

इसके अलावा, सीनियर एडवोकेट ने यह भी दलील दी कि हाईकोर्ट को आरोप मुक्त करने के आदेश को खारिज करते हुए और इसे निचली अदालत में भेजने के दौरान मामले की मेरिट पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह पहले हाईकोर्ट के आदेश को इस हद तक संशोधित करें कि उसने गोगोई की जमानत की सहायक प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया और उन्हें गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की। अहमदी ने असम विधानसभा सदस्य के बचाव में कहा कि यह स्पष्ट रूप से राजनीतिक प्रतिशोध का मामला है।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी की ओर से पेश हुई एडिशनल सॉलिसिटर-जनरल ऐश्वर्या भाटी ने इन दलीलों का जोरदार विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिवादी अभियुक्तों के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को कम करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि माओवादी संगठन एक हजार नहीं, सौ घाव देकर देश का खून बहा रहे हैं। वे सरकार के खिलाफ जंग छेड़ रहे हैं, खासतौर पर सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ, जो हमारी रक्षक हैं। इन संगठनों से कानून के शासन को ही खतरा है।

गोगोई असम के सिबसागर का प्रतिनिधित्व करने वाले निर्दल विधायक और ‘क्षेत्रीय प्रगतिशील पार्टी’ रायजोर दल के अध्यक्ष हैं। उनको दिसंबर 2019 में गिरफ्तार किया गया था, जब ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ के खिलाफ विरोध अपने चरम पर था। उन पर भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 120 बी, 124 ए, 153 ए, और 153 बी के तहत मामला दर्ज किया गया था। यूएपीए के विभिन्न प्रावधान भी मामले में शामिल किए गए। इसके बाद जेल में रहते हुए भी उन्होंने 2021 में विधानसभा चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी की सुरभि राजकोनवारी को हराकर जीत हासिल की।

बाद में सीएए विरोधी आंदोलन में उनकी कथित भूमिका के लिए हिरासत में डेढ़ साल बिताने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया, जब विशेष एनआईए अदालत ने उन्हें और तीन अन्य व्यक्तियों को रिकॉर्ड पर सामग्री की अनुपलब्धता के आधार पर डिस्चार्ज कर दिया, जिसके आधार पर आरोप तय किए जा सकते थे।

हालांकि, इससे पहले फरवरी में हाईकोर्ट ने विशेष अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसे संघीय एजेंसी ने चुनौती दी थी। जस्टिस सुमन श्याम और जस्टिस मलासारी नंदी की खंडपीठ ने सभी चार आरोपियों के खिलाफ नए सिरे से चार्ज-सुनवाई के लिए मामले को वापस अदालत में भेज दिया।

3- प्रो.जी.एन. साईंबाबा के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा: सभी मुद्दों पर नए सिरे से फैसला करने के लिए हाईकोर्ट भेजा जाए

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को उस मामले में सुनवाई हुई, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के एक आदेश को महाराष्ट्र राज्य ने चुनौती दी, जिसमें हाईकोर्ट ने डीयू के प्रोफेसर जी.एन. साईंबाबा और पांच अन्य को आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत दोषी ठहराए जाने और आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ अपील की अनुमति दी थी।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष महाराष्ट्र राज्य द्वारा दायर एक याचिका में मंगलवार को एक सुझाव दिया गया। साईंबाबा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आर. बसंत ने प्रस्ताव दिया कि क्या मामले को सभी संबंधित मुद्दों पर नए सिरे से सुनवाई के लिए हाईकोर्ट में भेजा जा सकता है। यह सुझाव सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले अवसर पर की गई टिप्पणियों के आधार पर दिया गया जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट ने मामले के गुण-दोषों पर विचार नहीं किया और अनियमित मंजूरी के आधार पर अभियुक्तों को आरोपमुक्त कर दिया। हालांकि, बसंत ने आरोपी व्यक्तियों के साथ उनके द्वारा प्रस्तावित प्रक्रिया पर चर्चा करने और निर्देश लेने के लिए एक दिन का समय मांगा।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने एडवोकेट बसंत के अनुरोध पर मामले की सुनवाई 19 अप्रैल, 2023 (बुधवार) तक के लिए टाल दी।

एडवोकेट बसंत ने अनुरोध किया कि “क्या वर्तमान विशेष अनुमति याचिका को लंबित रखा जा सकता है, और मामले को हाईकोर्ट में वापस भेजा जा सकता है? पिछली बार जब मामला सामने आया था तो  लॉर्डशिप ने कहा था कि हाईकोर्ट को योग्यता पर भी विचार करना चाहिए था। मैं एक अनुरोध कर रहा हूं, हाईकोर्ट से फैसला करने के लिए कहिए”।

जस्टिस शाह ने कहा कि एकमात्र कठिनाई यह है कि मंजूरी के सवाल को खुला रखा जाए या नहीं। बसंत ने निवेदन किया कि इसे खुला रखा जाना चाहिए। राज्य की ओर से उपस्थित एएसजी श्री राजू ने कहा कि यदि सुझाव स्वीकार किया जाता है तो हाईकोर्ट के आक्षेपित आदेश को रद्द किया जाना चाहिए। जस्टिस शाह ने माना कि हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करना आवश्यक होगा क्योंकि मुक्ति स्वीकृति के आधार पर थी और सभी मुद्दों को हाईकोर्ट द्वारा नए सिरे से विचार करने के लिए खुला रखा जाएगा।

(जे. पी. सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles