झारखंड आजकल कई राजनीतिक संकट के बीच कुर्मी/कुड़मी और आदिवासी समुदाय के बीच एक नए अंतर्विरोध को लेकर चर्चे में है। जहां एक तरफ कुर्मी/कुड़मी समुदाय खुद को एसटी बताते हुए सरकार से एसटी में शामिल करने को लेकर आन्दोलनरत है, वहीं राज्य का आदिवासी समुदाय इनका पुरजोर विरोध कर रहा है। यह अलग बात है कि कुछ आदिवासी व कुर्मी/कुड़मी नेता इस मामले पर चुप्पी मारे हुए हैं।
बताते चलें कि झारखंड सहित पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में रहने वाले कुर्मी/कुड़मी जाति के लोग इन दिनों आंदोलनरत हैं। जबकि सबसे अधिक चर्चा झारखंड में चल रहे आंदोलन की हो रही है। आंदोलनकारियों की मांग है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किया जाय।
वर्तमान में इन तीनों राज्यों में यह जाति पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल है और लंबे समय से इनकी यह मांग लंबित है। वहीं दूसरी ओर आदिवासी समुदायों के लोगों का कहना है कि कुर्मी/कुड़मी जाति के लोगों की यह मांग अनुचित है, क्योंकि उनकी परंपराएं और रहन-सहन, धर्म संबंधी मान्यताएं आदिवासियों के समान नहीं हैं।

जबकि कुर्मी/कुड़मी जाति के लोगों ने तीनों राज्यों में आंदोलन को लेकर एक संयुक्त संगठन “आदिवासी कुड़मी संगठन” का निर्माण किया है। इस संगठन के एक सदस्य शैलेंद्र महतो के अनुसार कुड़मी जाति 1950 से पहले एसटी की श्रेणी में शामिल थी। बाद में इस जाति को अलग कर ओबीसी में शामिल कर दिया गया।
कुड़मी जाति के लोगों का यह आंदोलन गत 14 सितंबर, 2022 के बाद से तेज हुआ है। अतः जब से इनका आन्दोलन तेज हुआ है तभी से आदिवासी समाज भी इसके विरोध में मुखर होता गया है। इसी विरोध के आलोक में 30 अक्टूबर आदिवासी अधिकार रक्षा मंच के तत्वावधान में सरना भवन, नगड़ाटोली, रांची में “आदिवासी समुदाय के ऊपर चौतरफा और आदिवासी राजनेताओं – संगठनों की भूमिका” विषय पर एक विचार – गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस विचार-गोष्ठी में विषय प्रवेश कराते हुए आदिवासी अधिकार रक्षा मंच के समन्वयक लक्ष्मीनारायण मुंडा ने कहा कि आज आदिवासियों के खिलाफ चौतरफा हमला जारी है। आदिवासी इलाके की जंगल ,जमीन की लूट कारपोरेट औद्योगिक पूंजीपति घरानों के हितों में सरकारी संरक्षण में लूटा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आदिवासियों की जमीन बिल्डर-माफिया, अपराधी गिरोह, सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों, पुलिस-प्रशासन और कोर्ट-कचहरी में उलझाकर लूटा जा रहा है।

लक्ष्मीनारायण मुंडा ने कहा कि आज आदिवासी समुदाय का इतिहास, भाषा-संस्कृति, पहचान सब ख़तरे में है। आज आदिवासी समुदाय के बलिदान, त्याग और संघर्षों के गौरवशाली इतिहास को कुर्मी/कुड़मी जाति समुदाय के लोगों द्वारा मिटाने की कोशिश हो रही है। कुर्मी/कुड़मी जाति समुदाय के लोग आदिवासी बनने को आतुर हैं। इसके लिए कई राज्यों में आंदोलन चलाया जा रहा है। उनकी नजर आदिवासियों की जमीन, नौकरी, राजनीतिक हिस्सेदारी व राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर कब्जा करने की है। वहीं आदिवासियों की भाषा-संस्कृति पर कुर्मी/कुड़मी जाति समुदाय की भाषा- संस्कृति पहचान को हमारे ऊपर डोमिनेट करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। इसके लिए फर्जी इतिहास लिखा जा रहा है, फिल्म बनाया जा रहा है। स्कूलों- कॉलेज, मैदानों और चौक-चौराहों का नामकरण छद्म शहीदों के नाम पर किया जा रहा है। आज आदिवासियों के नाम पर बने इस झारखंड राज्य को कुर्मी/कुड़मी जाति समुदाय के वर्चस्व वाले राज्य में बदलने की साज़िश हो रही है।

मुंडा ने कहा कि जिन सपनों, उम्मीदों, आकांक्षाओं को लेकर इस राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी। आज सारे सपने चकनाचूर हो गए हैं। अतः सभी आदिवासी राजनेताओं/बुद्धिजीवियों और संगठनों को इस पर विचार करना होगा।
इस विचार – गोष्ठी को एम.एल उरांव, अजित उरांव, निरंजना हेरेंज टोप्पो, दामोदर सिंकू, डब्ल्यू मुंडा, संजय कुजूर, दिनेश मुंडा, आनंद मुंडा, गोपाल सिंह सरदार, मनोरंजन सिंह मुंडा, मार्टिना समद, चंद्रदेव बालमुचु, शिवरतन मुंडा, संजय कुजूर, किशोर लोहरा, मनोज मुंडा, रीतकिशोर बेदिया, हरेकृष्ण सरदार, तरुण कुमार मुंडा, झरिया उरांव, अनिला गाड़ी, पंचम लोहरा आदि ने भी संबोधित किया।
इस विचार-गोष्ठी में निम्नलिखित पांच प्रस्ताव पारित किये गये।
जिसमें – 1. कुर्मी/कुड़मी जाति समुदाय द्वारा आदिवासी (ST) बनाने की मांग के विरोध में सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रमुखों के नाम और आदिवासी विधायक/सांसदों / राज्यपाल /राष्ट्रपति/भारत सरकार को पत्र लिखा जाएगा।

2. आदिवासियों के संघर्षशील विद्रोह के इतिहास से छेड़छाड़ करके छद्म नायकों/शहीदों के नाम फर्जी कहानी बनाकर आदिवासी विद्रोहों में शामिल करने का कुत्सित प्रयास करने वाले लेखकों/राजनीतिज्ञों/ संगठन के लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए मांग पत्र राज्य सरकार/भारत सरकार को दिया जाएगा।
3. आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा के लिए CNT & SPT act कानून रहने के बावजूद जमीन माफिया, सरकारी अधिकारी-कर्मचारी, पुलिस-प्रशासन के गठजोड़ से लूटा-हड़पा जा रहा है। इस पर राज्य सरकार रोक लगाए तथा इसमें शामिल अधिकारियों-कर्मचारियों और पुलिस-प्रशासन के खिलाफ कारवाई के लिए राज्य सरकार नियम बनाये।
वहीं दूसरी तरफ पूर्व सांसद व आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू के आह्वान पर 30 अक्टूबर को कुर्मी/कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति ST में शामिल करने का समर्थन करने वाली राजनीतिक पार्टियां जैसे जेएमएम, बीजेडी, टीएमसी और कांग्रेस का आदिवासी सेंगेल अभियान के नेताओं द्वारा पूर्वी सिंहभूम जिला के जमशेदपुर स्थित करनड़ी चौक पर पुतला दहन किया गया। पार्टियों के साथ-साथ तमाम आदिवासी एमएलए/ एमपी और आदिवासी संगठनों का भी पुतला दहन किया गया, जो समर्थन में हैं या चुप हैं। इस अवसर पर कहा गया कि कुर्मी महतो के आदिवासी (ST) बन जाने से असली आदिवासियों का अधिकार नेस्तनाबूत होना निश्चित है।
इस अवसर पर पूर्व सांसद सालखन मुर्मू सहित सुमित्रा मुर्मू, बिरसा मुर्मू, बिमो मुर्मू , सोनाराम सोरेन, जूनियर मुर्मू, सीताराम मांझी, डॉक्टर सोमाय सोरेन, तिलका मुर्मू, सिदो मुर्मू, मंगल अलड्डा, जोगेन हेम्ब्रम, किशुन हंसदा, तुलसी हंसदा, छिता मुर्मू, सीतामनी हांसदा, भगीरथ मुर्मू, टार्जन मारडी मगत मारडी, कमल किरन टुडू, सनत बास्के, अनिल मुर्मू , जमुना बास्के आदि पुतला दहन में शामिल थे।
बताते चलें कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने हिमाचल प्रदेश की हट्टी, तमिलनाडु की नारिकोरवन व कुरीविक्करन, छत्तीसगढ़ की बिझिंया, उत्तर प्रदेश की गोंड और कर्नाटक की बेट्टा-करुबा जाति को एसटी में शामिल करने संबंधी फैसले को सहमति दी है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 में झारखंड सरकार और वर्ष 2007 में पश्चिम बंगाल सरकार ने कुर्मी जाति को एसटी में शामिल करने संबंधी एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)