अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर अकसर उदारवादी लोग अमेरिका तथा पश्चिमी दुनिया की प्रशंसा करते रहे हैं, कि वहाँ पर सरकार की नीतियों के खिलाफ़ देसी- विदेशी छात्रों को प्रदर्शन की छूट रहती है। वियतनाम से लेकर खाड़ी युद्ध तक में अमेरिकी बर्बरता के खिलाफ़ वहाँ पर छात्रों के व्यापक प्रदर्शन होते रहे हैं, लेकिन अब लगता है कि भारत की तरह वहाँ भी ये बातें अतीत की बातें होकर रह जाएँगी।
अमेरिका तथा पूरे यूरोप में चुनाव के जरिए दक्षिणपंथी शासक सत्ता में आ रहे हैं, जो जनवाद का रहा-सहा झीना पर्दा भी उतारकर फेंक रहे हैं। इसका ताज़ा उदाहरण अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय ने बीते साल कैंपस में फ़लस्तीन के समर्थन में हुए प्रदर्शनों में भाग लेने वाले छात्रों के खिलाफ़ कार्रवाई शुरू की है, इसके बाद भारतीय छात्रा रंजनी श्रीनिवासन ने अमेरिका छोड़ दिया है।
कैंपस में बीते साल हैमिल्टन हॉल पर कब्ज़ा करने के अभियान में शामिल रहे कुछ छात्रों को विश्वविद्यालय ने या तो निलंबित कर दिया है या उन्हें निकाल दिया है। ट्रंप प्रशासन ने कोलंबिया विश्वविद्यालय की 40 करोड़ डॉलर की फ़ंडिंग ये कहते हुए रोक दी है, कि वो कैंपस में यहूदी विरोधी भावना से लड़ने में नाकाम रहा है।
विश्वविद्यालय प्रशासन की ये कार्रवाई तब शुरू हुई है, जब कोलंबिया विश्वविद्यालय के कैंपस के कार्यकर्ता महमूद ख़लील को गिरफ़्तार किया गया है। ख़लील को हाल ही में संघीय अप्रवासन प्राधिकरणों ने हिरासत में लिया था। गुरुवार को विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक बयान जारी कर कहा था। कि यूनिवर्सिटी के ज्यूडिशियल बोर्ड (यूजेबी) ने छात्रों के खिलाफ़ प्रतिबंध लगाए हैं। इनमें ‘कई सालों तक निलंबन से लेकर अस्थाई तौर पर डिग्री रद्द करना और निष्कासन’ शामिल है।
विश्वविद्यालय की ओर से भेजा गया ई-मेल इशारा करता है, कि विश्वविद्यालय ने दर्जनों छात्रों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाए हैं। विश्वविद्यालय के बयान में कहा गया है, “निलंबित छात्रों की वापसी के मुद्दे को कोलंबिया विश्वविद्यालय के लाइफ़ ऑफ़िस को देखना होगा। कोलंबिया विश्वविद्यालय नियमों और नीतियों और हमारी अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है।” भारतीय नागरिक रंजनी श्रीनिवासन कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्बन प्लानिंग में पीएचडी कर रही थीं।
कैंपस में फ़लस्तीन के समर्थन में हुए प्रदर्शनों और हमास का समर्थन करने को लेकर कथित तौर पर उनका वीजा रद्द कर दिया गया था। रंजनी के अमेरिका छोड़ देने की पुष्टि डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी ने भी की है। इस डिपार्टमेंट की मंत्री क्रिस्टी नोएम ने इसकी पुष्टि की है। क्रिस्टी नोएम ने रंजनी के सूटकेस लेकर निकलते हुए एक वीडियो क्लिप को एक्स पर पोस्ट किया है।
उन्होंने लिखा, “संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने और पढ़ाई करने के लिए वीजा देना एक ख़ास अधिकार की बात है। जब आप हिंसा और आतंकवाद की वकालत करते हैं, तो उस विशेषाधिकार को रद्द कर दिया जाना चाहिए और आपको इस देश में नहीं रहना चाहिए। मुझे कोलंबिया विश्वविद्यालय के आतंकवाद समर्थकों में से एक को स्व-निर्वासन के लिए सीबीपी होम ऐप का उपयोग करते हुए देखकर खुशी हुई।”
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ गृह मंत्रालय ने सुरक्षा कारणों से रंजनी का वीजा 5 मार्च को रद्द कर दिया गया था, जिसके बाद 11 मार्च को उन्होंने सीबीपी होम ऐप का इस्तेमाल करते हुए स्व-निर्वासन ले लिया। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्बन प्लानिंग में रंजनी श्रीनिवासन पीएचडी कर रही हैं। फ़ुलब्राइट स्कॉलरशिप हासिल करने वाली रंजनी ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से ही अर्बन प्लानिंग में एमफ़िल किया है। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से डिज़ाइन में मास्टर्स किया है, इसके अलावा उन्होंने अहमदाबाद की सीईपीटी यूनिवर्सिटी से डिज़ाइन में बैचलर डिग्री हासिल की है।
रंजनी के वीज़ा को रद्द करने के पीछे हमास का समर्थन करने के अलावा और क्या ख़ास कारण थे? इसके बारे में अमेरिकी सरकार ने और अधिक जानकारी नहीं दी है। ग़ाज़ा में इसराइल की कार्रवाई के खिलाफ़ बीते साल अप्रैल में विश्वविद्यालय के छात्रों ने हैमिल्टन हॉल को अपने कब्ज़े में ले लिया था और उन्होंने कैंपस में तंबू बना लिए थे। छात्रों ने इमारत में ख़ुद को बंद कर रखा था। कोलंबिया विश्वविद्यालय अधिकारियों के निवेदन के बाद पुलिस ने दर्जनों लोगों को गिरफ़्तार किया था, हालाँकि इनमें से किसी के खिलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया था।
विश्वविद्यालय प्रशासन की हालिया कार्रवाई ख़लील के हिरासत में लिए जाने के बाद सामने आई है। सीरिया में पैदा हुए ख़लील कोलंबिया से ग्रैजुएट हैं, उन्हें बुधवार को लुसियाना में कोर्ट में सुनवाई के बाद हिरासत में ले लिया गया था। ख़लील के मामले ने कॉलेज कैंपस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अमेरिका के स्थायी नागरिकों के निर्वासन की अनुमति देने वाली क़ानूनी प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े किए हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ख़लील समेत फिलिस्तीन समर्थक कार्यकर्ताओं पर लगातार आरोप लगाते रहे हैं, कि वो हमास का समर्थन करते हैं, उन प्रदर्शनकारियों को देश से निकाला जाना चाहिए।
ट्रंप चेतावनी दे चुके हैं कि वो उन स्कूलों और विश्वविद्यालयों की फ़ंडिंग छीन लेंगे, जो ‘अवैध प्रदर्शनों’ की अनुमति देगा। अमेरिका में शिक्षण संस्थाओं को; विशेष रूप से विश्वविद्यालयों को काफी स्वायत्तता रही है, यही कारण है कि वहाँ पर विश्वविद्यालय राजनीतिक आंदोलनों के केन्द्र हमेशा से रहे हैं, परन्तु ट्रंप की फंड रोक देने का मामला यह बताता है, कि अमेरिका के विश्वविद्यालयों में भी फासीवाद का ख़तरा बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है।
(स्वदेश कुमार सिन्हा लेखक-टिप्पणीकार हैं)
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