मणिपुर में अब केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री तक का घर सुरक्षित नहीं रहा। कल रात 10:30 बजे के आसपास 1,200 लोगों की हिंसक भीड़ ने केंद्रीय राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के घर को जलाकर ख़ाक कर दिया। 44 दिनों से जारी हिंसा की चपेट में अभी तक 120 लोग जान से हाथ धो चुके हैं। बड़ी संख्या में पुलिस एवं सेना के जवान तैनात हैं। कर्फ्यू और इंटरनेट बंदी के बाद भी 35 लाख की आबादी वाले इस राज्य में शांति वापसी की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। यह आबादी किसी भी उत्तर भारतीय राज्य के एक जिले के बराबर है। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच विभाजन की रेखा इतनी गहरी हो चुकी है कि कुकी आबादी अब इंफाल घाटी में प्रवेश की कल्पना नहीं कर सकती है। यही हाल मैतेई समुदाय के हिल एरिया में प्रवेश को लेकर है।
बताया जा रहा है कि कुछ लोगों ने भाजपा सांसद एवं केंद्रीय विदेश मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के इंफाल ईस्ट जिले में स्थित घर को आग के हवाले कर दिया। करीब 1,200 लोगों की भीड़ ने मंत्री के घर पर हमला किया था। हालांकि सुरक्षा के लिए पुलिस का बंदोबस्त था, लेकिन इतनी भारी भीड़ के आगे वे बेबस थे। भीड़ ने घर पर पेट्रोल बम से हमला किया। मंत्री के घर का बड़ा हिस्सा जलकर राख हो गया है। केंद्रीय राज्य मंत्री घटना के समय मणिपुर से बाहर थे।
एएनआई के साथ बातचीत में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री भावुक स्वर में कहते हैं, “मैंने अपने खून-पसीने की मेहनत से घर बनवाया था। लेकिन यदि किसी ने उसे जलाया और तहस-नहस किया है तो यकीनन मैं सकते की स्थिति में हूं। मैंने कभी भी इस तरह के व्यवहार की कल्पना नहीं की थी। पिछली बार भी हमला किया गया था। मुझे जानकारी मिली है कि रात 10:30 पर अचानक से हमला किया गया। फायर ब्रिगेड को पहुंचने नहीं दिया गया। मैं प्रदेश में हालात सामान्य किये जाने के लिए लगातार काम कर रहा हूं। इसके लिए मैं केंद्र में अपने वरिष्ठ नेताओं से लगातार प्रयासरत हूं। लेकिन कल जिस प्रकार से हमले को अंजाम दिया गया, यदि मेरे बच्चे और पत्नी वहां पर मौजूद होते या मैं घर पर होता तो क्या होता। अब मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि मणिपुर में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है।”
इस संबंध में राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने अपने बयान में कहा है, “अभी फिलहाल लोग बड़े पैमाने पर भावनाओं के वशीभूत हैं। कईयों ने अपने प्रियजनों को इस हिंसा में खोया है, तो कई लोगों के घर उनसे छिन गये हैं, इसलिए हम तुरंत यह नहीं कह सकते कि सब कुछ नार्मल हो जायेगा। लेकिन सरकार का प्रयास और लोगों को विश्वास में लेकर हालात को काबू में ले आया जायेगा।”
खबर है कि केंद्रीय मंत्री के आवास पर हमले की घटना कोई पहली बार नहीं की गई है। पिछले माह भी इसकी कोशिश की गई थी, लेकिन उस समय मंत्री घर पर ही थे। उनकी सुरक्षा में तैनात सुरक्षा कर्मियों ने हवा में गोलियां और आंसू गैस छोड़कर हिंसक भीड़ को काबू में कर लिया था। लेकिन इस बार 20 सुरक्षाकर्मियों के सामने 1,200 लोगों की हिंसक भीड़ थे, जिन्होंने पेट्रोल बम फेंककर हमला किया गया।
पिछले 3 सप्ताह के भीतर मणिपुर के विधायकों और मंत्रियों के घरों को निशाना बनाये जाने की यह चौथी घटना है। 28 मई को कांग्रेस विधायक रंजीत सिंह के गांव सेरो पर हमला किया गया था। इसी प्रकार 8 जून को भाजपा विधायक सोराईसाम के घर पर दो बाइक सवार युवकों ने बम से हमला किया था। 14 जून को इंफाल में उद्योग मंत्री नेम्चा किपजेन के सरकारी आवास में हिंसक भीड़ द्वारा आग लगा दी गई थी। किपजेन उस दौरान घर पर नहीं थीं।
44 दिनों से जारी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। कुकी समुदाय का घाटी से संपर्क पूरी तरह से कट चुका है। उनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य को हासिल कर पाना एक बेहद दुष्कर कार्य हो चुका है। पिछले 6 सप्ताह में 253 चर्च जलाकर ख़ाक किये जा चुके हैं। स्कूलों तक को नहीं बक्शा गया है। कुकी समुदाय के मन में यह बात घर कर चुकी है कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ही इस हिंसा के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं, क्योंकि उन्होंने ही वृहत्तर मणिपुर की अपनी योजना के तहत मैतेई समुदाय से दो संगठनों के फलने-फूलने में मदद की है। अरम्बाई टैंगोन खुद को सांस्कृतिक संगठन बताता है, लेकिन इसके द्वारा मैतेई समुदाय के युवाओं को हथियारों की ट्रेनिंग देने से लेकर कुकी समुदाय के गांवों में आधुनिकतम हथियारों के साथ हमले आयोजित किये जाते हैं। मणिपुर पुलिस भी मैतेई समुदाय के साथ खड़ी नजर आती है। कुकी समुदाय के लिए खाने-पीने की वस्तुएं नहीं पहुंच पा रही हैं। नागा ड्राईवर यदि ट्रक से सामान ला रहे हैं तो उन्हें रास्ते में ही रोक दिया जाता है, ताकि कुकी तक सामान न पहुंच पाए। वे एन बीरेन सिंह के नेतृत्व को मानने से साफ़ इंकार करते हैं। मई के अंतिम सप्ताह में गृह मंत्री अमित शाह, कर्नाटक चुनाव के बाद मणिपुर दौरे पर पहुंचे थे। 15 दिन तक युद्ध-विराम की अपील की गई थी, जिसकी मियाद अब खत्म हो चुकी है। इन 15 दिनों में कुकी समुदाय के लोगों के ठिकानों को निशाना बनाया गया।
मणिपुर में हिंसा की आग 3 मई से जो भड़की वह 44 दिनों बाद भी शांत नहीं हुई है। मणिपुर पुलिस के अलावा सेना और असम राइफल्स के जवानों को भी शांति बहाल के लिए तैनात किया गया है। थल सेनाध्यक्ष सहित गृह मंत्री ने भी मणिपुर दौरा कर शांति के लिए पीस कमेटी का औपचारिक गठन किया था, लेकिन दोनों समुदाय के लोगों ने इसका हिस्सा बनने से इंकार कर दिया है।
देश की राजधानी दिल्ली तक पीड़ित समुदाय केंद्र सरकार से गुहार लगा रहे हैं। पिछले सप्ताह जंतर-मंतर पर बड़ी संख्या में कुकी समुदाय की महिलाओं ने प्रदर्शन किया और कैंडल जलाकर हिंसा में मारे गये लोगों को श्रृद्धांजलि अर्पित की। पिछले ही दिन कुकी छात्राओं एवं महिलाओं ने गृहमंत्री अमित शाह के आवास तक मार्च निकालने की कोशिश की, और गृहमंत्री के नाम ज्ञापन दिया।
मणिपुर में जहां पहले मैतेई समुदाय शुरू-शुरू में राज्य सरकार की भूमिका पर खामोश था, अब उसके प्रबुद्ध वर्ग के बीच में ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं कुछ रियायतें हासिल करने के एवज में मणिपुर की हंसती-खेलती जिंदगी तबाह हो गई, जिसका अफ़सोस आज उन्हें भी हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक मणिपुर के हालात पर एक भी शब्द नहीं कहा है। उत्तर-पूर्व के लोग बेहद बैचेन हैं। गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में मणिपुर में हिंसा नहीं रुकी। कानून और व्यवस्था का मामला समझकर निपटने की केंद्र सरकार की रणनीति बुरी तरह से विफल साबित हुई है। इसका असर अब मिज़ोरम, नागालैंड और असम के कुछ हिस्सों में नजर आ रहा है। राहुल गांधी ने कल अपने ट्वीट में लिखा है, “भाजपा की घृणा की राजनीति ने पिछले 40 दिनों में सौ से अधिक लोग मार डाले हैं। पीएम ने भारत को विफल कर दिया है और वे इस बारे में पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं। राज्य में इस हिंसा के कुचक्र को खत्म करने एवं शांति बहाली के लिए एक सर्व-दलीय प्रतिनिधिमंडल को भेजना होगा। आइये इस ‘नफरत के बाज़ार’ को बंद कर मणिपुर के हर दिल के भीतर ‘मोहब्बत की दुकान’ खोलते हैं।”
( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)