Wednesday, April 24, 2024

गुजरात की जेलों से कुंदन बन कर निकलेंगे तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आला नेता नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले कांग्रेस की अगुवाई के यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (यूपीए) की मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में भारत सरकार के पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को गुजरात के आतंकी निरोधक दस्ता (एटीएस) की टीम शनिवार के दिन 25 जून, 2022 को अपनी हिरासत में लेकर अहमदाबाद ले गई। गुजरात एटीएस ने उन्हें मुंबई में अरब सागर तटवर्ती उनके पुश्तैनी बंगला निरंतर पर लगभग घसीट कर अपनी हिरासत में लिया। इस कार्रवाई के लिए जान बूझ कर शनिवार का दिन चुना गया ताकि उनकी तरफ से तत्काल अदालती राहत हासिल करने का कोई मौका नहीं मिल सके। इसकी पूरी संभावना है कि गुजरात एटीएस उन्हें सोमवार को अहमदाबाद की कोर्ट में पेश कर कम से कम दस दिन के लिए अपनी कस्टडी में रखने की अर्जी पर अनुमति ले लेगी।

तीस्ता के वकील भी उसी कोर्ट में जमानत याचिका दाखिल करने की तैयारी में लगे हुए हैं। तीस्ता के वकील इस मामले में नई दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया की भी शरण ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच द्वारा गुजरात दंगे की एक पीड़िता जाकिया जाफरी की उस याचिका को खारिज करने के बाद यह घटनाक्रम शुरू हुआ जिसमें इन दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने के गुजरात हाई कोर्ट के आदेश की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी।

इस याचिका पर शुक्रवार को सुनाए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने तीस्ता के खिलाफ कुछ प्रतिकूल टिप्पणी की थी। इसी टिप्पणी का सहारा लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मोदी सरकार परस्त न्यूज एजेंसी, एएनआई के साथ इंटरव्यू में गुजरात एटीएस की कार्रवाई को उचित बताया है।

ये वही तीस्ता सेतलवाड़ हैं जिनके पितामह एमसी सीतलवाड़ स्वतंत्र भारत के पहले अटॉर्नी जनरल थे और जिनके परपितामह चिमणलाल हरिलाल सीतलवाड़ ने जालियावाला बाग में 400 हिंदुस्तानियों को मार देने वाले अंग्रेज जनरल डायर के खिलाफ ब्रिटिश अदालत में मुकदमा लड़ा और डायर का कोर्ट मार्शल कराया था।  

ये वही तीस्ता हैं जो दंगों में मारे गए सैकड़ों लोगों के लिए न्याय की लड़ाई लड़तीं रहीं और उनमें से अनेक की शिक्षा दीक्षा का भी भार उठाती रही हैं। उन्होंने अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंश के बाद  1993 में मुम्बई बम ब्लास्ट में मारे गए लोगों के परिवार के लिए भी अदालती लड़ाई लड़ सरकार से मदद दिलाई। उनके पिता बैरिस्टर थे और जनहित के मुद्दों पर अदालती लड़ाई लड़ते रहे।

आर बी श्रीकुमार

इसी बीच, गुजरात पुलिस के क्राइम ब्रांच ने केरल मूल निवासी और भारतीय पुलिस सेवा यानि आईपीएस के 1971 बैच के अधिकारी आर बी श्रीकुमार को जालसाजी के आरोप में अपनी हिरासत में ले लिया जो उपरोक्त दंगों और अन्य मामलों में भी गुजरात में मोदीराज के ख़िलाफ़ बहादुरी से लड़े थे। गुजरात दंगों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद गुजरात पुलिस के 75 वर्षीय पूर्व महानिदेशक आरबी श्रीकुमार को जालसाजी और आपराधिक साजिश रचने के आरोप में गांधीनगर स्थित उनके आवास से गिरफ्तार कर लिया। वह पुलिस सेवा से 2007 में रिटायर हुए थे। श्रीकुमार को भारत सरकार ने 1990 में सराहनीय सेवा पदक और 1998 में विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया था।

इंदौर के सोशल मीडिया एक्टिविस्ट गिरीश मालवीय के फौरी शोध के मुताबिक श्रीकुमार ने नानावती-शाह आयोग के सामने मोदी जी के खिलाफ गवाही दी थी। वह कुख्यात गोधरा कांड के दौरान गुजरात में सशस्त्र इकाई के अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) थे और 2002 के दंगों के बाद डीजीपी (इंटेलिजेंस) बनाए गए थे। उन्होंने बतौर डीजीपी इंटेलिजेंस रिपोर्ट दी थी कि उन दंगों के बाद मोदी जी के बयान पहले से ही तनावपूर्ण सांप्रदायिक माहौल में आग लगाने का काम करेंगे।

श्रीकुमार ने गुजरात दंगों की जांच करने वाले जस्टिस जीटी नानावती और जस्टिस अक्षय मेहता कमीशन के सम्मुख दाखिल चार एफिडेविट में सरकारी एजेंसी और दंगाइयों के बीच मिलीभगत का आरोप लगाया था। इस गवाही के कारण उन्हें गुजरात सरकार ने पुलिस महानिदेशक पद पर नियुक्ति से वंचित कर दिया। उनके पितामह क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार-लेखक , बलरामपुरम जी रमन पिल्लई थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में लड़े नवशक्ति नाम से अखबार निकाला था।

श्रीकुमार की गुजरात बिहाइंड द कर्टेन शीर्षक अंग्रेजी किताब में गुजरात में 2002 में साम्प्रदायिक हिंसा के हालात और जुड़ी कई बातों का विस्तार से जिक्र है। इस किताब में यह भी लिखा है कि 2002 के गुजरात दंगों में कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की मौत के बाद उनकी पत्‍नी जकिया जाफरी से कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी मिलना चाहती थीं। लेकिन उनकी पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं ने उन्‍हें ऐसा करने से रोक दिया।

संजीव भट्ट

गुजरात में मोदी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में उनकी कारगुजारियों का पर्दाफाश करने वाले राज्य काडर के आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ट्रायल कोर्ट के आदेश पर तीन साल से जेल में बंद हैं। उनके खिलाफ उस व्यक्ति का कस्टोडियल टॉर्चर करने का आरोप है जो खुद पुलिस के अनुसार उनसे कभी नहीं मिले और वह पुलिस कस्टडी में नहीं मरा। संजीव भट्ट की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट में दो बरस से लंबित है। उस पर सुनवाई के लिए अभी तक बेंच तय नहीं की गई है।

बहरहाल, भारत में आठ बरस पुरानी मोदी सरकार के शासन में तमाम तरह के दमन और जनविरोधी कामों और कॉर्पोरेट परस्त कदमों के बीच अदालतों में न्याय के स्वांग की परत दर परत खुलती जा रही है। देखना यह है कि अब अवाम क्या करती है। 

(सीपी नाम से चर्चित पत्रकार,यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया के मुम्बई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से दिसंबर 2017 में रिटायर होने के बाद बिहार के अपने गांव में खेतीबाड़ी करने और स्कूल चलाने के अलावा स्वतंत्र पत्रकारिता और पुस्तक लेखन करते हैं।)

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