क्या है गोपाल कांडा की असली ताकत?

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गीतिका शर्मा और उनकी मां अनुराधा शर्मा की खुदकुशी के मामले में माननीय अदालत ने गोपाल कांडा को रिहा कर दिया। यह रिहाई कांडा परिवार और उनके समर्थकों के लिए साधारण है तो बाहर के लोगों के लिए असाधारण। यह नहीं भूलना चाहिए कि संदेह का लाभ देते हुए गोपाल कांडा को अदालत ने बरी किया है। अब उन पर कोई मामूली कानूनी तलवार भी नहीं लटक रही। गीतिका और अनुराधा को लोग चंद हफ्तों में भूल जाएंगे। मीडिया गीतिका के परिवार का रोना-धोना बहुत ज्यादा नहीं दिखाएगा क्योंकि रिहा हुआ व्यक्ति बाकायदा बाहुबली की छवि रखता है और अकूत धन-दौलत के जरिए बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों के मालिकों और संपादकों से उसकी गहरी दोस्ती है।

दूर से बैठकर अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल है कि इतने संगीन आरोपों में घिरा यह शख्स कानूनी दांव-पेंच के जरिए आराम से ऐसे बरी हो गया कि जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो। 18 महीने की न्यायिक हिरासत में जेल की सलाखों के पीछे कोई तगड़ा रसूखदार बगैर किसी गुनाह के कैसे रह सकता है?

अभी वह गीतिका खुदकुशी केस में बरी भी नहीं हुआ था कि निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर शहर सिरसा का विधायक बना। पिछले विधानसभा चुनाव में। गीतिका और अनुराधा की खुदकुशी के दाग उसके दामन पर थे लेकिन स्थानीय लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। सिरसा विधानसभा सीट पर कुल 19 उम्मीदवार खड़े थे। कड़ा मुकाबला निर्दलीय उम्मीदवारों गोपाल कांडा और गोकुल सेतिया में था। कांडा को 44,203 वह हासिल हुए तो सेतिया को 43,601। यानी अंतर 602 वोटों का था। उस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस अपराध और नैतिकता को लेकर मुद्दा बनाए हुए थी। भाजपा उम्मीदवार को 30,000 तो कांग्रेस को 10,000 वोट मिले। कांडा दोनों पार्टियों पर भी हावी नजर आए। आखिर गोपाल कांडा सिरसा में इतने लोकप्रिय क्यों हैं? इलाके के बाहर के लोग इस बाबत बहुत कम जानते हैं।

सिरसा में एक बेहद मशहूर कुटिया है, ‘बाबा तारा’ की कुटिया। बाबा तारा को लोग खूब मानते थे लेकिन वह भीड़भाड़ से काफी दूर रहते थे। सिरसा के कुछ चुनिंदा परिवार थे जो अक्सर उनसे मिल लिया करते थे। उनमें कांडा परिवार भी था। अंधविश्वासी लोगों का यकीन है कि तारा बाबा कथित ईश्वरीय शक्तियों के मालिक थे। गोपाल कांडा को उन्हीं ने खड़ा किया और बताते हैं कि रियल स्टेट कारोबार में जाने के लिए कहा। इससे पहले सिरसा में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी, जिनका तबादला गुड़गांव हो गया था, वह भी गोपाल कांडा से रियल स्टेट कारोबार में पैसा लगाने के लिए कहा करते थे।

गुड़गांव की गिनती एशिया के चंद अमीर और आधुनिक शहरों में आती है। तारा बाबा के आदेश के बाद गोपाल कांडा ने गुड़गांव का रुख पकड़ लिया और दौलत उनके आगे नाचने लगी। इससे पहले वह हरियाणा के एक बेहद रसूखदार राजनीतिक घराने के काफी करीब थे बल्कि यूं कहिए कि उनकी किचन कैबिनेट के सदस्य थे। रियल स्टेट में कैसे काम किया जाता है, यह गोपाल कांडा ने उन्हीं लोगों के साथ रहकर सीखा जो बाद में खूब काम आया और आ रहा है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि गोपाल कांडा का बिजनेस सुदूर देशों तक फैला हुआ है। इनमें दुबई प्रमुख है। गोवा में उनका कैसीनो है जहां से उन्हें प्रतिदिन करोड़ों रुपए की आमदनी होती है। गोवा के कैसीनो में विदेशी ज्यादा आते हैं जो बड़े-बड़े दांव लगाते हैं।

अब असल बात कि तमाम दाग के बावजूद गोपाल कांडा उजले कैसे रहते हैं। जबकि उनकी और उनके भाई की छवि रिबन हुड से कम नहीं है। अब गोपाल की इस छवि में यकीनन इजाफा ही हुआ है।

तारा बाबा अपने जिस्मानी अंत तक जिस जगह रहे वह कई एकड़ में फैली हुई सुनसान जमीन थी। वहां उनकी कुटिया थी और वह हर किसी से नहीं मिलते थे। उनके जाने के बाद गोपाल कांडा के पास बेहिसाब दौलत आ चुकी थी। उसने उस कुटिया को एक किस्म के आलीशान आश्रम में बदल दिया। इस कुटिया की धज देखने वाली है और दूर-दूर से लोग देखने आते भी हैं। वहीं पास ही कांडा परिवार का अति आलीशान महल है। जी हां, ‘महल!’ बाहर के ज्यादातर लोगों का मानना है कि गोपाल कांडा ही तारा बाबा के उत्तराधिकारी हैं।

तारा बाबा ने अपने जीवन में किसी को भी अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था लेकिन गोपाल कांडा अघोषित उत्तराधिकारी हैं। कुटिया का निजाम हाथ में लेते ही सबसे पहले गोपाल कांडा ने उसे अति आधुनिक रूप दिया। हर पर्व अथवा त्योहारों पर कई तरह के आयोजन किए जाते हैं। फिल्मी सितारे भी बुलाए जाते थे। यह सिलसिला अब स्थगित है। हेमा मालिनी भी वहां जा चुकीं हैं। लंबी फेहरिस्त है। अब वहां अक्सर मेडिकल कैंप लगाए जाते हैं जहां गरीब मरीजों का निशुल्क इलाज और मेडिकल चैकअप किया जाता है। पूरे प्रदेश से लोग वहां आते हैं। 24 घंटे लंगर चलता है।

अपनी ‘संत छवि’ को निखारने के लिए गोपाल कांडा गुरमीत राम रहीम सिंह की नकल भी करते हैं। भूलना नहीं चाहिए कि डेरा सच्चा सौदा भी सिरसा में ही है। तारा बाबा की कुटिया में अक्सर जगराते कराए जाते हैं और भंडारे तथा धार्मिक आयोजन भी। तब वहां गोपाल कांडा की ओर से सामाजिक कार्यों, मसलन अनाथ आश्रम, वृद्धाश्रम और गौशालाओं की मदद के लिए बेहिसाब राशि मौके पर ही प्रबंधकों को दी जाती है। कई निर्धन परिवार की लड़कियों की शादी भी तारा बाबा की कुटिया में करवाई जा चुकी है। यह सब एक सोचे-समझे वृतांत का हिस्सा है। आदतन लोग उनकी इन कारगुज़ारियों पर नजर रखते हैं। सिरसा में गोपाल कांडा की रिहाई के बाद जश्नों का सिलसिला जारी है। गीतिका शर्मा और उनकी मां अनुराधा शर्मा की त्रासदी से वहां के बहुत कम लोगों को मतलब है।

वह सिरसा के विधायक और लोकहित पार्टी के अध्यक्ष हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उन्हें अपनी सरकार बनाने और बचाने के लिए गृहराज्य मंत्री बनाया। तब इलाके में क्या-क्या हुआ, यह जानना हो तो वहां के लोगों से मिलिए। दूसरी बार कांडा जब विधायक बने तो सरकार बनाने के लिए भाजपा को निर्दलीय उम्मीदवारों की जरूरत थी। उस वक्त गोपाल कांडा को हवाई जहाज से दिल्ली बुलाया गया लेकिन उमा भारती के एक ट्वीट ने सारा खेल बिगाड़ दिया। अलबत्ता भाजपा से गोपाल कांडा के रिश्ते नहीं टूटे। उनके भाई गोविंद कांडा को भाजपा ने ऐलनाबाद उपचुनाव में टिकट दिया था और मुकाबले में कभी कांडा बंधुओं के आका रहे अभय सिंह चौटाला थे। चौटाला परिवार ने कभी किसी चुनाव में जीत के लिए इतनी ज्यादा मेहनत नहीं की, जितनी ऐलनाबाद में करनी पड़ी। मामूली अंतर से अभय सिंह चौटाला अपने पुराने शिष्य से जीते।

जब राम रहीम गुरमीत सिंह खुद से जुड़े विवादों को डेरे की ऊंची दीवारों में दफन करवा दिया करता था। तब वोटों के लालची राजनेता उसके चरण छूने जाया करते थे। उन दिनों अक्सर कहा जाता था कि बाबा की ताकत अगर इसी तरह फैलती गई तो एक दिन यह खुद ही चुनाव लड़ेगा और अपने लोगों को भी लड़वाएगा। यानी उसका सपना मुख्यमंत्री बनने का है। गुरमीत राम रहीम ने बेहूदा गाने गाए, उससे भी ज्यादा बेहूदा फिल्में बनाईं, और भी कई किस्म के प्रपंच किए। सिर्फ सियासत में हाथ आजमाना बाकी था कि जेल की सलाखों ने उसे उम्र भर के लिए अपने पास बुला लिया।

इस रिपोर्ट से थोड़ा समझ तो आ ही गया होगा कि गोपाल कांडा की पैसे के अलावा भी एक हस्ती है, ताकत है-जिसके बूते वह कम से कम सिरसा पर तो राज करता ही है! उसकी पार्टी एनडीए का हिस्सा है। वह अपनी पार्टी का प्रधान है तो अब औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल होना महज वक्त की बात है!

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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