Sunday, April 28, 2024

अधीर रंजन चौधरी को हराने की जिद के पीछे की राजनीति

पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से एक बहरमपुर की सीट सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसकी वजह यह है कि यहां के मौजूदा सांसद अधीर रंजन चौधरी है जो लोकसभा में विपक्ष के नेता भी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी के साथ उनका 36 का आंकड़ा है। यह सभी को मालूम है। इस बार चुनाव में उन्हें हराने के लिए ममता बनर्जी ने क्रिकेटर यूसुफ पठान को गुजरात से आयात करने के बाद चुनावी मैदान में उतारा है।

यूसुफ पठान पहली बार बहरमपुर आए हैं। बांग्ला भाषा बोल नहीं सकते है। सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी ही जानते हैं। इस लोकसभा सीट के 99 फ़ीसदी से अधिक मतदाताओं की भाषा बांग्ला है। उनका दावा है कि गुजरात तो उनकी मातृभूमि है पर पश्चिम बंगाल तो कर्म भूमि है, लेकिन कब से यह नहीं बता पाते हैं। आयातित उम्मीदवार होने के बचाव में कहते हैं कि नरेंद्र मोदी भी गुजरात के हैं पर वाराणसी से चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में तो यह सवाल उठता है कि ममता बनर्जी ने उन्हें क्यों उम्मीदवार बनाया है। इसकी वजह यह है कि बहरमपुर लोकसभा सीट के मतदाताओं की संख्या 16 लाख से अधिक है और उनमें से मुस्लिम मतदाता 8 लाख से अधिक है। इसी वजह से यूसुफ पठान को उम्मीदवार बनाया है।

अब आगे बढ़ने से पहले एक नजर पिछले चुनाव के आंकड़ों पर डालते हैं। अधीर रंजन चौधरी 1999 से लगातार इस सीट से चुनाव जीतते रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में अधीर रंजन चौधरी को 50 फीसदी से अधिक वोट मिले थे जबकि तृणमूल कांग्रेस के इंद्रनील सेन 18 फ़ीसदी पर ही सिमट गए थे। 2019 में अधीर रंजन चौधरी को 46 फीसदी वोट मिले थे तो तृणमूल कांग्रेस के अपूर्व सरकार को 40 फ़ीसदी वोट मिले थे। यानी 2014 में 31 फ़ीसदी का अंतर था तो यह 2019 में घटकर गया था 6 फ़ीसदी रह गया था। शायद इसी ने यूसुफ पठान को लाने के लिए ममता बनर्जी को प्रोत्साहित किया है।

मुर्शिदाबाद जिले में बहरमपुर के अलावा मुर्शिदाबाद और जंगीपुर सीट भी है। कांग्रेस और माकपा के गठबंधन के कारण यह दोनों सीट माकपा के खाते में गई हैं। मुर्शिदाबाद से माकपा की राज्य कमेटी के सचिव मोहम्मद सलीम उम्मीदवार हैं तो जंगीपुर से मुर्तुजा हुसैन उम्मीदवार है। अगर मुस्लिम मतदाताओं और मुस्लिम उम्मीदवार के बीच की कड़ी को जोड़ना ही अहम सवाल है तो दो दिग्गज मुस्लिम उम्मीदवारों के होने के बावजूद मुस्लिम मतदाता यूसुफ पठान से भला क्यों जुड़ेंगे। यह क्रिकेट का पिच तो है नहीं जो छक्का मारा और तालियां बटोर ली। फिर भी यूसुफ पठान कहते हैं की ममता दीदी और अभिषेक बनर्जी ने उन्हें एक विशेष जिम्मेदारी सौंपी है। अब देखना है की जिम्मेदारी की तराजू पर वे कितना खरा साबित होते हैं।

ऐसे में एक और सवाल उठता है क्या पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के पास मुस्लिम नेताओं का संकट है या उन नेताओं का ग्लैमर चुक गया है। इसलिए यूसुफ पठान को आयात करने की मजबूरी आ पड़ी है। इसकी एक दूसरी वजह है। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाता 28 फ़ीसदी के करीब हैं। विधानसभा की करीब सौ सीट ऐसी हैं जिनके परिणाम को वे प्रभावित कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा बेहद आक्रामक भूमिका निभा रही है। कोशिश है कि  किसी भी हालत में वोटो का ध्रुवीकरण कर दिया जाए।

मुस्लिम मतदाताओं पर 2011 से ही तृणमूल कांग्रेस का भारी प्रभाव रहा है, पर इस लोकसभा चुनाव में यह दरकने लगा है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस और वाममोर्चा के नेता लगातार यह प्रचार करते रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस का भाजपा के साथ एक अंदरखाना समझौता हो गया है। इंडिया गठबंधन से अपने आप को अलग करके ममता बनर्जी ने इस प्रचार को थोड़ा बल ही दिया है। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल के एक मजहबी घराने से जुड़े नौशाद सिद्दीकी और उनकी पार्टी लगातार प्रचार करती रही है कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच एक समझौता हो गया है। तो क्या इस अभियान को भोथरा करने के लिए ही यूसुफ पठान को गुजरात से आयात करके उनके ग्लैमर का सहारा लेना पड़ रहा है।

(कोलकाता से जेके सिंह की रिपोर्ट।)

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