दिल्ली बार एसोसिएशन ने अधिवक्ता अधिनियम 1961 में सरकार द्वारा प्रस्तावित हालिया संशोधन के खिलाफ हड़ताल की घोषणा की है। प्रस्तावित संशोधन के विभिन्न प्रावधानों का गंभीर विरोध हो रहा है, और अब यह सार्वजनिक राय के लिए खुला है। डीबीए ने उन कठोर प्रावधानों के खिलाफ स्पष्ट रुख अपनाया है, जो ‘उचित और अद्यतन न्यायिक अभ्यास’ के प्रभावी कार्यान्वयन के नाम पर वकीलों की प्रैक्टिस के लिए खतरा हैं।
दिल्ली की सभी बार एसोसिएशनों की समन्वय समिति ने मंगलवार को फैसला किया कि वे 19 फरवरी को भी तीसरे दिन न्यायिक कार्य से दूर रहेंगे। देश की जनता के लिए अपने संचार में, विधि और न्याय मंत्रालय ने कहा कि “चल रहे सुधारों के हिस्से के रूप में, सरकार कानूनी पेशे को निष्पक्ष, पारदर्शी और सुलभ बनाने के लिए बदलाव कर रही है।” इसके अलावा, मंत्रालय ने यह भी बताया कि वे इस राष्ट्र को विकसित और गतिशील दुनिया के लिए तैयार कर रहे हैं, जिससे राष्ट्रीय अभ्यास और शिक्षा को विश्व की सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाया जा सके।
मुवक्किल अपने वकीलों पर मुकदमा कर सकते हैं
‘दुराचरण’ के कारण, मुवक्किल अपने वकीलों पर मुकदमा कर सकते हैं। परंपरागत रूप से, कानूनी पेशे में दुराचरण केवल पेशेवर नैतिकता के उल्लंघन तक सीमित रहा है, जैसे कि धोखाधड़ी, गलत बयानी, या मुवक्किल की गोपनीयता का उल्लंघन। लेकिन हालिया प्रस्तावित संशोधन के तहत धारा 45बी में ‘दुराचरण’ की परिभाषा का विस्तार किया गया है, जिसमें वकील की कार्रवाई के कारण मुवक्किल को हुए वित्तीय नुकसान को भी शामिल किया गया है।
यह प्रावधान पहले से ही बोझिल न्यायपालिका के लिए मुकदमों की संख्या को और बढ़ा देगा। दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि ‘जानबूझकर’ की गई कार्रवाई को कैसे निर्धारित किया जाएगा। इस परिभाषा की अस्पष्टता उत्तरदायित्व के सवाल को अधर में डाल देती है। इस संशोधन के माध्यम से, कोई भी पराजित पक्ष अपने वित्तीय नुकसान के लिए वकील पर दावा कर सकता है।
जब हम कानून स्कूल में पढ़ते हैं, तो वकीलों की पेशेवर नैतिकता उन्हें कभी भी किसी मामले में जीत की गारंटी देने की अनुमति नहीं देती। “जो सर्वोत्तम वह कर सकता है, वही करेगा।”
वित्तीय हानि के लिए वकीलों को उत्तरदायी ठहराने से वे जटिल या विवादास्पद मामलों को लेने से हिचक सकते हैं, विशेष रूप से वे मामले जिनमें महत्वपूर्ण वित्तीय दाव लगे होते हैं। इससे निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:
· शक्तिशाली संस्थाओं या सरकार के खिलाफ मामले लेने की वकीलों की तत्परता कम हो सकती है।
· वकीलों की निडरता और जोश के साथ मुकदमे लड़ने की प्रवृत्ति घट सकती है।
यहां सरकार की मंशा स्पष्ट रूप से दिखती है कि वह अपने खिलाफ कानूनी मामलों की बाढ़ से खुद को बचाने की तैयारी कर रही है। वर्तमान सरकार समाज के प्रत्येक वर्ग को निशाना बना रही है, और न्यायपालिका आखिरी सहारा है जहां लोग भरोसा कर सकते हैं। यदि वे कानूनी प्रैक्टिस के मूल सिद्धांतों पर ही हमला करते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी मुकदमों को कम करना आसान हो जाएगा।
बार की स्वतंत्रता खतरे में है
कानूनी प्रैक्टिस का एक प्रमुख सिद्धांत वकीलों की बाहरी दबावों से स्वतंत्रता है, जिसमें मुवक्किलों और नियामक निकायों का हस्तक्षेप भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के तीन बार अध्यक्ष रहे दुष्यंत दवे ने अपने प्रसिद्ध भाषण में कहा था, “यह बार काउंसिल और बार के वरिष्ठ सदस्यों की जिम्मेदारी है, जो कभी अपनी जिम्मेदारी नहीं भूले, कि वे बार की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए आगे आएं। यह स्वतंत्रता सर्वोच्च है और इस देश की भलाई और जीवंत लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।”
बार और बेंच के इतिहास से यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार, बार की स्वतंत्रता और स्वस्थ न्यायिक प्रैक्टिस के लिए इसकी आवश्यकता पर जोर दिया है।
आर. मुथुकृष्णन बनाम मद्रास उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के मामले में, अदालत ने कहा था, “कानूनी प्रणाली में बार की भूमिका महत्वपूर्ण है। बार को न्यायपालिका का प्रवक्ता माना जाता है क्योंकि न्यायाधीश स्वयं नहीं बोलते। जनता महान वकीलों को सुनती है और उनके विचारों से प्रेरित होती है। उन्हें सम्मानपूर्वक याद किया जाता है और उद्धृत किया जाता है। यह बार का कर्तव्य है कि वह ईमानदार न्यायाधीशों की रक्षा करें और साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि भ्रष्ट न्यायाधीशों को बख्शा न जाए।“
अदालत ने आगे जोर देकर कहा कि, “यदि वकीलों के मन में न्यायपालिका या अन्य किसी से भय होगा, तो यह स्वयं न्यायपालिका की प्रभावशीलता के लिए अनुकूल नहीं होगा और यह आत्म-विनाशकारी होगा।“
निडरता का प्रश्न
निडरता कानूनी पेशे का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, जिसके माध्यम से एक वकील अपने मुवक्किल का पूरी क्षमता और निष्ठा के साथ प्रतिनिधित्व कर सकता है। व्यवसायिक आचरण और शिष्टाचार के मानक यह निर्देश देते हैं कि “एक अधिवक्ता को निर्भीक होकर मुवक्किल के हितों की रक्षा करनी चाहिए।“ यदि हम उन युवा वकीलों की बात करें, जो किसी भी अदालत में प्रैक्टिस शुरू करते हैं, तो वे केस हारने और आर्थिक नुकसान के भारी दबाव को महसूस करेंगे।
बार की पूर्ण हड़ताल
हमें इस नए ‘फरमान’ या सम्राट के आदेश को वर्तमान शासन के पिछले प्रयोगों से समझना चाहिए, जब उन्होंने श्रमिकों के मुद्दों को सीधे हड़ताल पर प्रतिबंध लगाकर हल करने का सबसे आसान रास्ता चुना था। यह भारत के सभी श्रमिक वर्गों के लिए एक चेतावनी का संकेत है कि यदि उन्होंने अपने मौलिक और मानवाधिकारों की मामूली भी आवाज उठाई, तो उसे क्रूरतापूर्वक दबा दिया जाएगा।
अब बात अधिवक्ताओं की आती है, जो लोकतंत्र की रक्षा करने वाले हैं। कल्पना कीजिए, जो व्यक्ति अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) पर बहस कर रहा है, वह खुद इस व्यवस्था में अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता। यह एक पूर्ण “शट डाउन” की तरह है।
प्रतियोगिता और निवेश के नाम पर यह सरकार सबकुछ दाव पर लगाने को तैयार है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने इस प्रस्तावित संशोधन में युवा वकीलों की आर्थिक सहायता और सामाजिक सुरक्षा को लेकर एक शब्द भी नहीं कहा, क्योंकि इससे सरकार की जिम्मेदारी तय हो सकती थी।
(निशांत आनंद कानून के छात्र हैं।)
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