खिरियाबाग: ज़मीन और सोशल मीडिया पर लोग सक्रिय न होते तो राजीव यादव के साथ क्या करती सरकार ?

“लोग कहते हैं आंदोलन, प्रदर्शन, जुलूस निकालने से क्या होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि हम जीवित हैं, अटल हैं और मैदान से हटे नहीं हैं। हमें अपने हार ना मानने वाले स्वाभिमान का प्रमाण देना था।” लोकतंत्र में नागरिक अधिकारों के हितार्थ व रक्षार्थ अहिंसक संघर्ष यानि आंदोलन पर जन समाज की बुनियादी समझ कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के उपरोक्त कथन से निर्मित है। काश की सत्ता में बैठे लोगों और प्रशासन में क़ाबिज़ लोगों को भी प्रेमचंद और संविधान को अनिवार्य रूप से पढ़ाया गया होता तो आज उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार आंदोलनकारियों का अपराधीकरण करके उन्हें ठिकाने लगाने की जुगत न भिड़ाती। न ही कोई शाखा प्रचारक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर क़ाबिज़ होकर नागरिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों को संसद में ‘आंदोलनजीवी’ कहकर उनका मखौल उड़ाता। 

पिस्टल, कार्बाइन कहां है ?

ताजा मामला उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के खिरियाबाग आंदोलन का है। किसान नेता व रिहाई मंच के सचिव राजीव यादव ने इस बाबत जनचौक संवाददाता को विस्तार से जानकारी दी है। परसों यानि 24 दिसंबर को खिरियाबाग़ के समर्थन में आज़मगढ़ में एक पदयात्रा निकलने का कार्यक्रम तय था। लेकिन सुबह ही पुलिस ने संदीप जी को रिटेन कर लिया गया। जबकि योगीराज पटेल को हाउस अरेस्ट कर लिया गया। और इसके बाद सभी साथियों में सहमति बनी और पदयात्रा स्थगित कर दिया गया।

राजीव यादव बताते हैं कि पदयात्रा स्थगित करने के बाद दोपहर दो ढाई बजे के क़रीब वह लोग निकल रहे थे। 22 किलोमीटर के अंतराल पर चोलापुर थानान्तर्गत एक बाईपास पर विनोद जी जो गाड़ी ड्राइव कर रहे थे उनकी आंख लग रही थी तो उन्होंने पानी पीने के लिये गाड़ी रोका जबकि खुद राजीव टॉयलेट (पेशाब) के लिये गाड़ी से उतरे। तब एक आदमी ने पीछे से आवाज़ दिया- ‘राजीव भाई’ । राजीव ने सोचा कि कोई परिचित होगा पीछे मुड़े देखा तो तीन चार लोग सादे कपड़ों में दिखे। उन्हें लगा कि सी ऑफ करने के लिये होता है कि कई बार आंदोलनों के बाद होता है ना पुलिसवाले का कि चलो हमारे सीमा क्षेत्र से निकल गये। तो राजीव ने सोचा कि ऐसा कुछ होगा। लेकिन जब कथित पुलिस वाले उन पर हमलावर हुये तो वो पीछे मुड़कर अपनी गाड़ी में बैठने के लिये लौटे। तभी उस कथित पुलिस वाले ने खींचकर उनके मुंह पर मारा और मार पीट करने लगे।

राजीव बताते हैं कि उन्हें बीच वाली सीट पर बिठाया गया था और एक ओर से एक आदमी और दूसरी ओर से दो आदमी दाबकर बैठे थे। और उन्हें लगातार अपमानित कर रहे थे। वे बिना नंबर प्लेट के, सफेद रंग की टाटा सूमो गाड़ी में 8 लोग थे, सादे कपड़ो में थे। राजीव बताते हैं इसके बाद उन्होंने उनको अपनी गाड़ी में बैठा लिया और पूछने लगे कि पिस्टल कहां है। कार्बाइन कहां रखा है। और उनका पैंट जैकेट सब टटोलकर देखा। तब राजीव ने उन कथित पुलिस वालों से कहा कि वह किसान नेता हैं। दाल चावल पूछिये तो बता दें, पिस्टल वह क्यों रखेंगे। इस दौरान राजीव के साथी विनोद जी अपने मोबाइल से फोटो वीडियो बनाने लगे को पुलिसवाले ने उन्हें मारकर मोबाइल व गाड़ी की चाभी छीन लिया। 

लोगों के ज़मीन पर उतरने से बैकफुट पर आया प्रशासन 

राजीव बताते हैं कि अवधेश यादव व उनके साथियों ने पुलिस के 112 नंबर पर कॉल किया। चूंकि वो स्थान जहां से कॉल किया गया था वो दो थानों चोलापुर और दानगंज के क्षेत्र में आता है। अतः दोनों थानों के एसओ व पुलिस टीम मौके पर आयीं, और लोगों से बात किया तब तक वहां सैंकडों की संख्या में भीड़ जुट गयी थी। दोनो थानों के पुलिस वालों से लोगों को जवाब देते नहीं बन रहा था। वहीं दूसरी ओर ढाई बजे राजीव यादव की गिरफ्तारी हुई और तीन बजे स्थानीय थाने की पुलिस उनके घर पहुंच जाती है। 

इसके आगे राजीव बताते हैं उन्हें और विनोद जी को जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बिठाने के बाद वो लोग उनसे आंदोलन के बारे में पूछने लगे कि कब आये थे कैसे आये थे। पदयात्रा कैसे निकाल रहे थे। पदयात्रा आंदोलन को क्यों ऑर्गेनाइज करवा रहे हो। तब राजीव ने पुलिस वालों से कहा कि ये जनता का आंदोलन है, जनता लड़ रही है और जनता जो सवाल उठा रही है वो लोग उनके  साथ हैं। राजीव ने कहा कि जब जनता अपनी ज़मीन नहीं देने की बात कर रही है। तो वो लोग जनता की ज़मीन नहीं देने की बात उठा रहे हैं।  फिर उक्त पुलिस वालों ने पूछा कि कितने साल से किसान आंदोलन कर रहे हो। इसके पहले क्या करते थे। और तमाम चीजें पूछी। संदीप पांडेय, मेधा पाटेकर, राकेश टिकैट के बारे पूछ रहे थे। 

राजीव बताते हैं कि उनके साथी बता रहे थे कि उनसे रिहाई मंच के बारे में पूछ रहे थे। कह रहे थे कि रिहाई मंच अपराधियों को बड़े अपराधियों को पैसा लेकर बचाता है। फिर वो पुलिस वाले राजीव से कहने लगे कि निरहुआ के साथ बनाकर क्यों नहीं चलते हो। सरकार और विकास का विरोध क्यों करते हो। सरकार के पैरेलल सरकार क्यों चलाते हो। फिर वो लोग मेधा पाटेकर के बारे में पूछने लगे कि वो नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी हैं उन्हें यहां से क्या मतलब है। जहां विकास होता है वहां पर तुम लोग आ जाते हो। 

इसके बाद उक्त कथित पुलिसकर्मियों ने दिल्ली में चले किसान आंदोलन के बारे में बातचीत की। तीनों केंद्रीय कृषि क़ानूनों को जस्टीफाई कर रहे थे वो लोग। फिर उन लोगों ने राजीव से पूछा कि कभी पुलिसवालों को लिये तुमने क्या किया। जबने राजीव ने उन्हें बताया कि जब इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या की गई तो हम उनके साथ खड़े हुये। इस पर पुलिसवालों ने कहा कि उन्हें तो बजरंग दल वालों ने मारा था इसलिये खड़े हुये तुम। तुम लोग सेलेक्टिव हो कलेक्टिव नहीं हो। फिर राजीव ने कहा कि निजामाबाद में एक एसडीएम को भाजपा नेता ने मारा था तो हम वहां भी खड़े हुये थे। जवाब में पुलिसवाले ने कहा कि तुम वहां भी सेलेक्टिव हो। सरकार विरोधी हो। 

राजीव बताते हैं कि फिर उन लोगों देवगांव थाने के पास गाड़ी रोकी। इससे पहले भी दो जगह गाड़ी रोकी थी एक ढाबे के पास और दूसरी एक जगह भी गाड़ी रोकी थी। देवगांव थाने के पास गाड़ी खड़ी करके सभी पुलिस वाले बाहर निकल गये और आपस में बात-चीत करने लगे। राजीव बताते हैं कि वो अपने जेब से रुमाल निकाल रहे थे तभी पुलिस वालों ने उनके उनका विजिटिंग कार्ड और हरा गमछा छीन लिया। और फिर से रिहाई मंच वगैरह के बारे में तमाम बातें पूछने लगे। कैसे क्या करते हो।  वहां से लेकर निकले तो राजीव ने अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुये पुलिसकर्मियों को बताया कि उन्हें ब्लडप्रेशर है, माइनर अटैक भी आ चुका है। तो मुझे दिक्कत होगी ऐसा कुछ मत कीजिये। 

इसके 30-40 मिनट बाद राजीव को पता लगा कि टीम को लीड करने वाले पुलिसकर्मी का नाम विनय दुबे है। तभी उसके मोबाइल पर  SSP – AZH ( संभवतः आजमगढ़) का फोन आने लगा तो वो बाहर निकल गये गाड़ी से। राजीव बताते हैं कि जब भी कोई फोन आता वो गाड़ी से बाहर निकल जाते थे। SSP-AZH  का फोन आने के बाद उसने अपने सभी पुलिसकर्मियों को गाड़ी के बाहर बुलाया। सिर्फ़ एक पुलिसकर्मी राजीव के साथ बैठा रहा। इसी दौरान राजीव के साथी विनोद ने कहा कि उन्हें पेशाब जाना है। तो पुलिसवाले ने कहा कि जाइये। आप लोग आंदोलन के लोग हैं हम पुलिस वाले हैं हमारी ड्युटी है। फिर वो लोग पढ़ाई वगैरह पूछने लगे कि कहां से कितना पढ़े हैं। राजीव ने जब बताया कि फला इंस्टीट्यूट से पढ़ा हूँ तो उक्त पुलिसकर्मी ने उनसे कहा कि इतने बड़े इंस्टीट्यूट से पढ़ें हैं आप और ये कर रहे हैं। 

राजीव ने उनसे कहा कि भाई पढ़ाई लिखाई का तभी मतलब है जब हम आम आदमी के सवालों को उठायें। हम लोग मज़दूर तबके से रहे हैं तो मज़दूरों किसानों के सवालों को उठाते हैं। फिर पुलिसवाले ने उनसे पूछा कि क्या तुम्हारी भी ज़मीन है वहां पर। तो राजीव ने कहा कि नहीं उनकी ज़मीन तो नहीं है वहां पर। 

परिचित पत्रकारों के नाम पूछे 

इसके बाद पुलिसकर्मियों ने राजीव से उनके जान पहचान के पत्रकारों के नाम पूछे। राजीव ने महेंद्र मिश्रा, समेत तीन चार पत्रकारों के नाम लिये। राजीव बताते हैं कि इसी दौरान उक्त पुलिसकर्मी के मोबाइल पर दिलीप सिंह के नाम के व्यक्ति  का फोन आने लगा। इसके बाद मोहम्मदपुर से गाड़ी काटकर निजामाबाद फजीहां होते हुये कन्धरापुर थाने ले जाया गया। 

कन्धरापुर थाने के थाना प्रभारी दिलीप सिंह निकल कर आये और अफ़सोस जताने लगे। कहने लगे कि आइये  राजीव भाई आपको चाय पिलाते है़ं, पानी पिलाते हैं। इस पर राजीव ने कहा कि आप ही से मिलना था, आप ही से बात करना था आप बता देते। मैं तो 24 घंटे यहीं रहता हूं आंदोलन में। आ जाता आपसे बात कर लेता। इस पर वो कहने लगे कि उन्हें नहीं मालूम है इसके बारे में। राजीव बताते हैं कि फिर थाना प्रभारी कहने लगे कि चलिये हम आपको घर छोड़ेंगे आपकी मम्मी से मुलाकात करायेंगे।

फिर राजीव ने उक्त थाना प्रभारी से कहा कि पहले उनका अगौंछा वगैरह दिलवाइये वो मुंह धोयेंगे। फिर राजीव ने थाना प्रभारी से कहा कि पानी पिला रहे हैं आखिर आपका प्लान क्या है। तो उन्होंने कहा कि नहीं कोई प्लान नहीं है उन्हें भी सर्विस करनी है। यहीं पर रहना है। उन्होंने राजीव से कहा कि वो उन्हें तुरंत छोड़ देंगे। फिर उन्हें वहां से लेकर डीएम के पास लेकर गये। 

राजीव से रास्ते में जिस तरह से पिस्टल, कार्बाइन, रिहाई मंच, सरकार का विरोध, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विरोध, और स्थानीय सांसद निरहुआ के साथ न बनने को लेकर पूछताछ की गई। 

निरहुआ से बनाकर क्यों नहीं चलते 

बता दें कि दिनेश लाल यादव निरहुआ स्थानीय सासंद हैं। निरहुआ ने कुछ दिन पहले सार्वजनिक तौर पर बयान दिया था कि लोग सरकारी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करके बैठे हैं। जब लोगों ने उसके ख़िलाफ़ विरोध किया तो उसने कहा कि यहां लोग विकास विरोधी हैं, मनबढ़ हैं, आजमगढ़ वालों को ठोक दो, ऊपर पहुंचा दो। घुटना मारकर तोड़ दो, जेल में डाल दो। 

इसके ख़िलाफ़ राजीव यादव ने 21 तारीख को एसएसपी के यहां कंपलेन दर्ज़ करवाया था। 23 तारीख को उन्होंने डीएम से कंपलेन किया। इसके बाद उनका बयान दर्ज़ करवाया गया। हालांकि एफआईआर अभी तक दर्ज़ नहीं हुआ। निरहुआ के ख़िलाफ़ कंपलेन दर्ज़ करवाने के चलते क्या राजीव को डराने के लिये ये कार्रवाई की गई। याकि पुलिस वालों को कुछ और ख़तरनाक प्लान था। क्या यदि राजीव यादव की गिरफ्तारी की ख़बर स्थानीय लोगों को न लगती, लोग ज़मीन पर न उतरते, गिरफ्तार की ख़बर सोशल मीडिया पर वायरल होने, ट्रेंड करने और लोगों के बीच सरकार के ख़िलाफ़ गुस्सा बढ़ने, लोगों के लामबंद होने के चलते पुलिस को अपना प्लान बदलना पड़ा। 

राजीव से जिस तरह पुलिस वालों ने पूछताछ की और खुद को राजीव के समक्ष सरकार का पैरोकार बनाकर पेश किया। सरकार का पक्ष लिया, केंद्रीय कृषि क़ानूनों को डिफे़न्ड किया। राजीव को विकास विरोधी, सरकार विरोधी, और सेलेक्टिव बताया, उन्हें गिरफ्तार करके ही मुंह पर मारा उससे साफ जाहिर है कि उक्त पुलिसकर्मियों को मन में राजीव के प्रति गुस्सा व नफ़रत की भावना ज़ोर पर थी। और वो राजीव को निपटाने की सोचकर ही चले थे। जगह जगह गाड़ी रोक रहे थे और हमलावर थे। डेढ़ दो घंटे उन्हें गाड़ी में टॉर्चर किया।

पुलिस वालों ने राजीव से पूछा कि एयरपोर्ट बनने से उन्हें क्या दिक्कत है। राजीव ने जब बताया कि 670 एकड़ ज़मीन जो जा रही है उसमें आवासीय ज़मीन है इससे बड़ी संख्या में लोग उजड़ जायेंगे। तो पुलिसवाले ने सरकार का पक्ष लेते हुये पूछा क्या मुआवजा नहीं दे रहे। राजीव ने जब कहा कि सर्किल रेट 2017 के हिसाब से दे रहे हैं। और लोग ख़रीदने जायेंगे उन्हें आज के दर से ख़रीदना पड़ेगा। दूसरी बात जब लोग अपनी ज़मीन नहीं देना चाहते तो जबर्दस्ती क्यों है।

राजीव बताते हैं कि उन्हें कोर्ट में ले जाया गया और कहा गया कि निजी मुचलका भरो तो रिहाई मिलेगी। पुलिस वालों के वकील ने उन्हें डॉक्यूमेंट दिखाया। राजीव के ख़िलाफ़ कोई फर्जी केस भी बनाया जा सकता था तो उन्होंने निजी मुचलका भरने के बाद उनका और उनके भाई विनोद यादव को मोबाइल फोन देकर साढ़े सात आठ बजे छोड़ दिया गया। 

इससे पहले 17-18 तारीख को पुलिस वाले खिरियाबाग के आस पास गांव में जाकर लोगों से पूछताछ की थी कि ये लोग कहां रुकते हैं कहां टहलते हैं। 18-19 तारीख को पुलिस वालों ने 11 बजे रात रेकी की थी कि आंदोलन के नेता कहां रुकते खाते हैं। तब इसे लेकर राजीव यादव ने एक मीडिया बयान और वीडियो भी ज़ारी किया था। 

राजीव और विनोद को 4 दिसंबर को वाराणसी से उठाकर जौनपुर होते हुये आजमगढ़ ले जाया गया। मजे की बात यह कि थाना प्रभारी को कुछ नहीं मालूम। तो इस बात में कोई स्पष्टता नहीं है कि राजीव को देवगांव थाने में किसने हैंडओवर किया है। गुंडों ने हैंडओवर किया या कि पुलिस ने। यदि पुलिस ने हैंडओवर किया है तो किस और कहां की पुलिस ने किया है। कोई कह रहा है कि एटीएस क्राइम ब्रांच थी, कोई कह रहा है एसटीएफ थी, कोई स्पष्टता नहीं है। 

वहीं सरकारी दमन के ख़िलाफ़ शुरू हुये खिरियाबाग आंदोलन के आज 75 दिन हो गये हैं। राजीव कहते हैं कि वो लोग सरकार और प्रशासन से वार्ता करना चाहते हैं। लेकिन सरकार व प्रशासन वार्ता नहीं कर रहे हैं। और इस तरह से उठाकर इंट्रोगेट और परेशान कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर निरहुआ का बयान सार्वजनिक है। उसने धमकी दी है। जनसंहार के लिये हिंसा के लिये कह रहा है। और उसके ख़िलाफ कंपलेन नहीं दर्ज़ किया जा रहा है। इंटेलिजेंस के लोग राजीव को फोन करके कह रहे हैं कि हम शासन के आदेश पर कर रहे हैं। ऊपर का दबाव है। दूसरी ओर पदयात्रा रोक दी जाती है। गुंडे की भांति पुलिस आंदोलनकारियों को उठा रही है। 

(सुशील मानव जनचौक के विशेष संवाददाता है।)

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