Tuesday, April 23, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

जनता के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों को कैद कर रही है सरकार

नई दिल्ली। किसी के पीछे जब एनआईए और अन्य केंद्रीय एजेंसियां पड़ती हैं तो परिवार, सगे-संबंधी औऱ रिश्तेदार सब साथ छोड़ देते हैं। फरवरी में तीन साल हो जायेगा, जब मेरे पति को गिरफ्तार कर यूएपीए के तहत जेल में डाल दिया गया। तब से हम अक्सर किसी न किसी धरना-प्रदर्शन और सेमिनार में जाते हैं लेकिन आज तक कुछ नहीं बदला है। ‘किस-किस को कैद करोगे’-नामक यह जो पोस्टर लगा है, पहले इसमें कम लोग थे। हर बार इसमें जुड़ने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। संभव है कि आज यहां जो लोग बैठे हैं उनमें से किसी को किसी दिन गिरफ्तार करके आतंकियों से संबंध रखने वाला देशद्रोही बता दिया जाए। फिर उनके परिवार वाले उसे बेगुनाह साबित करने के लिए अदालत में तारीख दर तारीख भटकते रहें। यह कहते हुए नरगिस सैफी की आंखों में आंसू छलक पड़ते हैं। वह राज्य दमन अभियान के बैनर तले 12 जनवरी, 2023 को नई दिल्ली स्थित एचकेएस सुरजीत भवन में “साजिश के मामलों की साजिश” के संबंध में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस सह सभा को संबोधित कर रही थीं।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहाकि ऐसा क्यों है कि हर बार मुसलमानों को ही अपनी देशभक्ति साबित करने को कहा जाता है। अभी 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने ‘हर घर तिरंगा’ लगाने का आह्वान किया था। जबकि सच्चाई यह है कि हमारे घर में बहुत पहले से ही ईद, बकरीद की तरह स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। मेरे बच्चे घर में तिरंगा लगाते हैं। मेरे पति को गिरफ्तार कर सरकार मुझे तोड़ना चाहती है, मेरे परिवार को बर्बाद करना चाहती है। लेकिन लोग मेरे साथ हैं, मेरा परिवार सुरक्षित है औऱ मेरा हौसला बरकरार है।

यह कार्यक्रम भीमा कोरेगांव और सीएए-एनआरसी मामले में हाल के घटनाक्रमों पर चर्चा करने के लिए आयोजित किया गया था, जहां शीर्ष खुफिया अधिकारियों ने खुलासा किया है कि एलगार परिषद की घटना और भीमा कोरेगांव हिंसा के बीच कोई संबंध नहीं था,साथ ही कई अंतरराष्ट्रीय फोरेंसिक रिपोर्ट से पता चलता है कि सबूत गलत थे। सम्मेलन ने यूएपीए जैसे कठोर कानून के तहत गिरफ्तार राजनीतिक कैदियों की स्थिति पर भी ध्यान केंद्रित किया और राजनीतिक कैदियों,शिक्षाविदों,साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं के परिवार की भागीदारी भी दिखाई दी। वक्ताओं ने प्रगतिशील व्यक्तियों, लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के खिलाफ मामलों को कैसे गढ़ा है, इस पर प्रकाश डाला गया। भारतीय संसाधनों की कॉरपोरेट लूट,बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन, दलितों–धार्मिक अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और भारत के बहुसंख्यक लोगों के खिलाफ सैन्यीकरण के खिलाफ आवाज उठाई।

इस कार्यक्रम का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सरोज गिरि ने किया, जिन्होंने राजनीतिक कैदियों के परिवारों के दर्द के साथ-साथ इन कैदियों की रिहाई के लिए न केवल कानूनी संघर्ष में शामिल होने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, बल्कि उन कारणों को उजागर करने के लिए चर्चा की शुरुआत की, जो राजनीतिक कैदियों के परिवारों के दर्द को उजागर करते हैं।

प्रो. सरोज गिरि ने भीमा-कोरेगांव षड़यंत्र में जेल में बंद राजनीतिक बंदियों पर बोलते हुए कहा कि अधिकांश कार्यकर्ता संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट के हित में छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र आदि के खनिज समृद्ध क्षेत्रों में आदिवासी लोगों पर क्रूर राज्य दमन के खिलाफ मुखर रहे हैं। और उन्हें इस तरह की लूट और दमन के खिलाफ आवाजों को शांत करने के लिए कैद किया गया है। उन्होंने 11 जनवरी, 2023 को बीजापुर और सुकमा के छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमावर्ती गांवों में हेलीकाप्टरों और ड्रोन का उपयोग करते हुए राज्य बलों द्वारा किए गए हवाई बम विस्फोटों की एक शृंखला के बारे में जानकारी दी। नागरिक क्षेत्रों में ये हवाई बमबारी आंतरिक संघर्ष से संबंधित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय चार्टर्स और सम्मेलनों के खिलाफ की जाती है।

खालिद सैफी की पत्नी नरगिस सैफी ने कहा कि सैफी पर गलत तरीके से ‘दिल्ली दंगे’ 2020 की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। उन्होंने कहा कि जब मुस्लिम महिलाएं रूढ़ियों को तोड़ती हैं और लोगों के संघर्षों में सबसे आगे आती हैं, तो सरकार यह मानकर प्रतिक्रिया देती है कि कोई गुप्त भड़काने वाला होगा जिसने उन्हें संगठित किया होगा। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे वह इस तरह के आयोजनों के दर्शकों में बैठती थीं, लेकिन अब वो उस जगह हैं जहां से सभी राजनीतिक बंदियों की आवाजों को बचाने की लड़ाई लड़नी है। क्योंकि खालिद सैफी जैसी सभी लोकतांत्रिक ताकतों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है।

इसके बाद गलत तरीके से कैद दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू की पत्नी जेनी रोवेना ने कहा कि ओबीसी के अधिकारों के लिए विश्वविद्यालयों में उनकी सक्रियता के कारण हनी पर बिना किसी सबूत के एल्गार परिषद नामक संगठन का हिस्सा होने का गलत आरोप लगाया गया था। उन्होंने बताया कि कैसे एलगार परिषद ने फासीवाद के खिलाफ संघर्ष में दलित, बहुजन, मुस्लिम और आदिवासियों को एकजुट करने की जरूरत बताया था, लेकिन बिना किसी सबूत के एलगार परिषद पर माओवादियों द्वारा वित्तपोषित एक षड्यंत्रकारी संगठन होने का आरोप लगाया गया।

सरोज गिरि ने जेसुइट्स के फादर स्टेन स्वामी लिगेसी कमेटी के प्रवक्ता फादर जोसेफ जेवियर का एक पत्र पढ़ा। इसमें कहा गया है कि शस्त्रागार रिपोर्ट में साझा किए गए खुलासे,जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि फादर स्टेन स्वामी के लैपटॉप और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर आपत्तिजनक जानकारी प्लांट की गई थी। भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी स्टेन स्वामी और अन्य लोगों के बारे में भी इस पत्र में प्रकाश डाला गया है कि कैसे हजारों आदिवासी यूएपीए के तहत जेल में हैं और इस तरह की क़ैद का कारण अडानी, अंबानी, ज़िंदल और टाटा आदि जैसे बड़े कॉर्पोरेट्स के लालच से उपजा है,जो भारत की प्राकृतिक संपदा को लूट रहे हैं जिन्हें राज्य द्वारा सरंक्षण प्राप्त है। उन्होंने कहा कि क्रोनी पूंजीपतियों के खिलाफ किसी भी संघर्ष और पेसा अधिनियम के विस्तार की लोकतांत्रिक मांग को क्रूर राज्य दमन से कैसे कुचला जाता है।

इसके बाद डीयू के प्रोफेसर जी.एन. साईंबाबा की साथी वसंता ने कहाकि अक्टूबर 2022 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कैसे साईंबाबा को बरी कर दिया था? लेकिन बिना किसी ज़मानत के जेल में बंद रहना जारी है क्योंकि हाई कोर्ट के फैसले को तुरंत सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 90 प्रतिशत विकलांग साईंबाबा की सेहत लगातार और भी बिगड़ रही है इसपर भी वसंता ने बात रखी।

अंत में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने कहा कि हमारे कुछ साथी जेलों में कैद हैं, जो हमारे हिस्से की लड़ाई बी लड़ रहे हैं। लेकिन हम सब अपने-अपने दायरों में कैद हैं। देश के अलग-अलग इलाकों में जनता के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कैद हैं। इस समय जिन्होंने भी सच बोलने का जोखिम उठाया वे जेलों में हैं। आश्चर्य की बात यह है कि जेल किसके लिए बनी थी और कैद कौन है?

उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस देश में आंदोलन कर रहे लोगों को एक-एक करके उठा लिया जा रहा है और सब चुपचाप देख रहे हैं। क्या हम सब अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं? उन्होंने भारत के सभी उत्पीड़ित और शोषित लोगों के बीच एकता की बात पर जोर देते हुए एकजुट होकर संघर्ष करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले सलाखों के पीछे हैं जबकि अधिकारों का उल्लंघन करने वाले सत्ता में हैं।

सम्मेलन के समापन पर,सभी उपस्थित लोगों ने भीमा कोरेगांव और सीएए-एनआरसी मामलों के तहत गलत तरीके से कैद सभी राजनीतिक कैदियों की तत्काल रिहाई और सभी लोकतांत्रिक,प्रगतिशील कार्यकर्ताओं पर फासीवादी दमन को रोकने की मांग की।

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