Friday, March 29, 2024

पश्चिम बंंगालः ‘मतुआ’ पूछ रहे हैं- क्यों बजाया था सीएए का झुनझुना!

मतुआ समुदाय के लोग केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से सवाल कर रहे हैं कि अगर लागू नहीं करना था तो फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में सीएए का झुनझुना क्यों बजाया था। शाह पसोपेश में है। एक तरफ बंगाल में 1, 75 करोड़ मतुआ मतदाता हैं, तो दूसरी तरफ असाम में विधानसभा का चुनाव भी है। लिहाजा अमित शाह दोराहे पर खड़े नजर आ रहे हैं।

मतुवा अब भाजपा के लिए गले की हड्डी बन गए हैं, न उगल सकते हैं और न ही निगल सकते हैं। बंगाल में मतुवा समुदाय की आबादी करीब 3 करोड़ है और उनमें से एक करोड़ 75 लाख मतदाता है। मतुवा समुदाय के लोग तत्कालीन पूर्वी बंगाल में बसते थे, और जब देश का विभाजन हुआ तो काफी बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल में आ गए। इसके बाद बचे-खुचे मतुवा समुदाय के लोग बांग्लादेश के गठन के समय पश्चिम बंगाल में आ गए। इनकी आबादी उत्तर 24 परगना और नदिया जिले में है, एवं बनगांव में उनकी संख्या सर्वाधिक है।

सीएए लागू किए जाने की घोषणा से पहले मतुवा समुदाय में नागरिकता को लेकर कोई खास बेचैनी नहीं थी, लेकिन इसके बाद यह सवाल उन्हें परेशान करने लगा कि 1947 के कागजात वह कहां से लाएंगे। इसके बाद से ही उन्होंने नागरिकता के सवाल को चुनावी मुद्दा बना दिया। भाजपा ने इसे अच्छी तरह भुनाया भी और 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बन गांव आए थे और अपने चिर परिचित अंदाज में घुटने टेक कर हाथ जोड़ कर मतुवा समुदाय के कुल देवता की पूजा भी की थी।

मोदी और शाह के साथ ही भाजपा के नेताओं ने लोकसभा चुनाव के बाद सीएए लागू करने का वादा किया था। इसका लाभ भी उन्हें मिला था। बनगांव लोकसभा सीट से भाजपा के शांतनु ठाकुर जीत गए थे और टीएमसी की ममता बाला ठाकुर को हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा को करीब 49 और टीएमसी को 45 फ़ीसदी के आसपास वोट मिले थे। इस लोकसभा क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्र हैं।

अब जब 2021 का विधानसभा चुनाव आया तो मतुवा समुदाय के लोग भाजपा से अपना वादा पूरा करने की मांग कर रहे हैं। दूसरी तरफ असम विधानसभा चुनाव के कारण दोराहे पर खड़े मोदी और शाह के लिए मुश्किल की घड़ी आ गई है। उनकी मांग है कि शाह बनगांव की एक जनसभा में इसकी घोषणा करें। मतुवा समुदाय का कहना है कि उनके मतदाता पत्र, आधार कार्ड और राशन कार्ड को ही नागरिकता का प्रमाण पत्र मान लिया जाए। दूसरी तरफ सीएए के प्रावधानों के कारण यह मुमकिन नहीं है। लिहाजा अमित शाह बनगांव में चुनावी सभा करने से कतरा रहे हैं। उनकी जनसभा 19 दिसंबर को होनी थी, लेकिन अपरिहार्य कारणों से स्थगित करनी पड़ी।

इसी तरह 30 जनवरी को होने वाली सभा भी स्थगित कर दी गई। इसका मतुवा समुदाय में तीखा विरोध हुआ और कैलाश विजयवर्गीय एवं मुकुल राय ने वहां पहुंचकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की थी। मुश्किल यह है कि एक तरफ शाह कहते हैं कि पूरे देश में कोविड वैक्सिनेशन पूरा होने के बाद ही सीएए लागू किया जाए पर मुश्किल यह है कि शाह बनगांव की सार्वजनिक सभा में यह घोषणा नहीं कर सकते हैं।

दूसरी तरफ ममता बनर्जी कहती हैं कि भाजपा ने चुनावी फायदे के लिए ही सीएए का झुनझुना बजाया था। मतुवा समुदाय के लोगों के पास वोटर कार्ड, आधार कार्ड और राशन कार्ड है। वे मतदान करते हैं और उनमें से सांसद-विधायक भी चुने जाते हैं। शांतनु ठाकुर मतुवा समुदाय के ही तो हैं, तो फिर उन्हें नागरिकता प्रमाण पत्र की आवश्यकता है। वे कहती हैं कि पहले तो उनके दिल में खौफ पैदा किया और फिर सीएए लागू करने का वादा किया गया।

अब ठाकुर नगर का खाली मंच अमित शाह का इंतजार कर  रहा है। अमित शाह जब 30  जनवरी को नहीं आए तो कैलाश  विजयवर्गीय और मुकुल राय सरीखे नेताओं ने कहा था कि फिलहाल मंच को नहीं तोड़ें।  अमित शाह यहां आकर इसी मंच से जनसभा को संबोधित करेंगे और सीएए लागू करने की तारीख की घोषणा करेंगे।

लिहाजा  मतुया समुदाय के लोग उनके आने का इंतजार कर रहे हैं। पर वादा करके भूल जाना तो उनकी आदत है। मसलन साल में दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा भी वह भूल गए। अच्छे दिन को अमित शाह ने चुनाव के बाद जुमला करार दिया था।

(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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