Thursday, April 25, 2024

कहां गया जीरो टालरेंस! पनामा पेपर्स की जांच बैठाए हुए 5 साल और प्रगति शून्य

मोदी सरकार ने सत्ता में आने पर भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस का दावा किया था पर आचरण उसके सर्वथा विपरीत है। 2016 में बहुचर्चित पनामा पेपर्स में जिन लोगों के नाम आए थे, उन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यही नहीं, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में एक याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जांच की जाए और कार्रवाई की जाए। लेकिन कोर्ट के आदेश के तीन साल बाद भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। हालांकि इसी पनामा पेपर्स ने प्रधानमन्त्री के बिरयानी दोस्त पाकिस्तान में नवाज शरीफ की प्रधानमंत्री पद से छुट्‌टी करा दी। पर भारत में अभी तक जांच भी शुरू नहीं हुई है।

तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में कहा था कि पनामा पेपर्स में जिन जिन लोगों के नाम सामने आए हैं, उन सभी को नोटिस भेजा गया है और कानून के अनुरूप कार्रवाई की जा रही है। लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान किरिट सोमैया के पूरक प्रश्न के उत्तर में जेटली ने कहा था कि जिन-जिन लोगों के नाम कर चोरी एवं इससे संबंधित अन्य मामले में सामने आए हैं, उन्हें नोटिस दिया जा रहा और कार्रवाई की जा रही है। सोमैया ने पनामा पेपर्स, महाराष्ट्र से जुड़े मामले एवं समाचारपत्रों में आए कुछ अन्य मामलों को उठाया था।

जेटली ने कहा था कि आयकर अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि इस बारे में की जा रही कार्रवाई का ब्यौरा तब तक सार्वजनिक नहीं किया जा सकता जब तक कि अदालत में मामला दर्ज नहीं हो जाता है। उन्होंने कहा कि पनामा पेपर्स में जिन-जिन लोगों के नाम सामने आए हैं, उन सभी को नोटिस भेजा गया है और कानून के अनुरूप कार्रवाई की जा रही है।

पनामा पेपर्स में अमिताभ बच्चन, एश्वर्या राय, डीएलएफ के केपी सिंह, समीर गहलौत जैसे नाम सामने आए थे। कुल 714 कंपनियों और व्यक्तियों का नाम है। इन लोगों के विदेशों में खाते हैं। इसमें 1,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि विदेशों में रखे जाने का खुलासा हुआ था। सीबीडीटी ने पनामा पेपर्स के आरोप को पूरा करने के लिए 31 मार्च 2020 का समय दिया था। रिपोर्ट के मुताबिक सीबीडीटी ने कुल 426 खातों की स्क्रूटनी की थी और 147 खातों को कार्रवाई के लिए उपयुक्त पाया था। नवंबर 2017 तक सीबीडीटी ने 46 कंपनियों और व्यक्तियों पर सर्वे किया था।

सुप्रीम कोर्ट के वकील मनोहर लाल शर्मा ने वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल किया था। याचिका  में कहा गया था कि सीबीआई को आदेश दिया जाए कि वह पनामा पेपर्स में भारतीय ऑफशोर बैंक खातों के धारकों की जांच करे और कोर्ट में रिपोर्ट फाइल करे। याचिका में कहा गया था  कि सेबी चेयरमैन के खिलाफ भी जांच की जाए और उनके सहयोगी निदेशकों, शेयर ब्रोकर्स और कंपनियों की भी जांच की जाए। साथ ही एक एसआईटी बनाने की मांग की गई थी। हालांकि कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने पहले से गठित एसआईटी से रिपोर्ट भी मंगाई कि अब तक क्या किया है? पर इसका कोई जवाब नहीं मिल पाया।

हालांकि उस समय कोर्ट की तीन जजों दीपक मिश्रा, उदय ललित और आदर्श गोयल की पीठ ने इस मामले में एसआईटी गठित करने का आदेश दिया। बाद में दो जजों की पीठ ने एसआईटी गठित करने से मना कर दिया और शर्मा के पिटीशन को रद्द कर दिया। एसआईटी का गठन इसलिए नहीं किया गया क्योंकि 2011 में 4 जुलाई को इसी कोर्ट ने काले धन के लिए एक एसआईटी का गठन किया था। हालांकि इस एसआईटी ने कुछ नहीं किया।

वित्त मंत्रालय और इकोनॉमिक अफेयर्स मंत्रालय ने एक काउंटर एफिडेविट फाइल किया। इस एफिडेविट में यह कहा गया कि सरकार ने एक मल्टी एजेंसी ग्रुप (एमएजी) का गठन किया है। इसमें सीबीडीटी, रिजर्व बैंक, ईडी और फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (एफआईयू) के अधिकारी शामिल हैं। सीबीडीटी एमएजी का कन्वेनर होगा। एमएजी यह सुनिश्चित करेगा कि जांच तेजी से हो और जांच के साथ उन सभी के साथ कोआर्डिनेशन किया जाए जिनके नाम पनामा पेपर्स में हैं।

एमएजी तमाम जांच एजेंसियों की प्रगति की निगरानी करेगी। 27 सितंबर 2016 तक कुल 6 रिपोर्ट एमएजी को सौंपी गई थीं। काले धन पर बनाई गई एसआईटी हमेशा इस तरह के मुद्दों पर कोर्ट को अपडेट करती रहेगी। इसी बीच इकोनॉमिक अफेयर्स ने 6 अप्रैल 2017 को एक अलग से एफिडेविट फाइल किया। जिसमें यह सवाल किया गया कि क्या अलग से किसी एसआईटी की जरूरत है? क्योंकि एसआईटी पहले से ही है।

यह भी कहा गया कि विदेश में संपत्तियों को ढेर सारी मुखौटा कंपनियां बनाकर उनकी आड़ में छिपाया गया है। इसी तरह सेबी ने भी एक एफिडेविट फाइल किया। सेबी ने कहा कि वह काले पैसों की रोकथाम के लिए पीएमएलए 2002 एक्ट के तहत काम कर रही है। सेबी ने 23 अक्टूबर 2009 को एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें सेक्शन 51ए के तहत इस तरह की गतिविधियों को रोकने की बात कही गई थी।

सेबी ने कहा कि जो भी कंपनियां सिक्योरिटीज बाजार में काम करती हैं वे सभी एक फ्रेमवर्क के तहत काम करती हैं। साथ ही फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर के लिए एक स्पेशल रेगुलेशन है। आरबीआई ने भी एंटी मनी लांड्रिंग को लेकर आदेश दिया है। ऑर्डर में यह भी कहा गया कि एसआईटी इस बात के लिए जिम्मेदार होगी कि वह एक्शन प्लान बनाएगी। यानी बेनामी पैसों के सिस्टम के खिलाफ लड़ाई लड़ने की जिम्मेदारी एसआईटी की होगी। एसआईटी इसी के साथ आगे केस रजिस्टर्ड करेगी और सही जांच करेगी।

12 अक्टूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा कि पनामा पेपर लीक रिपोर्ट में जो डॉक्यूमेंट या विदेशों में बैंक खातों की जानकारी इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इनवेस्टिगेशन जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) ने दी थी, उसके बारे में संबंधित अथॉरिटी खासकर सेबी को जांच करनी चाहिए थी। क्योंकि इसमें जनता का और काले धन की रोकथाम में काफी सारे फाइनेंशियल नुकसान हुए हैं।

कोर्ट ने कहा कि जो रेफरेंस दिए गए हैं उसमें यह पता चलता है कि विदेशों में बैंक खातों के जरिए शेयर बाजारों को मेनिपुलेट किया गया है। यह भी आरोप लगा कि सेबी शेयर बाजार के रेगुलेटर के तौर पर काम करने में फेल रही है। विदेशों में रखे गए काले धन से आतंकी घटनाओं, मनी लांड्रिंग, टैक्स बचाने भ्रष्टाचार, अपराधों आदि को मदद की जा सकती है। विदेशों में रखे गए फंड से भारतीय शेयर बाजार में पार्टिसिपेटरी नोट्स के जरिए पैसों का सर्कुलेशन किया जा सकता है।

सेबी को शेयर बाजार में प्रमोटर्स अपना पैसा जो राउंड ट्रिपिंग विदेशों से लेकर आते हैं उसकी जांच करनी चाहिए। आधे से ज्यादा प्रमोटर्स मॉरीशस, केमन आइलैंड, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड जैसे टैक्स हेवेन देशों से बैंकों का पैसा ओवर इनवाइसिंग करके वापस अपनी शेयर होल्डिंग बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। छोटे निवेशक यहीं पर जाल में फंसते हैं और बैंकों का बड़ा नुकसान होता है। इसकी वजह से कंपनियां डिफॉल्ट कर जाती हैं।

राउंड ट्रिपिंग का मतलब होता है कि पैसों को घुमाकर वापस लाना। यह टैक्स हेवेन देशों में काफी सारे वकील, बैंक, सीए पैसों को घुमाकर वापस भेजते हैं। इसे बेनामी एक्ट के तहत जब्त करना चाहिए। इस मामले में 2011 में स्थापित की गई एसआईटी टीम ने तमाम ट्रांजेक्शन के बारे में रिट पिटीशन भी दिया है। इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सेबी स्टेच्यूरी ड्यूटी को निभाने में फेल रहा है।

उधर दूसरी ओर वित्त मंत्रालय ने बेनामी संपत्ति का खुलासा करने के लिए बेनामी एक्ट के तहत 30 जून तक का समय दिया था। यह अवधि भी खत्म हो गई है। ऐसे में वि्त्त मंत्रालय को अब उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई तेज करनी चाहिए जो बेनामी संपत्तियों के मालिक हैं। पनामा मध्य अमेरिका के बीच एक छोटा सा देश है। यह उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका से जुड़ा है। इसका उत्तर में पड़ोसी कोस्टा रिका और दक्षिण में कोलंबिया है।

द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी का जवाब देते हुए, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीटीडी) ने कहा कि जून 2021 तक, भारत और विदेशों में कुल 20,078 करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति की पहचान की गई है।

पनामा पेपर्स 2016 के डेटा के आधार पर देखें तो यह सभी खुलासों का बाप है। अगर 2010 में विकीलीक्स द्वारा संवेदनशील डिप्लोमैटिक केबल्स को जारी करना आपको बहुत बड़ा मामला लगा था तो समझ लें कि पनामा पेपर्स में उससे 1500 गुना ज़्यादा जानकारी थी। विकीलीक्स का ख़ुलासा तो कई दिशाओं में बंटा हुआ था मगर पनामा पेपर्स सिर्फ़ वित्तीय मामलों पर आधारित थे। यह तब हुआ जब 2015 में एक गुमनाम स्रोत ने जर्मन अख़बार ज़्यूड डॉयचे त्साइटुंग से संपर्क किया और पनामा की लॉ फ़र्म मोसाका फोंसेका के एनक्रिप्टेड डॉक्यूमेंट्स दिए। यह लॉ फ़र्म गुमनाम विदेशी कंपनियों को बेचती है, जिससे मालिकों को अपने कारोबारी लेन-देन अलग रखने में मदद मिलती है।

यह डेटा इतना विशाल (2.6 टेराबाइट्स) था कि जर्मन अख़बार ने इंटरेशनल कंसोर्शियम ऑफ़ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स से मदद मांगी। इसने 100 अन्य सहयोगी समाचार संगठनों, जिनमें बीबीसी पैनोरमा भी है, को शामिल किया। एक साल की स्क्रूटनी के बाद 3 अप्रैल 2016 को पनामा पेपर छापे गये। एक महीने बाद दस्तावेज़ों के डेटाबेस भी ऑनलाइन डाल दिया।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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