न्याय देने में उत्तर प्रदेश सबसे फिसड्डी: इंडिया जस्टिस रिपोर्ट

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देश में लोगों को न्याय देने के मामले में उत्तर प्रदेश पिछले साल की तरह एक बार फिर इस बार भी सबसे निचले पायदान पर यानी कि 18वें स्थान पर है। ये रैंकिंग 18 बड़े और मध्यम श्रेणी के राज्यों के लिए की गई है। उत्तर प्रदेश को 10 में से 3.15 अंक मिले हैं, जबकि महाराष्ट्र 5.77 अंक लाकर नंबर वन रहा है। बंगाल साल 2019 में इस रैंकिंग में 12वें नंबर पर था, लेकिन इस बार उसकी रैंकिंग में 5 अंकों की गिरावट हुई है और वो 17वें स्थान पर आ गया है। इसी तरह मध्य प्रदेश पिछले साल 9वें स्थान पर था, लेकिन इस बार 7 अंक फिसलकर वो 16वें स्थान पर आ गया है।

इस रिपोर्ट की प्रस्तावना में सेवानिवृत्त जस्टिस मदन बी लोकुर ने इन मानकों के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा है कि समावेशी समाज और गतिशील लोकतंत्र के निर्माण की दिशा में न्याय व्यवस्था को कमजोर नागरिकों के अधिकारों के लिए आवाज उठानी चाहिए और इसकी प्रक्रियाएं ऐसी होनी चाहिए कि सभी नागरिक न्याय प्राप्त कर सकें। जेल सुधार पर जोर देते हुए उन्होंने कहा है कि जेलों में कैदियों को केवल बंदी बनाकर रखने की बजाय उन्हें सुधारने के कार्य किए जाने चाहिए और उन्हें कानूनी सहायता और सेवाएं बहुत ही आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए।

जस्टिस लोकुर ने लंबित मुकदमों की संख्या पर चिंता जताई है। जस्टिस लोकुर के मुताबिक, नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के हिसाब से 3.84 करोड़ से ज्यादा मुकदमे जिला अदालतों में लंबित हैं। इसमें सभी हाईकोर्ट में लंबित 47.4 लाख मुकदमे भी जोड़ दें तो यह संख्या 4 करोड़ के पार पहुंच जाती है। उन्होंने इस हालत से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर न्यायिक सुधार की आवश्यकता जताई है।

देश में लोगों को न्याय देने के मामले में महाराष्ट्र सभी राज्यों में अव्वल है। टाटा ट्रस्ट की तरफ से तैयार इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020 के मुताबिक, महाराष्ट्र के बाद इस मामले में तमिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब और केरल का नंबर आता है। एक करोड़ से कम आबादी वाले राज्यों में त्रिपुरा, सिक्किम और गोवा अपने नागरिकों को सबसे ज्यादा न्याय दे रहे हैं।

छोटे राज्यों में ये गौरव त्रिपुरा को हासिल हुआ है। टाटा ट्रस्ट ने राज्यों द्वारा अपने नागरिकों को न्याय देने की क्षमता का आकलन करते हुए इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 जारी की है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 में न्याय प्रक्रिया के चार प्रमुख अंगों पुलिस, अदालत, जेल और कानूनी सहायता के आधार पर राज्यों की रैंकिंग की गई है।

अगर अलग-अलग मानकों को देखा जाय तो कानूनी सहायता मुहैया कराने में महाराष्ट्र नंबर वन है। वहीं तमिलनाडु न्यायपालिका की सुविधा में नंबर वन है। कर्नाटक अपने नागरिकों को पुलिस सेवा दिलाने में नंबर वन है। राजस्थान बेहतर जेल सुविधा के मामले में नंबर वन है। महाराष्ट्र के बाद इस रैंकिंग में तमिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब और केरल क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर आते हैं। इस रैंकिंग में तेलंगाना ने शानदार छलांग लगाई है। तेलंगाना इस रैंकिंग में पिछले साल 11वें नंबर पर था वो इस साल तीसरे नंबर आ गया है।

गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों ने जस्टिस डिलीवरी में औसत रैकिंग हासिल की है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात छठे, छत्तीसगढ़ 7वें, झारखंड 8वें स्थान पर है।झारखंड ने पिछले साल के मुकाबले रैंकिंग में 8 स्थानों की छलांग लगाई है।त्रिपुरा ने शानदार काम किया है। त्रिपुरा, सिक्किम, गोवा, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और मेघालय के बीच रैंकिंग में त्रिपुरा न्याय देने में नंबर वन राज्य है। इस रैंकिंग में त्रिपुरा 2019 में सबसे नीचे 7वें नंबर पर था,जबकि पिछले साल नंबर वन पर रहने वाला गोवा तीसरे स्थान पर चला गया है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले समय में न्याय व्यवस्था की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण रहने वाली है।रिपोर्ट में कहा गया है कि आय में असमानताओं के बढ़ने, दुर्लभ संसाधनों के लिए एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी बनने, सामाजिक सामंजस्य में टूट-फूट होने, नागरिक भागीदारी के लिए आवश्यक अवसर न मिलने, अलग अलग समुदायों और राज्य के बीच अधिकारियों में असंतुलन होने से निष्पक्ष न्याय व्यवस्था की मांग और पैदा होगी।

इसी तरह भारत में हर 10 पुलिसकर्मी में मात्र 1 महिला है, जबकि 9 पुलिसकर्मी पुरुष हैं।2017 में देश में पुलिस की भागीदारी 7 प्रतिशत थी जो कि अब मामूली रूप से बढ़कर 10 फीसदी हो गई है। देश में महिला पुलिस अधिकारियों की बात करें तो 100 में मात्र 7 पुलिस अधिकारी महिला हैं। भारत में हर 10 पुलिसकर्मियों में मात्र 1 महिला है, जबकि 9 पुलिसकर्मी पुरुष हैं। 2017 में देश में पुलिस की भागीदारी 7 प्रतिशत थी जो कि अब मामूली रूप से बढ़कर 10 फीसदी हो गई है।देश में महिला पुलिस अधिकारियों की बात करें तो 100 में मात्र 7 पुलिस अधिकारी महिला हैं।

संसद में महिलाएं तो 33 फीसदी आरक्षण की लड़ाई लड़ ही रही हैं। पुलिस विभाग में भी उनकी मौजूदगी दमदार नहीं है।साल 2009 में केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा था कि वे अपने यहां पुलिसफोर्स में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दें। इसके बाद सभी केंद्र शासित प्रदेशों और 9 राज्यों ने पुलिसफोर्स में महिलाओं को आरक्षण देने का लक्ष्य रखा।

बिहार ने अपने पुलिस फोर्स में 38 फीसदी प्रतिनिधित्व महिलाओं को देने का लक्ष्य रखा है। इसका असर भी देखने को मिल रहा है।बिहार पुलिस की कुल क्षमता का 25.3 प्रतिशत स्टाफ महिलाएं हैं। यानी बिहार में हर 4 पुलिस में 1 पुलिसकर्मी महिला है। हालांकि बिहार में अधिकारियों में महिलाओं की भागीदारी 6.1 प्रतिशत है।

तमिलनाडु में पुलिसकर्मियों की कुल संख्या का 18.5 फीसदी महिलाएं हैं। कुल पुलिस अधिकारियों में लगभग 25 प्रतिशत महिलाएं हैं।यानी कि यहां पर हर चार पुलिस अधिकारी में से 1 महिला है। हिमाचल प्रदेश में भी हर 5  पुलिसकर्मी में 1 महिला है। पश्चिम बंगाल की कुल पुलिस फोर्स में 9.7 प्रतिशत महिलाएं हैं यानी कि यहां भी 10 में से 1 ही पुलिसकर्मी महिला है। बंगाल में 100 पुलिस ऑफिसरों में मात्र 4.6 महिला हैं।

देश की राजधानी दिल्ली में 12.3 फीसदी महिला पुलिसकर्मी हैं।दिल्ली में 100 पुलिस ऑफिसरों में लगभग 11 महिला हैं।उत्तर प्रदेश में पुलिस में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कमजोर है।यहां पर हर 10 पुलिसकर्मी में से लगभग एक पुलिसकर्मी महिला है, जबकि 100 पुलिस अधिकारियों में लगभग 4 अधिकारी महिला हैं।केरल में अच्छी साक्षरता के बावजूद महिला पुलिसकर्मियों का हिस्सा मात्र 7.2 प्रतिशत है।महिला पुलिस अधिकारियों के संबंध में केरल की हालत और भी खराब है। यहां पर 100 पुलिस अधिकारियों में मात्र 2.4 महिला हैं।

झारखंड में 100 में 7.1 पुलिसकर्मी महिलाएं हैं।जबकि अधिकारियों की बात करें तो हर 100 पुलिस अधिकारी में मात्र 3.4 अधिकारी महिलाएं हैं।मध्य प्रदेश और तेलंगाना देश के उन राज्यों में शामिल हैं जहां पुलिस में महिलाओं की भागीदारी सबसे कम है।एमपी में 100 में मात्र 6 पुलिसकर्मी महिलाएं हैं, तेलंगाना में 100 में मात्र 5 पुलिसकर्मी महिलाएं हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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