वाराणसी। 7 जून, 1893 में महात्मा गांधी को सामान सहित दक्षिण अफ्रीका के पीटरमारिट्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से नीचे फेंक दिया गया था। उसी ट्रेन का फर्स्ट क्लास का टिकट होने के बावजूद गांधी को थर्ड क्लास डिब्बे में जाने के लिए कहा गया था। गांधी ने टिकट का हवाला देते हुए जाने से इनकार कर दिया था। लेकिन ट्रेन जैसे ही पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर रुकी उन्हें धक्का देकर नीचे उतार दिया गया और उनका सामान नीचे फेंक दिया गया। कड़कड़ाती ठंड में गांधी पूरी रात स्टेशन के वेटिंग रूम में सोचते रहे। बस उसी रात दक्षिण अफ्रीका के पीटरमारिट्जबर्ग में गांधी के सत्याग्रह की नींव पड़ चुकी थी। उन्हें यह अंदाजा ही नहीं था कि सविनय अवज्ञा की ये शुरुआत अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़ देगी।
आज 130 वर्ष बाद गांधी के साथ हुई घटना एक बार फिर भारत के वाराणसी में दोहराई जा रही है। उस दौरान अफ्रीका और भारत अंग्रेजों का गुलाम था। लेकिन आजाद भारत में भारतीय रेलवे के अधिकारी अंग्रेज अधिकारियों से भी चार कदम आगे बढ़ गए हैं। भारतीय रेलवे के अधिकारियों ने 22 जुलाई, 2023 को सर्व सेवा संघ परिसर को अपने कब्जे में ले लिया। सर्व सेवा संघ के लोग जमीन के बैनामा के कागजात, रजिस्ट्री और कब्जा की दुहाई देते रहे। लेकिन वाराणसी पुलिस-प्रशासन और रेलवे के अधिकारियों ने सर्व सेवा संघ के सामान को सड़क पर फेंक दिया। परिसर के संयोजक, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया। क्या मोदी सरकार को आज ये अंदाजा है कि गांधीवादियों के साथ ये अन्याय उन पर भारी पड़ सकती है।
इस घटना के बाद हम सहज ही यह अंदाजा लगा सकते हैं कि अंग्रेजी राज और मोदी राज में क्या समानता और क्या फर्क है? और दोनों सरकारों में तुलनात्मक रूप से कौन ज्यादा सभ्य और कानून पर यकीन करने वाला है?
सर्व सेवा संघ परिसर, राजघाट पर कब्जा करने के लिए मोदी सरकार ने अपने सारे घोड़े खोल दिए। देश के संवैधानिक इतिहास की यह अनोखी घटना है जब सरकार ही इस मामले में रोज कानून तोड़ते हुए दिख रही है। सर्व सेवा संघ परिसर से कार्यकर्ताओं के परिवारों को बेघर करने, उनके सामान को सड़क पर फेंकने का विरोध करने के आरोप में पुलिस ने आठ लोगों- चंदन पाल, रामधीरज, अरविंद अंजुम, राजेंद्र मिश्र, जितेंद्र, नंदलाल मास्टर, अनोखेलाल और ईश्वर चंद को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। जहां जेल अधिकारियों ने “ऊपर के आदेश” पर बुजुर्ग गांधीवादियों का जमकर उत्पीड़न किया। जेल नियमों का हवाला देते हुए उन्हें दवाओं से वंचित रखा गया।
सर्व सेवा संघ परिसर में कैसे घुसी पुलिस?
22 जुलाई, 2023 को सुबह 6 बजे वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ के मुख्य दरवाजे पर करीब 300 पुलिसकर्मी पहुंचे। गेट का दरवाजा अंदर से बंद था। पुलिस ताला तोड़कर परिसर में प्रवेश कर गई। सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल और रामधीरज पुलिस से बात करने लगे। और ताला तोड़कर अंदर घुसने पर सवाल उठाया तो प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि हम परिसर से कब्जा हटाने आए हैं। इस बाबत जब आदेश के कागजात मांगे गये तो एसडीएम और रेलवे के अधिकारी पहले तो एक दूसरे पर टालते रहे, लेकिन कुछ देर बाद कहा कि ऑर्डर कॉपी आप को नहीं आपके वकील को दिखाएंगे।
सर्व सेवा संघ के वकील भुवन मोहन श्रीवास्तव और धीरज कुमार थोड़ी देर में परिसर पहुंच गए। जब उन्होंने एसडीएम से परिसर खाली कराने का आदेश मांगा तो वह भागने लगा। उसके बाद लगा कि इन लोगों के पास परिसर में घुसने का कोई वैधानिक कागजात नहीं है। और मोदी सरकार गुंडागर्दी कर रही है। पुलिस-प्रशासन की अभद्रता को देखते हुए यह अंदाजा लग गया कि आज ये लोग परिसर को खाली कराने आए हैं। इसलिए हम लोगों ने सर्व सेवा संघ के कागजात को सुरक्षित करने का निर्णय किया।
उसी दौरान सर्व सेवा संघ के लोगों ने जिला जज को एक पत्र लिखा, और उसकी प्रतिलिपि सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, इलाहाबाद, नादर्न रेलवे के महाप्रबंधक को ई-मेल और डाक से भेजा गया।
परिसर में लंबे समय से रह रहे अरविंद अंजुम कहते हैं कि “हमलोग पहले से ही आशंकित थे। 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में हमारा एसएलपी रिजेक्ट हुआ और उसका और उसका ऑर्डर 21 जुलाई शाम को अपलोड हुआ। इसलिए हमलोग तत्काल लोअर कोर्ट में अपील नहीं कर पाए। गेट का ताला तोड़कर पुलिस के अंदर आने के बाद हम लोग जल्दी-जल्दी तैयार हुए। मेरी ड्यूटी सर्व सेवा संघ के डॉक्यूमेंट को सुरक्षित करने में लगाया गया। मैं प्रकाशन विभाग में चला गया।”
गांधीजनों की गिरफ्तारी
8.30 पर चंदन पाल और रामधीरज समेत छह लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। और उन्हें पुलिस लाइन ले जाया गया। पुलिस ने सबसे पहले गेस्ट हाउस को खाली कराया। पुलिस अपने साथ 50-60 की संख्या में मजदूरों को लेकर आई थी।
10.30 पर अरविंद अंजुम और जितेंद्र को भी गिरफ्तार करके पुलिस लाइन भेज दिया गया। दिन भर पुलिस लाइन में बैठाने के बाद रात 8 बजे एसीपी आईं और कहा कि आप लोगों को छोड़ा जा रहा है। आप लोग कहां जाएंगे? घर जाएंगे ना?
गिरफ्तार गांधीजनों ने कहा कि “मेरा घर तो राजघाट है, हम लोग यहां से वहीं जाएंगे। और राजघाट पैदल ही जाएंगे।”
इस जवाब में एसीपी बोलीं कि फिर तो हम आप लोगों को गिरफ्तार कर लेंगे। गांधीजनों ने कहा कि गिरफ्तार कर लीजिए। जेल भेज दीजिए। इसके बाद पुलिस ने आठ गांधीजनों पर धारा-151 के तहत मुकदमा दर्ज किया। रात 9 बजे कबीर चौरा हॉस्पिटल में मेडिकल कराया और 10.30 बजे सारनाथ जेल भेज दिया।

जेल में गांधीजनों का उत्पीड़न
गांधीजनों के जेल पहुंचने पर उन्हें वार्ड नंबर 10 (ए) ले जाया गया। जहां 80×20 के बैरक में 161 कैदी पहले से ही मौजूद थे। कुछ लोग उसमें बैठे थे। पहले से मौजूद लोगों के ही लेटने की जगह उसमें नहीं थी। 8 गांधीजनों को भी उसी में रहने का फरमान सुनाया गया। लेकिन गांधीजनों के विरोध के बाद उन्हें वहां से बाहर ले जाया गया।
अब गांधीजनों को वार्ड नंबर 10 (बी) में ले जाया गया। यह वार्ड भी 80 x20 साइज का था। इस बैरक में करीब 60 लोग थे। यह पेड वार्ड है। जेल अधिकारियों को जो पैसा देते हैं उनको यहां रखा जाता है। बैरक में खुला शौचालय था। कोई पर्दा या दरवाजा नहीं था। इस बैरक में एक 10×6 का पैसेज था। गिरफ्तार 8 गांधीजनों को दो दरी और दो कंबल दिया गया।
अरविंद अंजुम कहते हैं कि हम सारे लोग कोई न कोई दवा खाते हैं। अभी हमने मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराया था और आंख में डालने के ड्रॉप लिए थे। मैं और राजेंद्र मिश्र बीपी की दवा खाते हैं। लेकिन हमलोगों की दवा को बाहर रखवा लिया गया। जेल अधिकारियों ने पहले कहा कि बैरक में मिल जाएगा। फिर कहा कि सुबह मिल जाएगा। सुबह कहा कि दोपहर दो बजे मिलेगा। जब हमलोगों ने जेल में धरने पर बैठने की धमकी दी तो आई ड्रॉप दिया गया। लेकिन बीपी की दवा नहीं दी गई।
जेल में अंदर जाते समय हम लोगों का पैसा जेल के पुलिसकर्मियों ने रख लिया औऱ कहा कि छूटने पर मिल जाएगा। लेकिन जेल से छूटने समय देने से मना कर दिया। गांधीजनों वे एक बार फिर धरना देने की बात कही। तब जाकर जेलकर्मियों ने अरविंद अंजुम के 70 रुपये और राजेंद्र मिश्र के 105 रुपये वापस किए।
(वाराणसी से प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)
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