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रामदेव को फिर सुप्रीम फटकार, मेडिकल अराजकता पर SC का सख्त रुख 

मेडिकल अराजकता पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए जहां बाबा रामदेव को आज फिर फटकार लगायी वहीं सुनवाई के दौरान गुमराह करने वाले हेल्थ के दावों से संबंधित मुद्दों पर भी ध्यान दिया और कहा कि हम इस व्यापक मुद्दे को देखेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफएमसीजी कंपनियां कई गुमराह करने वाले हेल्थ संबंधित दावे करती है हम उसे देखेंगे। कोर्ट ने उपभोक्ता मामले और सूचना और प्रसारण मंत्रालय को भी पक्षकार बनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण भी मांगा है। केंद्र के आयुष मंत्रालय ने लेटर जारी कर राज्यों से कहा है कि वह आयुष उत्पाद के खिलाफ ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स 1945 के नियम 170 के तहत एक्शन ना लें। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने को याचिकाकर्ता इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को एलोपैथिक डॉक्टरों द्वारा अनैतिक प्रथाओं की शिकायतों के संबंध में भी चेतावनी दी।

भ्रामक विज्ञापन मामले में पतंजलि की ओर से अखबार में विज्ञापन देकर बिना शर्त माफी मांगने की बात कही गई, तब सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद से सवाल पूछा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या आपने न्यूजपेपर में जो विज्ञापन देकर माफी मांगी है वह उसी साइज का विज्ञापन है जैसा विज्ञापन आपने पहले दिया था? सुप्रीम कोर्ट ने बहरहाल पतंजलि आयुर्वेद और योगगुरु रामदेव के वकील से कहा है कि कोर्ट के सामने विज्ञापन संबंधित रेकॉर्ड दो दिनों में पेश करें। कोर्ट ने कहा कि हम विज्ञापन का साइज देखना चाहते हैं। अगर आप माफी मांगते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह हम माइक्रोस्कोप से देखें।

रामदेव से ये भी सवाल किया कि आखिर सुप्रीम कोर्ट में मामले पर सुनवाई से ठीक पहले ही सार्वजनिक माफीनामे को क्यों जारी किया गया

पतंजलि आयुर्वेद ने 67 अखबारों में माफीनामे को जारी किया है। इसमें कहा गया कि भ्रामक विज्ञापन देने जैसी गलती भविष्य में दोबारा नहीं की जाएगी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया गया कि वह अदालत और संविधान की गरिमा को बनाए रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर कायम है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट में केस की सुनवाई टल गई है। अदालत अब बाबा रामदेव और बालकृष्ण के मामले की सुनवाई 30 अप्रैल को करेगी। बाकी के सभी सात बिंदुओं पर 7 मई को सुनवाई होगी।

पतंजलि ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि सार्वजनिक माफीनामा छपवाने में 10 लाख रुपये का खर्च आया है। जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने पूछा कि एक हफ्ते बाद सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से ठीक पहले माफीनामा क्यों जारी किया गया। जस्टिस कोहली ने पूछा, “क्या माफीनामे का साइज उतना ही बड़ा है, जितना आपका विज्ञापन था?”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अन्य एफएमसीजी भी भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित कर रहे हैं और जनता को धोखा दे रहे हैं। जस्टिस कोहली ने कहा, “विज्ञापन खासतौर पर शिशुओं, स्कूल जाने वाले बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, जो उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।” अदालत ने आगे कहा कि ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जांच करने के लिए मामले में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को शामिल करना जरूरी है।

बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद की तरफ से ये माफीनामा ऐसे समय पर आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों को लेकर रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को फटकार लगाई थी। इसमें कहा गया, “पतंजलि आयुर्वेद माननीय सुप्रीम कोर्ट की गरिमा का पूरा सम्मान करता है। हमारे अधिवक्ताओं के जरिए शीर्ष अदालत में बयान देने के बाद भी विज्ञापन प्रकाशित करने और प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने की गलती के लिए हम ईमानदारी से माफी मांगते हैं।”

माफीनामे में आगे कहा गया, “हम इस बात की प्रतिबद्धता जताते हैं कि भविष्य में ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी। हम आपको आश्वस्त करते हैं कि हम संविधान और माननीय सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे।”

रामदेव के वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत से कहा कि  हमने माफ़ीनामा दायर किया है। इस पर जस्टिस हिमा कोहली ने पूछा कि इसे कल क्यों दायर किया गया। हम अब बंडलों को नहीं देख सकते, इसे हमें पहले ही दिया जाना चाहिए था। वहीं जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा कि यह कहां प्रकाशित हुआ है। जिसका जवाब देते हुए मुकुल रोहतगी ने बताया कि 67 अख़बारों में दिया गया है। जिस पर जस्टिस कोहली ने पूछा कि क्या यह आपके पिछले विज्ञापनों के समान आकार का था। जिस पर रामदेव के वकील ने कहा कि नहीं, इस पर 10 लाख रुपए खर्च किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें एक आवेदन मिला है जिसमें पतंजलि के खिलाफ ऐसी याचिका दायर करने के लिए आईएमए पर 1000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की मांग की गई है।

रामदेव के वकील रोहतगी ने कहा कि मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है। अदालत ने कहा कि मुझे इस आवेदक की बात सुनने दें और फिर उस पर जुर्माना लगाएंगे। हमें शक  है कि क्या यह एक प्रॉक्सी याचिका है।

अदालत ने भ्रामक सूचनाओं पर कार्रवाई करने के लिए नियमों में संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय को आड़े हाथों लिया। वहीं जस्टिस कोहली ने (यूनियन से) कहा कि अब आप नियम 170 को वापस लेना चाहते हैं। अगर आपने ऐसा निर्णय लिया है, तो आपके साथ क्या हुआ? आप सिर्फ उस अधिनियम के तहत कार्य करना क्यों चुनते हैं जिसे उत्तरदाताओं ने ‘पुरातन’ कहा है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस अमानुल्ला ने सवाल उठाया कि एक चैनल पतंजलि के ताजा मामले की खबर दिखा रहा था और उस पर पतंजलि का विज्ञापन चल रहा था।अदालत ने कहा कि आईएमए ने कहा कि वो इस मामले में कंज्यूमर एक्ट को भी याचिका में शामिल कर सकते हैं। ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय का क्या? हमने देखा है की पतंजलि मामले में टीवी पर दिखाया जा रहा है कि कोर्ट क्या कह रहा है, ठीक उसी समय एक हिस्से में पतंजलि का विज्ञापन चल रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि आपको यह बताना होगा कि विज्ञापन परिषद ने ऐसे विज्ञापनों का मुकाबला करने के लिए क्या किया। इसके सदस्यों ने भी ऐसे उत्पादों का समर्थन किया। आपके सदस्य दवाएं लिख रहे हैं। अदालत ने कहा कि हम केवल इन लोगों को नहीं देख रहे हैं। जिस तरह की कवरेज हमारे पास है वो देखी, अब हम हम बच्चों, शिशुओं, महिलाओं समेत सभी को देख रहे हैं। किसी को भी राइड के लिए नहीं ले जाया जा सकता है। केंद्र  को इस पर जागना चाहिए। अदालत ने कहा कि  मामला केवल पतंजलि तक ही नहीं है, बल्कि दूसरी कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर भी है।

सुप्रीम कोर्ट  ने सरकार से पूछा कि आयुष मंत्रालय, केंद्र स्वास्थ्य मंत्रालय ने नियम 170 को वापस लेने का फैसला क्यों किया (राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण की मंजूरी के बिना आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापन पर रोक लगाता है।) क्या आपके पास यह कहने की शक्ति है कि मौजूदा नियम का पालन न करें। क्या यह एक मनमाना रंग-बिरंगा अभ्यास नहीं है। क्या आप प्रकाशित होने वाली चीज़ से ज़्यादा राजस्व के बारे में चिंतित नहीं हैं।

पतंजलि के उत्पादों और उनके चिकित्सकीय प्रभावों के विज्ञापनों से संबंधित अवमानना कार्यवाही के मामले में मंगलवार को योग गुरु रामदेव और कंपनी के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण से व्यक्तिगत रूप से अपने समक्ष पेश होने को कहा था। न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कंपनी और बालकृष्ण को पहले जारी किए गए अदालत के नोटिसों का जवाब दाखिल नहीं करने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। उन्हें नोटिस जारी कर पूछा गया था कि अदालत को दिए गए वचन का प्रथम दृष्टया उल्लंघन करने के लिए उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जाए।

जस्टिस कोहली ने सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया से कहा,”जबकि याचिकाकर्ता प्रतिवादी पर उंगलियां उठा रहा है, अन्य चार उंगलियां आप पर भी उठ रही हैं, क्योंकि आपके एसोसिएशन के सदस्य अपने मरीजों को दवाओं का समर्थन करने में व्यस्त हैं… विचार के लिए जो बिना किसी विचार के नहीं हैं।” सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया आइएमए की ओर से पैरवी कर रहे हैं।

जस्टिस कोहली ने पटवालिया से पूछा कि कितनी बार शिकायतें संज्ञान में लाई गईं और आइएमए ऐसे सदस्य-डॉक्टरों के संबंध में क्या कर रहा है। जवाब में सीनियर वकील ने जवाब दिया कि आइएमए “बोर्ड भर में सफाई” कर रहा है और आरोपों पर गौर करेगा।

यह पूछते हुए कि न्यायालय को आइएमए को भी जांच के दायरे में क्यों नहीं लाना चाहिए, जस्टिस कोहली ने कहा,” यह एक सवाल है, जो हमें आपसे भी पूछने की जरूरत है। यह सब सिर्फ एफएमसीजी होने से नहीं होगा, आप भी हैं और आपके सदस्य जो सिफ़ारिशों के आधार पर दवाइयां लिख रहे हैं, जिस पर बहुमूल्य विचार किया जा रहा है – जैसा कि हम समझते हैं…यदि ऐसा हो रहा है तो हमें आपको आड़े हाथों क्यों नहीं लेना चाहिए?”

यह भी स्पष्ट किया गया कि न्यायालय केवल पतंजलि के उल्लंघनों को ही नहीं देख रहा था,”दूसरे पक्ष में अन्य लोग भी हैं, जो शायद हमारे सामने नहीं हैं लेकिन उस तरह के कवरेज से गुज़रने के बाद जो हाल ही में हमारे संज्ञान में लाया गया, उन चीज़ों के विज्ञापनों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना जो शिशुओं के लिए, बच्चों के लिए भोजन हैं (जो अब हम समझते हैं कि यूनियन द्वारा जांच के अधीन हैं), यूनियन को हमें इसके बारे में कुछ बताना होगा”।

आदेश में पीठ ने कहा कि हमारी राय है कि याचिकाकर्ता (आइएमए) को भी अपना घर व्यवस्थित करने की जरूरत है। ऐसी कई शिकायतें हैं, जो याचिकाकर्ता-एसोसिएशन के सदस्यों के कथित अनैतिक कृत्यों के संबंध में की गईं, जो उपचार के मामले में लाइन में मरीजों को दवाएं लिखते हैं। जहां भी मूल्यवान विचार के लिए अत्यधिक महंगी दवाओं और/या बाहरी दवाओं की सिफारिश करने में उनके पद का दुरुपयोग होता है। विशेष रूप से, न्यायालय ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य किया, जब यह बताया गया कि सभी एलोपैथिक डॉक्टर उसके साथ पंजीकृत हैं। इस तरह वह समाधान सुझाने/डेटा देने के लिए बेहतर स्थिति में होगा।

सूप्रीम कोर्ट ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ (आईएमए) की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें रामदेव पर कोविड रोधी टीकाकरण अभियान और आधुनिक दवाओं के खिलाफ मुहिम चलाने और मॉडर्न मेडिसिन और कोविड-19 वैक्सीन के खिलाफ दुष्प्रचार किया का आरोप लगाया गया है।

(जनचौक की रिपोर्ट)

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