गौ-हत्या के लिए योगी आदित्यनाथ जिम्मेदार!

Estimated read time 1 min read

हरदोई/सीतापुर। हरदोई जिले की सण्डीला तहसील के भरावन विकास खण्ड की ग्राम पंचायत छावन का गांव है गौढ़ी। जनवरी 2023 में गांव में खुले पशुओं से परेशान ग्रामीणों ने गांव में ही धरना शुरू किया। यदि ये गोवंश गौशालाओं में नहीं जाते तो ग्रामीणों को रात-रात भर जग कर अपनी फसलें बचानी पड़ती हैं। खैर धरना शुरू होते ही शाम को खण्ड विकास अधिकारी गांव पहुंचते हैं। रातों रात एक जे.सी.बी. मशीन बुला कर पहले जहां एक अस्थाई गौ-आश्रय स्थल बनाया गया था, वहीं फिर से गड्ढों को गहरा कर और उसकी सीमा पर लगे तारों को ठीककर गौ-आश्रय स्थल को पुनः सक्रिय किया गया। गांव से पकड़ कर गोवंश उसमें लाए गए।

गौ-आश्रय स्थल के निर्माण के वक्त ग्राम प्रधान के पति ने बताया कि गौ-आश्रय स्थल के निर्माण के लिए उसके पास कोई पैसा नहीं है। उससे कहा गया है कि राज्य वित्त के पैसे से बनवा लो। पिछली बार जब यहां गौ-आश्रय स्थल बना था तो बताया गया कि चूंकि चारा का पैसा भी नहीं मिल रहा था, अतः अंत में गाएं जो उन्हें ढंकने के लिए तिरपाल लगा था, वह भी खाकर चली गईं।

वैसे उत्तर प्रदेश सरकार की घोषणा यह है कि प्रति पशु को खिलाने के लिए 30 रुपये प्रति दिन दिया जाएगा। गौ-आश्रय स्थल, गौशालाओं और यदि कोई किसान किसी खुले पशु को बांध कर खिलाता है तो तीनों स्थितियों में पैसा मिलेगा। लेकिन वास्तविकता में यह पैसा मिल जाना और उसमें निरंतरता बनी रहने में बड़ी कठिनाई आती है। ग्राम प्रधानों से कहा जाता है कि अभी अपनी जेब से खिला दो, बाद में भरपाई हो जाएगी। इस चक्कर में कई प्रधानों का पैसा डूब चुका है।

शुरू शुरू में तो जनता का दबाव था इसलिए गौढ़ी में अस्थाई गौ-आश्रय स्थल बना दिया गया और ग्राम प्रधान ने पैसा खर्च किया। किंतु जब ग्रामीणों का दबाव कम पड़ा तो चारा आना बंद हो गया। वैसे इस समय उत्तर प्रदेश में गौशालाओं के नाम पर बड़ा चारा घोटाला हो रहा है।

गौढ़ी में जहां धीरे धीरे करके पशुओं की संख्या जनवरी में 53 से बढ़कर 130 तक पहुंच गई थी, चारे के अभाव में करीब 80 पशु तार तोड़ कर, खाईं फांद कर भाग गए। करीब दस पशु भूख व बीमारी के कारण मर गए, जिन्हें वहीं दफना दिया गया। सबसे कमजोर 41 पशु रह गए। 7 अगस्त को इनमें से एक पशु मर चुका था और दो मरणासन्न अवस्था में हैं। जिलाधिकारी व प्रमुख सचिव पशुधन को सूचित किया गया। ग्राम प्रधान आए और मरे पशु को हटवा दिया। एक महीने से ऊपर हो चुका है किंतु पशु चिकित्साधिकारी नहीं आए हैं।

मार्च में सीतापुर जिले की सिधौली तहसील के गोंदला मऊ विकास खण्ड के हिण्डोरा गांव से ग्रामीण दो बार पशुओं को लेकर निकले, इस ऐलान के साथ कि उन्हें लखनऊ ले जाकर योगी आदित्यनाथ के घर बांधा जाएगा ताकि योगी ही पशुओं को खिलाएं। पुलिस ने दोनों बार रास्ता रोक लिया, किंतु कोई भी ऐसा अधिकारी या खण्ड विकास अधिकारी, पशु चिकित्साधिकारी अथवा उप-जिलाधिकारी- मौके पर नहीं पहुंचा जो समस्या का समाधान कर सकता था।

अंत में ग्राम प्रधान पर दबाव डाल कर एक जे.सी.बी. मशीन लगा कर खाई खुदवाने का काम शुरू हुआ। एक दिन काम होकर रुक गया। आज तक गौ-आश्रय स्थल का काम अपूर्ण है और वहां कोई पशु रखा ही नहीं गया। इससे समझा जा सकता है कि योगी सरकार गायों को बचाने के लिए कितनी गम्भीर है?

असल में योगी सरकार ने गाय के नाम पर सिर्फ राजनीति की है। यह बात इसी से साफ है कि जानवरों को खिलाने के लिए 30 रुपये प्रति पशु प्रति दिन का ऐलान कर दिया गया है, किंतु गौ-आश्रय स्थल के निर्माण हेतु ग्राम पंचायतों को कोई धन नहीं उपलब्ध कराया जा रहा। आखिर राज्य वित्त के पैसे से अच्छा गौ-आश्रय स्थल कैसे बन सकता है? क्या ग्राम प्रधान राज्य वित्त का सारा पैसा गौ-आश्रय स्थल निर्माण में लगा दें? फिर गांव के विकास, सड़क, नाली, आदि के काम कैसे होंगे?

किंतु हिंदुत्ववादी संगठन जो गौ-रक्षा के नाम पर निर्दोष लोगों से मार-पीट करने पहुंच जाते हैं, कभी अपनी सरकार से यह नहीं पूछते कि उसकी गौशालाओं के निर्माण को लेकर क्या योजना है? सारे खुले पशु गौशालाओं में कैसे पहुंचेंगे? जब प्रशासनिक अधिकारियों को समस्या के वहृद रूप का ज्ञान होता है तब वे किसानों के खिलाफ मुकदमा लिखाने की कार्रवाई शुरू कर देते हैं कि उन्होंने क्यों अपने पशु छोड़ रखे हैं? यानी जो किसान पहले से ही परेशान है उसे और परेशान किया जाता है।

ठीक इसी तरह जब किसानों ने अपनी फसल बचाने के लिए ब्लेड वाले खतरनाक तार खेत के चारों तरफ लगाने शुरू किए तो सरकार ने किसानों की समस्या हल करने के बजाए इन खतरनाक तारों पर प्रतिबंध लगा कर किसानों पर जुर्माने का प्रावधान कर दिया। किसानों के सामने जब यह मजबूरी आती है कि वह अनुपयोगी पशु को खिला पाने की स्थिति में नहीं होता है तो अपने पशु को छोड़ देता है। यह बात शासन-प्रशासन में बैठे लोग और वे गौरक्षक, जिन्होंने कभी गाय नहीं पाली, नहीं समझ पाते या नहीं समझना चाहते।

यदि सिर्फ सण्डीला तहसील का उदाहरण लें तो पूरे तहसील में 250-300 पशु की क्षमता वाली दो गौशालाएं हैं – एक सण्डीला में और दूसरी बालामऊ में। लेकिन तहसील के गोमती किनारे सिर्फ एक ही गांव भटपुर में हजारों पशु खूले घूम रहे हैं। अब तो प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक या एक से ज्यादा गौशालाओं की जरूरत है। जब तक सरकार इन गौशालाओं का निर्माण नहीं करा लेती उसे पशु बाजार खोल देने चाहिए ताकि किसान की फसल तो बचे।

योगी आदित्यनाथ निकले तो गाय बचाने के लिए थे, किंतु गाय तो अभी भी मर रही है। कहीं गौशालाओं में भूख से, कहीं सड़क पर दुर्घटना से, गाय के छोटे बच्चों को सियार उठा ले जा रहे हैं। और गौहत्या तो बंद हुई नहीं है। बल्कि कत्लखानों के मालिकों के लिए तो अब और आसान हो गया है। पुलिस की मिलीभगत से कहीं भी गाड़ी खड़ी कर झुण्ड के झुण्ड जो पशु बगीचे में बैठे मिल जाएंगे उन्हें उठा ले जाओ। प्रशासन भी इन पशुओं से छुटकारा चाहता है, नहीं तो इनके लिए गौ-आश्रय स्थल बनवाने पड़ेंगे।

अब सरकार को कटघरे में खड़ा करने का वक्त आ गया है। 7 अगस्त, 2023 को गौढ़ी स्थित गौ-आश्रय स्थल में जिस बछड़े की मौत हुई है उसकी हत्या का मुकदमा योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लिखा जाना चाहिए। योगी सरकारी पैसे से गायों के संरक्षण का नाटक कर पुण्य कमाना चाहते हैं। लेकिन वास्तविकता में उन्होंने किसानों को परेशान करके रख दिया है।

(संदीप पाण्डेय जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता एवं मैग्सेसे अवार्ड विजेता हैं)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments