ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल: भारतीय न्याय संहिता पर पहला बड़ा प्रहार 

नई दिल्ली। हिट एंड रन मामले में सख्त कानून के खिलाफ जारी ट्रक ड्राइवरों की देशव्यापी हड़ताल खत्म हो गई है। गृह मंत्रालय के आश्वासन के बाद ट्रांसपोर्टरों ने इसे खत्म करने का फैसला किया। सरकार ने कहा है कि फिलहाल इस कानून को लागू नहीं किया जाएगा। हड़ताल के खत्म हो जाने से लोगों और सरकार दोनों को बड़ी राहत मिली है, क्योंकि कई राज्यों में सप्लाई चेन बुरी तरह बाधित हो गई थी।

दरअसल इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) अर्थात भारतीय दंड संहिता को मोदी सरकार अंग्रेजों के द्वारा प्रतिपादित कानून बताकर नाम बदलकर जिस भारतीय न्याय संहिता का कल तक ढिंढोरा पीट रही थी, उसे देश के सबसे उपेक्षित तबके की ओर से सबसे जोरदार विरोध का सामना करना पड़ा।

संसद के भीतर मोदी सरकार ने शीतकालीन संसद सत्र के दौरान विपक्ष के 146 सांसदों को निष्कासित कर कई विवादास्पद विधेयकों को आनन-फानन में पारित करा दिया था। विपक्ष की गैर-मौजूदगी में नए कानून पारित कराकर संसद सत्र को निर्धारित समय से एक दिन पहले ही समाप्त करते हुए सरकार के द्वारा स्वयं की पीठ ठोंकी जा रही थी।

उन तमाम विधेयकों में से एक न्याय व्यवस्था को लेकर देश के 80 लाख ट्रक ड्राइवर आंदोलित हो गए। नतीजा यह रहा कि दो दिन की ही हड़ताल में देश में सप्लाई-चैन चरमरा गई। देश के तमाम शहरों में पेट्रोल पंपों पर लोगों की भारी भीड़ और कतार की तस्वीरें वायरल होती रहीं।

हड़ताल की वजह से आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दामों में भी तेजी से बढ़ोत्तरी देखने को मिली। सब्जियों के दाम 10-20% बढ़ गए। केंद्र सरकार पिछले कुछ महीनों से महंगाई को नियंत्रण में रखने को लेकर बेहद चौकन्ना बनी हुई थी। लेकिन अचानक से महंगाई इस रास्ते से भी अनियंत्रित हो सकती है, इसके बारे में उसने कल्पना तक नहीं की होगी।

देश के विभिन्न समाचार-पत्रों में इस आंदोलन की झलकियां कुछ इस प्रकार हैं

मध्य प्रदेश के कई शहरों में चक्काजाम की घटनाएं देखने को मिलीं। भिंड, मुरैना, इंदौर सहित भोपाल में धरना प्रदर्शन और चक्काजाम की खबरें आईं। भोपाल में भी पेट्रोल भराने के लिए बड़ी संख्या में लोग पेट्रोल पंपों में कतार में खड़े दिखे। जबलपुर, मंदसौर बस स्टैंड में भी जाम की स्थिति बनी रही। उज्जैन महाकाल के दर्शनार्थी भी परेशान दिखे। इंदौर में पेट्रोल डीजल की आपूर्ति सामान्य होने के बावजूद कई स्कूल बसें न चलने के कारण स्कूली शिक्षा पर असर पड़ा।

मुंबई में भी विरोध प्रदर्शन का असर दिखा। मुंबई, पालघर और ठाणे सहित प्रदेश भर में हड़ताल का असर दिखा। हड़ताल के कारण उपभाक्ताओं को एलपीजी की आपूर्ति भी बाधित रही। हड़ताल में हिस्सा ले रहे एलपीजी लॉरी वाहन ड्राइवरों के द्वारा प्लांट पर रिपोर्टिंग न करने से वितरण प्रकिया बाधित रही।

जम्मू कश्मीर में भी चक्काजाम की स्थिति बनी रही। जम्मू कश्मीर आयल एंड टैंक एसोसिएशन के नेतृत्व में ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल और प्रदर्शन की तस्वीरें वायरल हो रही थीं। गुजरात के खेड़ा, वलसाड, गिर-सोमनाथ, भरूच और मेहसाणा जिलों के हाईवे पर वाहनों को खड़ा कर जाम के दृश्य आम थे। इसकी वजह से मेहसाणा-अम्बाजी हाईवे और खेड़ा के पास अहमदाबाद-इंदौर के रास्ते पर यातायात बाधित रहा।

इन राजमार्गों पर जगह-जगह टायर जलाने की घटनाओं की वजह से अहमदाबाद-वडोदरा राजमार्ग में कनेरा गांव के पास 10 किलोमीटर लंबा जाम लगा हुआ था और लोगों को अपने-अपने गंतव्य तक पहुंचने में काफी देरी हुई।

राजस्थान में भी प्रदर्शनकारियों की ओर से प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में धरना-प्रदर्शन और चक्काजाम की खबरें देखी गईं। धोलपुर-करौली रूट, उदयपुर-नाथद्वारा, सवाई माधोपुर-कोटा लालसोट मार्ग, भीलवाड़ा-अजमेर एवं अनूपगढ़-गंगानगर सहित सभी प्रमुख राजमार्गों पर ट्रैफिक जाम की स्थिति देखने को मिली।

राजस्थान राज्य परिवहन निगम के प्रवक्ता आशुतोष अवाना का कहना था, कि “विरोध के कारण कई मार्गों पर जाम की स्थिति बनी रही। राज्य परिवहन की बसों का संचालन भी बाधित हुआ था, लेकिन पुलिस के हस्तक्षेप के बाद इसे फिर से सामान्य स्थिति में ले आया गया है।”

यूपी में लखनऊ की मंडी में माल की आवक 50% तक प्रभावित रही। पेट्रोल पंप पर टंकी फुल कराने के लिए लोगों की लाइन लगी रही। चावल, दाल सहित सब्जी और फलों की आपूर्ति में बाधा के कारण आवश्यक वस्तुओं के दामों में भारी वृद्धि की आशंका जताई जाती रही। गाजियाबाद में भी सार्वजिनक परिवहन ठप हो जाने के कारण रोजाना 6 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है।

लेकिन सबसे बुरा हाल तो पर्वतीय राज्यों में देखने को मिला। हिमाचल प्रदेश में 80% पेट्रोल पंपों में डीजल-पेट्रोल पूरी तरह से खत्म हो गया था। क्रिसमस से नव-वर्ष और बर्फ देखने के लिए उमड़ी पर्यटकों की भीड़ के लिए यह स्थिति कितनी भयावह हो सकती थी, इसके बारे में राज्य प्रशासन बखूबी जानता था। 

छतीसगढ़ और बिहार सहित देश के अन्य राज्यों में भी वाहनों की लंबी कतार देखने की मिलीं। हड़ताल का असर दूध, सब्जी, फलों की आवक पर पड़ा।

आखिर नए कानून से ट्रक ड्राइवर क्यों इतने आक्रोशित हैं?

असल में मौजूदा मोदी सरकार के द्वारा आईपीसी कानूनों के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता कानून के तहत हिट एंड रन के केस में सजा के प्रावधान में व्यापक बदलाव इसकी बड़ी वजह बना। वाहन चालकों को अहसास हो रहा है कि ब्रिटिश जमाने के कानून भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की तुलना में आज का कानून मोटर वाहन चालकों के लिए कहीं अधिक सख्त है।

इस नए कानून के तहत ऐसी किसी दुर्घटना में यदि आरोपी व्यक्ति घटनास्थल से अपनी जान बचाने के मकसद से फरार हो जाता है, तो उसे 10 साल की कैद और 7 लाख रुपये तक का जुर्माना लादकर सरकार उसे लगभग पंगु बना देगी।

ट्रक ड्राइवरों ने हड़ताल के जरिए देश की विपक्षी पार्टियों का भी ध्यान अपनी ओर खींचा है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जिन्होंने अपनी विदेश यात्रा के दौरान एक प्रवासी भारतीय ट्रक ड्राइवर के वाहन पर यात्रा कर वहां के अनुभव को हाल ही में साझा किया था, ने X पर अपनी पोस्ट में कहा है-

“बिना प्रभावित वर्ग से चर्चा और बिना विपक्ष से संवाद के कानून बनाने की ज़िद लोकतंत्र की आत्मा पर निरंतर प्रहार है। जब 150 से अधिक सांसद निलंबित थे, तब संसद में शहंशाह ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़, ड्राइवर्स के विरुद्ध एक ऐसा कानून बनाया जिसके परिणाम घातक हो सकते हैं।

सीमित कमाई वाले इस मेहनती वर्ग को कठोर कानूनी भट्टी में झोंकना उनके जीवनी को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। और साथ ही, इस कानून का दुरुपयोग संगठित भ्रष्टाचार के साथ ‘वसूली तंत्र’ को बढ़ावा दे सकता है। लोकतंत्र को चाबुक से चलाने वाली सरकार ‘शहंशाह के फरमान’ और ‘न्याय’ के बीच का फर्क भूल चुकी है”।

उधर दूसरी तरफ ट्रक ड्राइवरों के विरोध पर केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह ने संवावदाताओं के बीच सरकार का पक्ष रखते हुए कहा, “हिट एंड रन करके पहले ड्राइवर भाग जाता था। एक्सीडेंट की बात नहीं है, यह हिट और रन की बात है। इस कानून में क्या दिक्कत है? कानून इसलिए बनाया गया है कि वह सजग रहे। अब कल को कहेंगे कि हम तो लोगों को मार कर भी चले जायेंगे। अगर यह बात उन्हें समझ नहीं आ रही है, तो आप उन्हें समझाइये।”

ऐसे में स्पष्ट है कि सरकार को अभी तक 80 लाख ट्रक ड्राइवरों की व्यथा समझ नहीं आ रही है। तमाम ट्रक चालकों का इस नए कानून के खिलाफ सबसे बड़ा विरोध इस बात को लेकर है कि, सामने से आ रहे वाहन अथवा राहगीर की गलती पर भी भीड़ द्वारा उनके खिलाफ जानलेवा हमला एक सामान्य बात है। यदि दुर्घटना के फौरन बाद ड्राइवर गाड़ी छोड़कर नहीं भागता है, तो उसकी जान तक ले ली जाती है।

हिट एंड रन के खिलाफ इतना सख्त कानून बनाने का मतलब ही है कि ट्रक ड्राइवर दुर्घटना के बाद घटनास्थल पर बना रहे। ऐसे में गुस्साई भीड़ अक्सर ट्रक ड्राइवर को ही एक्सीडेंट का जिम्मेदार मानकर कानून को अपने हाथ में ले लेती है। अक्सर ऐसे मामलों में ड्राइवर सहित वाहन को आग के हवाले कर दिया जाता है। घटनास्थल से भागने की स्थिति में 7 वर्ष का कारावास एवं 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का अर्थ है, ड्राइवर सहित उसके समूचे परिवार को सजा देना।

देश में ट्रक ड्राइवरों की तनख्वाह 7,000-15,000 रुपये प्रति माह है। पिछले 10 वर्षों में डीजल-पेट्रोल के दामों में आग लगी हुई है। ट्रक मालिक के पास सेवा दरों को उसी अनुपात में बढ़ाने का विकल्प नहीं है। उसके पास तमाम करों को भरने के साथ-साथ वाहन की किश्त का भुगतान करना होता है। ऐसे में सारा बोझ ट्रक ड्राइवर और क्लीनर को कम दाम पर अपनी श्रम शक्ति बेचकर चुकाने के लिए विवश होना पड़ता है।

12-15 घंटे प्रतिदिन काम करने वाले ये लोग ठीक से भोजन या आराम भी नहीं कर पाते हैं। 15-25 दिनों तक अपने परिवारों से दूर रहकर ये लोग देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक अनाज, सब्जी, फल सहित तमाम आवश्यक वस्तुओं को पहुंचाने के लिए जरूरी सप्लाई चेन का हिस्सा हैं। लेकिन इनके हिस्से में हमेशा उपेक्षा, कम तनख्वाह और दुर्घटना की सूरत में जान जोखिम का खतरा बना रहता है।

अब केंद्र सरकार के द्वारा भारतीय दंड संहिता को भारतीय न्याय संहिता का नाम देकर भले ही व्यापक आबादी को झांसे में डालने में सफलता अर्जित कर ली हो, लेकिन वाहन चालकों के लिए यह किसी बड़े सदमे से कम नहीं है। उनका साफ कहना है कि हत्या के जुर्म वाले तो 3 साल की कैद पाकर छूट जाते हैं, लेकिन देश में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में जुटे ट्रक चालकों को एक गलती की इतनी बड़ी सजा देने का प्रावधान लाकर सरकार ने बता दिया है कि वे असल में हमारे बारे में क्या सोचती है।

कई ट्रक ड्राइवरों ने तो इस धंधे को छोड़ सब्जी या चाय पकौड़ी की दूकान और ठेला लगाकर अपना जीवन यापन करने को श्रेयस्कर मानकर नौकरी छोड़ने तक का फैसला ले लिया है। सोशल मीडिया पर ऐसे कई रील्स तेजी से वायरल भी होने लगे हैं, जो बताते हैं कि उनके बीच में भारतीय न्याय संहिता के प्रति गुस्सा किस सीमा तक पैदा हो चुका है।

अगर ट्रक ड्राइवरों का आंदोलन आगे बढ़ता है तो यह केंद्र की मोदी सरकार के लिए एक आसमानी आफत से कम साबित नहीं होगा। 2024 के आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार पिछले कुछ महीनों से खाद्य वस्तुओं के दामों के प्रति बेहद सावधान नजर आ रही थी। यही वजह है कि गेहूं के बाद चावल के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के बाद जब प्याज और चीनी के दाम अचानक से बढ़ने लगे तो तत्काल सरकार की ओर से इसके निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाने के लिए उपाय अपनाए गये।

लेकिन इस दो दिन की हड़ताल में ही सप्लाई चेन बिगड़ गई। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि यदि अगले दो दिनों तक यही हाल रहा होता तो देश के विभिन्न हिस्सों में आवश्यक खाद्य वस्तुओं, पेट्रोल-डीजल एवं दवाओं के दाम में भारी वृद्धि हो सकती थी। सप्लाई चेन में रुकावट का अर्थ है महंगाई एक बार फिर से दहाई के अंक को छू सकती है, जो केंद्र सरकार के अब तक के किये-कराए पर पानी फेरने के लिए काफी होगी।

नए कानून से तो अभी सिर्फ एक तबके के कारण यह स्थिति पैदा हुई है, जबकि ऐसे कई कानून हैं जिनको लेकर अभी सिर्फ राजनीतिक विश्लेषकों एवं क़ानूनी जानकारों के बीच में ही बहस चल रही है। भारतीय न्याय संहिता को लागू होने में अभी 12 महीने शेष हैं, क्योंकि देश में हजारों थानों में मौजूदा सॉफ्टवेयर में बदलाव के बाद ही इन कानूनों को एक साथ देशभर में लागू किया जा सकता है।

संसद में विपक्ष को निष्काषित कर भाजपा ने मनमर्जी का कानून तो पारित करा लिया, लेकिन कानून लागू हों, उससे पहले ही ट्रक ड्राइवरों और ट्रासपोर्टर के तेवरों ने बता दिया है कि दंड सहिता का नाम बदलकर न्याय सहिता कर ज्यादा कठोर दंड को अमल में लाने की कोशिश क्या गुल खिला सकती है। इस असंगठित हड़ताल ने मोदी सरकार के सामने मनमाने ढंग से देश की संसद को अपने मन-मुताबिक चलाने के रवैये पर भी बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

विपक्षी पार्टियों को जो विरोध करने का जिम्मा था, वह काम समाज का एक हिस्सा स्वतःस्फूर्त ढंग से पूरे देश में कर रहा है। सोचने और पुनर्विचार करने की बारी अब मोदी सरकार की है, क्योंकि 142 करोड़ लोगों को डंडे से हांकने की कोशिश का कड़ा प्रतिकार इस तबके से भी आ सकता है, इस बारे में तो किसी ने भी नहीं सोचा था।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)    

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