उत्तराखंडः विधानसभा जा रहे आंदोलनकारियों पर पुलिस ने बरसाईं लाठियां, महिलाओं तक को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा

Estimated read time 1 min read

कल पहली मार्च को उत्तराखंड के नंदप्रयाग-घाट सड़क को डेढ़ लेन किए जाने की मांग पर विधानसभा पर प्रदर्शन कर रहे हजारों महिला-पुरुषों पर दिवालीखाल में पुलिस ने जम कर लाठियां चलायीं। लाठी चलाने के बाद पुलिस प्रचारित कर रही है कि पहले आंदोलनकारियों ने पथराव किया, उसकी वजह से लाठी चलानी पड़ी।

वायरल हो रहे वीडियो में साफ दिख रहा है कि पुलिस और आंदोलनकारी बैरिकेड पर एक-दूसरे को पीछे धकेलने की कोशिश कर रहे हैं और फिर अचानक पुलिस लाठी चला रही है और दौड़ाने में वह महिला-पुरुष का फर्क भी नहीं कर रही है। चमोली पुलिस को घटनाक्रम का असंपादित (unedited) वीडियो जारी करना चाहिए और मीडिया के लिए उसकी स्क्रीनिंग करे। इसमें साफ हो जाएगा कि आंदोलनकारियों ने पथराव किया था या नहीं।

आईपीएस और पीपीएस अफसरों को सरकार की चाकरी की जगह इस देश के और जनता के सेवक के भूमिका में आना चाहिए। वही जनता जिसे सड़क जैसी मामूली मांग के लिए दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया। पुलिस की प्रतिबद्धता किसी सरकार के प्रति नहीं बल्कि भारत के संविधान के प्रति होनी चाहिए, जिसकी शपथ ले कर ये सेवा में शामिल होते हैं।

नंदप्रयाग-घाट सड़क को डेढ़ लेन किए जाने की मांग के लिए तीन महीने से घाट में शांतिपूर्ण आंदोलन चल रहा है। सड़क डेढ़ लेन बनेगी, यह दो मुख्यमंत्रियों की घोषणा है, जिसमें एक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हैं, जिनका स्वयं के बारे में दावा है कि वो कोरी घोषणा नहीं करते, बल्कि पहले वस्तुस्थिति जान कर कोई बात कहते हैं। सोचिए दो मुख्यमंत्री कहें पर सड़क आधा लेन और नहीं बन पा रही है।

तीन महीने से आंदोलन चलाने के बाद घाट के हजारों लोग भराड़ीसैण में विधानसभा पर प्रदर्शन करने आए। जंगलचट्टी में बैरियर लगा कर उन्हें रोकने की कोशिश की गयी, लेकिन पुलिस बल कम था और आंदोलनकारी ज्यादा, इसलिए पानी की बौछार चलाये जाने के बावजूद आंदोलनकारी बैरियर पार करने में कामयाब हो गए। पुलिस द्वारा पानी की बौछार चलाये जाने के बावजूद आंदोलनकारी शांत बने रहे। जब आंदोलनकारियों ने बैरियर हटा दिया तो पुलिस के अफसरों ने प्रस्ताव रखा कि हम आपको पैदल वहां ले चलेंगे। आंदोलनकारियों के बैरिकेड पार करने के बाद इस प्रस्ताव का कोई अर्थ नहीं था।

पुलिस की यह योजना आंदोलनकारियों को थकाने और स्वयं के लिए ज्यादा फोर्स इकट्ठा करने के लिए थी। त्रिवेंद्र रावत के प्रशासन और पुलिस को लगा होगा कि तीन-चार किलोमीटर वह भी चढ़ाई वाले सड़क मार्ग पर लोग पस्त हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सरकार और पुलिस यह भूल गयी कि ये पहाड़ी लोग हैं, जो लंबी-लंबी दूरियां पैदल तय कर लेते हैं।

दिवालिखाल में विधानसभा, भराड़ीसैण को जाने वाले रास्ते पर बैरिकेड लगा था और भारी पुलिस बल तैनात था। पुलिस बैरिकेड बचाना चाहती थी और आंदोलनकारी विधानसभा जाना चाहते थे। काफी ज़ोर आजमाइश के बावजूद जब आंदोलनकारी पीछे नहीं हटे तो कई राउंड पानी की बौछारें चलायी गयीं पर आंदोलनकारी फिर भी डटे रहे।

इसके बाद पुलिस ने लाठी चलाना शुरू कर दिया, जिसके वीडियो मौजूद हैं। लाठी चलाने की घटना के बाद प्रशासन की ओर से आंदोलनकारियों से वार्ता का प्रस्ताव किया गया। पांच लोगों को प्रशासन वार्ता के लिए ले भी गया, लेकिन एसडीएम उनका पास ही बनवाते रहे। प्रशासन का लोगों को वार्ता के लिए ले जाया जाना और लाठी चलाने की घटना के बाद पुलिस की गाड़ी के हूटर से वार्ता के लिए आमंत्रण से सिद्ध है कि सड़क की मांग करने वाले उपद्रवी नहीं आंदोलनकारी थे, जिनके शरीर पर पुलिस की बर्बर लाठियों से चोटें भले ही आईं, लेकिन उनका हौसला तब भी नहीं डिगा। 

(इंद्रेश मैखुरी सीपीआई एमएल के उत्तराखंड में लोकप्रिय नेता हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author