विदेश दौरे पर रवाना हुए पीएम, मणिपुर से आया प्रतिनिधिमंडल मायूस

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नई दिल्ली। पूर्वोत्तर का मणिपुर जल रहा है। सशस्त्र बलों की तैनाती और कर्फ्यू के बावजूद कुकी आदिवासियों पर हमले जारी हैं। मणिपुर से आए 10 दलों का प्रतिनिधिमंडल 10 जून से ही प्रधानमंत्री मोदी से मिलने का इंतजार कर रहा था। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से मिलने का बुलावा नहीं आया और पीएम मोदी मंगलवार को अमेरिका के लिए रवाना हो गए। वहां पर वो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से मिलेंगे और राजकीय रात्रिभोज में भी शामिल होगें। पीएम मोदी के लिए मणिपुर में जारी हिंसा कोई मतलब नहीं रखता है।

मणिपुर से आये वरिष्ठ नेताओं से पीएम मोदी के ना मिलने पर प्रतिनिधिमंडल नाराज है। मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने कहा कि राज्य में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गयी है और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हो गए हैं। और अभी भी राज्य में शांति नहीं लौटी है। ओकराम इबोबी सिंह ने आगे कहा कि वे “भिखारी” नहीं है, जिनके साथ इस तरह की उदासीनता का व्यवहार किया जा रहा है, एक राज्य के प्रतिनिधिमंडल में होने के तौर पर हम केवल अपने प्रदेश में सामान्य स्थिति की बहाली चाहते है।

ओकराम कहते हैं कि, “यहां आने के बाद हमें ऐसा महसूस कराया जा रहा है जैसे हम किसी लायक नहीं हैं। हम सरकार से कुछ भीख मांगने नहीं आए; हम कोई भिखारी नहीं हैं। हमारे लोग मर रहे हैं, हमारा राज्य जल रहा है और ऐसे त्रासदी के वक्त में हम बस शांति चाहते हैं। लेकिन देश के मुखिया के पास हमारे लिए पांच मिनट का भी समय नहीं है।

कांग्रेस प्रवक्ता अजय कुमार ने कहा कि मणिपुर के वरिष्ठ नेताओं के प्रति भाजपा का रवैया और प्रधानमंत्री के द्वारा प्रतिनिधिमंडल को अनदेखा करना कई बातें जाहिर करता है। अजय कुमार आगे बोलते है कि प्रधानमंत्री के पास एक “संवाद लेखक” से मिलने के लिए 45 मिनट का समय है, लेकिन देश के आंतरिक कलह पर विचार करने के लिए पांच मिनट का समय नहीं है। कांग्रेस प्रवक्ता संवाद लेखक के तौर मनोज मुंतशिर का जिक्र कर रहे थे, जिन्होंने फिल्म आदिपुरुष में संवाद लिखे हैं, जो हाल के समय में देश में एक अलग विवाद की वजह बन गया है।

सिंह ने कहा कि, “मणिपुर भले एक छोटा राज्य है लेकिन वहां इतने बड़े पैमाने पर हिंसा को एक राष्ट्रीय मुद्दे के तौर पर देखा जाना चाहिए। ये जो संकट है, भाजपा की राजनीति और राज्य सरकार की अक्षमता का परिणाम है। अगर प्रधानमंत्री ने प्रतिबद्धता और दृढ़ संकल्प दिखाया होता, तो ये हिंसा इतना आगे तक नहीं जाती और न ही किसी को पलायन करने की जरूरत पड़ती। लेकिन केंद्र के रवैये से हम आश्चर्यचकित हैं कि क्या मणिपुर को किसी गुप्त एजेंडे के तहत जलने के लिए छोड़ तो नहीं दिया गया है।

मोदी की उदासीनता पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए, सिंह ने कहा कि “जब ऑस्ट्रेलिया या कनाडा जैसे दूसरे देश में किसी मंदिर में तोड़फोड़ की जाती है, तो भारतीय सरकार चिंतित हो जाती है। लेकिन मणिपुर में अब तक 600 से अधिक मंदिरों और चर्चों को आग के हवाले कर दिया गया है या फिर धार्मिक स्थलों को तोड़ा गया है। तो क्या ये भारत और भारतीय सरकार के लिए चिंता का विषय नहीं है।

सिंह आगे कहते हैं कि, अगर कोई विदेश में मोदी से पूछे कि भारत में मंदिरों और चर्चों को तोड़ा जा रहा है तो प्रधानमंत्री का जवाब क्या होगा? अगर इस तरह की हिंसा देश की सबसे संवेदनशील भूमि जैसे उत्तर प्रदेश या बिहार में होती-तो क्या हमें सरकार का एक अलग रवैया देखने के लिए नहीं मिलता? 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हो गया, लेकिन केंद्र सरकार के द्वारा मणिपुर को नजरअंदाज करना समझ से परे है। हमारे राज्य के युवा को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि अगर राज्य को भारत का हिस्सा नहीं माना जाता है तो विलय का लाभ क्या है?

प्रतिनिधिमंडल में से एक अन्य वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री निमाई चंद लुवांग ने कहा कि “हम सरकार से बेहद निराश हैं। मैं कड़े शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहता लेकिन मणिपुर में लोग सरकार के रवैये से खुश नहीं हैं। समस्या इसलिए शुरू हुई क्योंकि भाजपा ने कुकी उग्रवादी संगठन के साथ समझौता किया। लोग अब मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का चेहरा नहीं देखना चाहते हैं, और शायद ये समय है कि मुख्यमंत्री अपने पद से हटें।

प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्यों ने मणिपुर संकट के लिए मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीरेन सिंह को जिम्मेदार ठहराया है। मणिपुर में हिंसा की खबर को लोगों तक पहुंचाने के लिए मीडिया से अनुरोध करते हुए, प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने कहा कि यह कुकी और मैतेई के बीच एक सांप्रदायिक लड़ाई नहीं है, बल्कि शासन की विफलता से पैदा हुई समस्या है। “मणिपुर हिंसा के वास्तुकार और निर्माता राज्य के मुख्यमंत्री हैं, हिंसा भड़कने के बाद राज्य की जनता को ये उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नवीनतम मन की बात के प्रसारण के बाद क्या हुआ? लोगों ने सड़क पर अपने रेडियो सेट तोड़ दिए।”

मोदी के अमेरिका रवाना होने के बाद प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को प्रधानमंत्री कार्यालय गया और अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में ये बताया गया है कि, मणिपुर में चल रही दो समुदायों कि झड़प की शुरुआत 3 मई से शुरू हुई और हिंसा से जुड़ी सभी परेशानी का विवरण दिया गया है। ज्ञापन में कहा गया है, “केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को जारी हिंसा को रोकने में विफल रहने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।”

प्रतिनिधिमंडल के द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपे गए ज्ञापन के अनुसार, एक अलग प्रशासनिक इकाई के लिए 10 कुकी विधायकों की मांग का उल्लेख करते कहा गया है कि “हम इसका विरोध करते हैं और मणिपुर की एकता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खड़े हैं। प्रत्येक समुदाय की शिकायतों को गंभीरता से सुना जाना चाहिए और उनका समाधान किया जाना चाहिए। सभी सशस्त्र समूहों को तुरंत हथियार छोड़ देना चाहिए।

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