Sunday, April 28, 2024

मोदी सरकार ने डीएनए प्रौद्योगिकी विधेयक-2019 को वापस लिया

सरकार ने डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 वापस ले लिया है। इस विधेयक के लागू करने के बाद, किसी भी व्यक्ति का, जो किसी अपराध के घटनास्थल पर सायास या अनायास उपस्थित रहा है, का डीएनए सैंपल लेने की शक्ति पुलिस को मिल सकती थी। इसके संभावित खतरे भी थे, क्योंकि इन सैंपल के आधार पर एक डीएनए डेटा बैंक भी बनाए जाने का प्राविधान भी इस विधेयक में किया गया था। संसदीय स्थाई समिति ने डीएनए विधेयक की विस्तार से जांच की और यह सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण संशोधनों का सुझाव भी दिया था, जिससे विधेयक के प्रावधानों का दुरुपयोग न किया जा सके। समिति की रिपोर्ट 3 फरवरी, 2021 को, सरकार के पास भेज दी गई थी। अब इस विधेयक पर, मोदी सरकार का कहना है कि, विधेयक के अधिकांश प्रावधान, पहले ही आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 में स्थान पा चुके हैं, इसलिए डीएनए विधेयक की आवश्यकता नहीं है। 

जबकि वास्तविकता यह है कि, मोदी सरकार स्थायी समिति द्वारा अनुशंसित विस्तृत सुरक्षा उपायों को विधेयक में प्राविधित नहीं करना चाहती थी और स्थाई समिति से अपनी रिपोर्ट जल्द से जल्द सौंपने के लिए दबाव भी डाल रही थी। जब रिपोर्ट आ गई और अनुशंसित प्राविधान सरकार के हित के विपरीत दिखे तो सरकार ने इसे नजरअंदाज करने का फैसला किया। सरकार के डीएनए विधेयक की आलोचना, विधेयक के सदन में प्रस्तुत करते ही की जाने लगी थी। आलोचनाओं का पर्याप्त आधार भी था। अब इस विधेयक पर सरकार के  पीछे हट जाने से आलोचकों की आशंकाएं निराधार नहीं लग रही हैं।

डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक 8 जुलाई, 2019 को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन द्वारा लोकसभा में पेश किया गया था। यह विधेयक कुछ व्यक्तियों की पहचान स्थापित करने के लिए डीएनए प्रौद्योगिकी के उपयोग को रेगुलेट करने संबंधी कानूनों का प्रावधान करता है। यही विधेयक पहले अगस्त 2018 में लोकसभा में पेश किया गया था। लेकिन सदन से निरस्त हो गया था।    

डीएनए विधेयक के तहत डीएनए परीक्षण की अनुमति केवल विधेयक की अनुसूची में दर्ज सूचीबद्ध मामलों के संबंध में है। इनमें भारतीय दंड संहिता-1860 के तहत अपराध और पितृत्व मुकदमे जैसे नागरिक मामले शामिल हैं। इसके अलावा अनुसूची में व्यक्तिगत पहचान की स्थापना से संबंधित मामलों के लिए डीएनए परीक्षण भी शामिल है।    

डीएनए प्रोफ़ाइल तैयार करते समय, जांच अधिकारियों द्वारा व्यक्तियों के शारीरिक पदार्थ एकत्र किए जा सकते हैं। अधिकारियों को कुछ स्थितियों में डीएनए संग्रह के लिए, व्यक्ति की सहमति प्राप्त करनी जरूरी थी। गिरफ्तार व्यक्तियों के लिए, यदि सात साल तक की सज़ा वाले अपराध हैं, तो अधिकारियों को व्यक्ति की लिखित सहमति प्राप्त करने की जरूरत थी। यदि अपराध में सात साल से अधिक कारावास या मौत का प्रावधान है तो सहमति की आवश्यकता का प्राविधान नहीं था।

इसके अलावा यदि व्यक्ति पीड़ित है, या लापता व्यक्ति का रिश्तेदार है, या नाबालिग या विकलांग व्यक्ति है, तो अधिकारियों को ऐसे पीड़ित या रिश्तेदार या नाबालिग या विकलांग व्यक्ति के माता-पिता या अभिभावक की लिखित सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता रखी गई थी। यदि इन मामलों में सहमति नहीं दी जाती है तो अधिकारी एक मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकते हैं जो ऐसे व्यक्तियों के शारीरिक पदार्थों को लेने का आदेश उक्त मैजिस्ट्रेट दे सकता था।   

विधेयक में प्रत्येक राज्य या दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक और क्षेत्रीय डीएनए डेटा बैंक की स्थापना का भी प्रावधान था। डीएनए प्रयोगशालाओं को उनके द्वारा तैयार डीएनए डेटा को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डीएनए डेटा बैंकों के साथ साझा करना आवश्यक होता था। प्रत्येक डेटा बैंक को डेटा की निम्नलिखित श्रेणियों के लिए सूचकांक बनाए रखने की आवश्यकता थी। 

(i) अपराध स्थल सूचकांक। 

(ii) संदिग्ध या विचाराधीन कैदियों का सूचकांक।

(iii) अपराधियों का सूचकांक। 

(iv) लापता व्यक्तियों का सूचकांक।

(v) अज्ञात मृत व्यक्तियों का सूचकांक। 

विधेयक में कहा गया था कि डीएनए प्रोफाइल की प्रविष्टि करने या हटाने के मानदंड, एक नियमावली द्वारा निर्दिष्ट किए जाएंगे। हालांकि, बिल में निम्नलिखित व्यक्तियों के डीएनए प्रोफाइल को हटाने का प्रावधान था: 

(i) यदि पुलिस रिपोर्ट दर्ज की जाती है या अदालत का आदेश दिया जाता है तो एक संदिग्ध का। 

(ii) यदि अदालत का आदेश दिया जाता है तो एक विचाराधीन कैदी का।

(iii) लिखित अनुरोध पर ऐसे व्यक्तियों के लिए जो संदिग्ध, अपराधी या विचाराधीन कैदी नहीं हैं।   

विधेयक में एक डीएनए नियामक बोर्ड की स्थापना का प्रावधान था। जो डीएनए डेटा बैंकों और डीएनए प्रयोगशालाओं की निगरानी करता। जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव, बोर्ड के पदेन अध्यक्ष और बोर्ड में अतिरिक्त सदस्य शामिल किए गए थे।

(i) जैविक विज्ञान के क्षेत्र में विशेषज्ञ।

(ii) राष्ट्रीय जांच एजेंसी के महानिदेशक और केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक। 

बोर्ड के कार्यों में शामिल था:

(i) डीएनए प्रयोगशालाओं या डेटा बैंकों की स्थापना से संबंधित सभी मुद्दों पर सरकारों को सलाह देना।

(ii) डीएनए प्रयोगशालाओं को मान्यता प्रदान करना। इसके अलावा, बोर्ड को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि डेटा बैंकों, प्रयोगशालाओं और अन्य व्यक्तियों के पास डीएनए प्रोफाइल से संबंधित सभी जानकारी गोपनीय रखी जाए। 

डीएनए परीक्षण करने वाली किसी भी प्रयोगशाला को बोर्ड से मान्यता प्राप्त करना आवश्यक है। बोर्ड निम्नलिखित कारणों से मान्यता रद्द कर सकता थी: 

(i) डीएनए परीक्षण न करना।

(ii) मान्यता से जुड़ी शर्तों का अनुपालन न करना। 

मान्यता रद्द कर देने पर, केंद्र सरकार या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी अन्य प्राधिकरण के समक्ष अपील का प्राविधान था। इसके अलावा, प्रत्येक डीएनए प्रयोगशाला को डीएनए नमूनों(सैंपल) के संग्रह, भंडारण और विश्लेषण में गुणवत्ता आश्वासन के मानकों का पालन करना आवश्यक था। आपराधिक मामलों के लिए डीएनए प्रोफ़ाइल जमा करने के बाद, प्रयोगशाला को जांच अधिकारी को जैविक नमूना वापस करना आवश्यक था। अन्य सभी मामलों में, नमूना नष्ट कर दिये जाने का प्राविधान था। 

विधेयक में विभिन्न अपराधों के लिए दंड का प्राविधान था:

(i) डीएनए जानकारी का खुलासा करना।

(ii) प्राधिकरण के बिना डीएनए नमूने का उपयोग करना। 

उदाहरण के लिए, डीएनए जानकारी का खुलासा करने पर तीन साल तक की कैद और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। 

डीएनए बिल पर संसदीय समिति ने बिल में बदलाव के लिए सुझाव दिए हैं, जिसके अनुसार नए डीएनए बिल के तहत प्रस्तावित क्राइम सीन डीएनए प्रोफाइल का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने पर चिंता जताई गई है। समिति का कहना है कि इससे हर किसी का डीएनए मौजूद होगा, जो क्राइम सीन पर पहले या बाद में गए होंगे या फिर उनके बाल या किसी भी सैंपल को क्राइम सीन तक पहुंचाया गया होगा। 

संसदीय समिति का कहना है, ‘डीएनए प्रोफाइल के राष्ट्रीय डेटा बैंक के साथ जोखिम यह है कि, अगर वह क्राइम से जुड़े भी नहीं होंगे तो भी वह जांच का हिस्सा बन जाएंगे. इसके बाद बिना इन लोगों की जानकारी के इनका डीएनए “क्राइम सीन इंडेक्स” का हिस्सा बन जाएगा। 

संसदीय समिति ने सुझाव दिया कि अपराध स्थल डीएनए प्रोफाइल का उपयोग जांच और परीक्षण में किया जा सकता है, लेकिन इसे डेटा बैंक में नहीं डाला जाना चाहिए, और मामला समाप्त होने के बाद इसे नष्ट कर दिया जाना चाहिए. अगर कोई दोषी है, तो दोषी के डीएनए प्रोफाइल को ही डेटा बैंक में शामिल किया जा सकता है। इन आपत्तियो के आने बाद, यह विधेयक सरकार ने वापस ले लिया। 

चाहे कोई अध्यादेश हो या विधेयक, सरकार कोई भी अधिकार और शक्ति, अपनी मुट्ठी में, केंद्रीकृत करने का एक भी अवसर नही छोड़ना चाहती। यह इस विधेयक का ड्राफ्ट भी उसी मनोवृत्ति का परिणाम था। यदि मोदी सरकार के कालखंड में विधेयकों के प्रस्तुत और पारित करने की प्रवृत्ति का अध्ययन करें तो आप पाएंगे कि अधिकांश कानून संसद की स्थाई समिति के अध्ययन, जांच और पड़ताल के बिना ही पारित कर दिए गए है। किसान कानून भी ऐसा ही एक कानून था जिसे आनन फानन में पारित करा कर कानून तो बना दिया। लेकिन एक लंबे जन संघर्ष और 750 किसानों की शहादत के बाद, सरकार को यह कानून वापस लेना पड़ा। बिना बहस और बिना चर्चा के पारित कानून, बिना बहस और चर्चा के ही निरस्त भी हुआ। 

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस हैं और कानपुर में रहते हैं।)

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