Saturday, April 27, 2024

सोनभद्र: आदिवासी युवक की मौत पर एफआईआर की मांग करने वाले परिजनों को ही पुलिस ने भेजा जेल

लखनऊ। दुद्धी में पकरी गांव के रहने वाले आदिवासी राम सुंदर गोंड की 23 मई को मिली लाश के मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने के लिए आज पूर्व आईजी और ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एसआर दारापुरी ने यूपी के डीजीपी को ईमेल के जरिये एक पत्र भेजा। ईमेल में घटना से जुड़े तमाम दस्तावेज भी संलग्नक के तौर पर भेजे गए हैं। पत्रक में दारापुरी ने डीजीपी से एसपी सोनभद्र को तत्काल एफआईआर दर्ज कराने और मृतक के परिजनों समेत ग्रामीणों के उत्पीड़न पर रोक लगाने के लिए आवश्यक निर्देश देने की मांग की है।

पत्रक में पूर्व आईजी दारापुरी ने इस मामले में अभी तक एफआईआर दर्ज न करने और मृतक के परिजनों समेत गांव के प्रधान को जेल भेजने की पुलिसिया कार्रवाई पर गहरी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि इसके लिए दोषी अधिकारियों को दंडित किया जाना चाहिए। पत्रक में कहा गया है कि मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट संदिग्ध है। इसमें दम घुटने और डूबने से मौत दिखाई गई है लेकिन पूरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहीं भी दम घुटने के कारणों का जिक्र तक नहीं है।

उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि कोई व्यक्ति पानी में डूबा और उसके कारण उसकी मृत्यु हुई तो साफ है कि उसके फेफड़ों में पानी होगा और उसके उदर में मिट्टी या बालू होगा। यहीं नहीं पानी में डूबने के लक्षण भी पोस्टमार्टम में उल्लिखित नहीं है। आश्चर्य इस बात का है कि मृतक का घर नदी के ठीक पास है और कनहर नदी एक पहाड़ी नदी है जिसमें बरसात के दिनों को छोड़कर एक या दो फिट तक ही पानी रहता है। मृतक अपने जन्म से ही उस नदी के किनारे रहता रहा है लेकिन वह नहीं डूबा।

उन्होंने तथ्यों को डीजीपी के संज्ञान में लाते हुए पत्रक में लिखा कि राम सुदंर गोंड़ की मृत्यु के सम्बंध में दुद्धी थाने में दर्ज सामान्य दैनिकी विवरण और पंचनामा भी संदिग्ध है। इस पंचनामा में पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के पहले ही मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारी द्वारा डूबने से मौत का निष्कर्ष निकाल लिया गया। यही नहीं तारीख में भी बदलाव किया गया है। उन्होंने कहा कि समाचार पत्रों में राम सुंदर के दो पुत्रों लाल बहादुर और विद्या सागर, भाई राम जीत और मौजूदा प्रधान मंजय यादव का प्रकाशित बयान बार-बार कह रहा है कि उन्होंने हत्या का मुकदमा दर्ज करने के लिए तहरीर दी थी लेकिन पुलिस ने लेने से इंकार कर दिया। 

इन लोगों ने अपने बयानों में मृतक के दांत टूटने, चोट के निशान और घावों का भी जिक्र किया है। यहीं नहीं सीआरपीसी के अनुसार किसी भी संदेहास्पद मृत्यु की दशा में विधिक रूप से एफआईआर दर्ज करना और विवेचना करना अनिवार्य है। सीआरपीसी की धारा 154 ये स्पष्ट कहती है कि संज्ञेय अपराध से सम्बंधित प्रत्येक सूचना यदि एक पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी को मौखिक दी गयी है तो उसके द्वारा या उसके निर्देशानुसार लेख बद्ध कर ली जायेगी और सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर कराकर उसे दी जायेगी। बावजूद इसके आज तक एफआईआर दर्ज न करना एक पुलिस अधिकारी के बतौर अपने कर्तव्य को पूरा नहीं करना है।

उन्होंने पत्रक में कहा कि मृतक राम सुंदर की हत्या मामले की महज अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की छोटी और न्यायोचित मांग पर गांव के निर्वाचित प्रधान समेत मृतक के परिवारजनों के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज कर दिया गया है। एफआईआर में महिलाओं और बच्चियों तक के नाम को शामिल कर लिया गया है। इतना ही नहीं 12 साल के नाबालिग बच्चे तक को नहीं बख्शा गया। इस तरह से तीन नाबालिगों के नाम भी एफआईआर में दर्ज हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि यह पूरी कार्रवाई खनन माफियाओं के इशारे पर पुलिस द्वारा अंजाम दी गयी है। तथ्यों और घटनाक्रम से स्पष्ट है कि रामसुंदर की हत्या हुई है लिहाजा उन्होंने डीजीपी से इसकी तत्काल जांच कराने का आदेश देने की मांग की है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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