Saturday, April 27, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: 27 वर्ष पहले से बनी सड़क झाड़ियों में हुई गुम, ग्रामीण ढूंढ रहे रास्ता

बलिया। ‘यही कोई 27-28 बरस पहले यह सड़क (नहर की पटरी के बगल से गुजरे मार्ग की ओर इशारा करते हुए) बनी है। इसके बाद तो हमनी के नहीं देखली कि सड़क बन रहील बा..।” यह कहते हुए 58 वर्षीय दीनदयाल कुछ देर के लिए रुकते हैं, मानों दिमाग पर जोर देते हुए कुछ याद करने की कोशिश कर रहे हों।

फिर थमते हुए कहते हैं, “नहर की पटरी से लगने वाले मार्ग पर सड़क (पिच) न होने से झाड़-झंखाड़ उग आए हैं। ऐसे में इधर से लोगों का आना जाना भी बाधित हो गया है। आवागमन थमा तो जंगली झाड़ियों ने विस्तार कर इसे पूरी तरह से अपने आगोश में ले लिया है।”

उनकी बातों का समर्थन करते हुए युवक नंदकिशोर भी नहर पटरी की बदहाली और सड़क न होने का दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि “तकरीबन 27 साल हो गए हैं, सड़क न तो बनी है ना दिखलाई देती है और ना ही हमने इतने सालों में कभी सड़क बनते हुए देखा है।”

वह कहते हैं कि “नहर के दोनों ओर उग आए बड़े बड़े झाड़-झंखाड़, ऊपर से जहरीले जीव जंतुओं का भय के चलते लोग इधर से आने जाने का साहस नहीं करते हैं।”

बदहाली, पिछड़ेपन की यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के सुखपुरा इलाके की है। जो तकरीबन तीन दशक से यथावत चली आ रही है। जिसकी ओर झांकने की फुर्सत न तो जनप्रतिनिधियों को है और ना ही संबंधित विभाग के पास है। मज़े की बात है कि सुखपुरा जिला मुख्यालय से तकरीबन 12 किमी दूरी पर स्थित है, बावजूद इसके किसी की नजरें इस ओर इनायत नहीं हो रही हैं।  

लगता है सरकार के मानचित्र से बाहर हो गया इलाका

सरकार नहरों की मरम्मत के साथ-साथ उसकी दोनों पटरियों पर यातायात के लिए सड़क बनाने पर जोर दे रही है। लेकिन सुखपुरा से सावन सिकड़िया, अपायल गांव तक जाने वाली महज पांच किलोमीटर की नहर की पटरी उपेक्षा का दंश झेलते हुए वीरान बनी हुई है। मानो वह इलाके के मानचित्र से बाहर हो चली है। जबकि इस नहर की पटरी वाली सड़क से कई गांवों के लोगों का आवागमन होता रहा है।

यूं कहें कि नहर की यह पटरी लोगों की जीवन रेखा रही है। दिन हो या रात इससे लोगों का आवागमन होता रहा है, लेकिन ईंट का खड़ंजा जो तकरीबन तीन दशक पहले बिछाया गया था (जिसके अंश कहीं कहीं दिखाई दे जाते हैं) उखड़ने के साथ ही अपना वजूद खो चुका है। सड़क का वजूद गुम हुआ तो धीरे-धीरे जंगली झाड़ियों ने जगह बनानी शुरू की, फिर तो झाड़ियां ऐसी उगीं की पूरी नहर की पटरी ही इनके आगोश में गुम हो गई।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार शहर से लेकर गांव तक सड़कों का जाल बिछाने का दावा करती है। लेकिन जमीनी हकीकत परखी जाए तो आज भी कई ऐसे गांव और मज़रे हैं जो सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

स्थानीय ग्रामीणों की माने तो नहर विभाग सहित ग्राम पंचायत और जिला पंचायत जिनके अधिकार क्षेत्र में यह आता है उनके द्वारा भी इसकी उपेक्षा होती आई है। पूर्व के लोकसभा चुनाव में इसका मुद्दा उठाया गया था, तो जांच कराए जाने और जनसुविधा को देखते हुए पिच सड़क का निर्माण कराने की बात कही गई थी, लेकिन चुनाव बीतते ही इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

ग्रामीण भी किसी पचड़े में न फंसने की बात कहते हुए टका सा जवाब देकर चलते बनते हैं कि ‘जिसकी जिम्मेदारी बनती है वह कुछ नहीं करते तो हम क्यों बोले?

घूमकर आते-जाते हैं ग्रामीण

नहर की पटरी पर सड़क निर्माण न होने से ग्रामीणों को आवागमन में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। गांव में आने जाने के लिए लोगों को घूम कर आना-जाना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क न होने से किसी आपातकालीन स्थिति- जैसे कोई बीमार हो गया, या कोई महिला प्रसव पीड़ा से पीड़ित है- तो स्थिति और भी जटिल हो जाती है।

नंदकिशोर की माने तो उनकी उम्र लगभग 27 वर्ष हो गई है, लेकिन कभी इस नहर की पटरी पर सड़क का निर्माण नहीं कराया गया है। जब से उन्होंने होश संभाला है नहर पर न तो आवागमन होते हुए देखा है और ना ही झाड़ियों की सफाई होते देखा।

वह चुटीले शब्दों में कहते हैं कि “हो सकता है हमारे जन्म से पहले बनी हो? लेकिन अभी तक कोई निर्माण नहीं कराया गया है। यह सड़क पूरी तरह से झाड़ झंखाड़ से घिरी होने के चलते एक किलो मीटर तक यह पूरी तरह से बंद है। इस पर आदमी पैदल तक नहीं जा सकतें हैं, बाइक से तो चलना दूर है।”

ग्रामीणों की माने तो उन्हें अपने घर जाने के लिए गांव से घूमकर जाना पड़ता है, सड़क की स्थिति काफी खराब है आने जाने लायक नहीं है, ऐसे में लोग घूमकर आवागमन करने को विवश हैं।

ग्रामीणों को इंतजार है एक ऐसे जीतन मांझी की जो ग्रामीणों की पीड़ा और पुकार को सुन समझ कर उनके आवागमन रूपी समस्या का समाधान कर इस पहाड़ से निजात दिला सके।

(संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

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